
CG NEWS:गार्डन के गोठ (1) – इधर बेटिकट मेयर के दावेदार , पुराने तेवर…. और उधर मचा घमासान
CG NEWS:छत्तीसगढ़ के दूसरे बड़े शहर…. न्यायधानी बिलासपुर के एक गार्डन का सीन है….। सुबह – सुबह सूरज निकला है… धीरे – धीरे ऊपर चढ़ रहा है…। जिसकी हल्की गरमाहट का अहसास होते ही कुछ बुजुर्ग गार्डन की बेंच पर तशरीफ़ रखते हुए मार्निंग वॉक पर अल्पविराम लगाकर गपशप का सिलसिला शुरू कर रहे हैं…। जिस तरह मौसम की ठंडक कम हुई है और पारा चढ़ने लगा है, उसी तरह चुनावी मौसम का भी पारा चढ़ने लगा है। लिहाज़ा गपशप पर भी इसका असर दिखाई दे रहा है…।
आज लल्लन काका ने शुरूआत की…। बोले – भई उम्मीदवार तो तय हो गए और अपना – अपना पर्चा भी दाख़िल कर दिया है। साउथ इंडियन ओबीसी और कुर्मी ओबीसी के बीच मुक़ाबला अभी से दिलचस्प लग रहा है। वैसे भी बिलासपुर शहर कॉस्मोपोलिटन शहर है। यहां पर जाति के हिसाब से फैसले का पुराना रिकॉर्ड नहीं मिलता। हमारे शहर के लोग बाहरी या लोकल के हिसाब से भी फैसला नहीं करते । इस बात पर भी लोग गौर नहीं करते कि कौन इस शहर में कब आया है..। अलबत्ता ऐसे लोगों को भी अपना नुमाइंदा चुन लेते हैं, जिनका रिकॉर्ड शहर में बहुत पुराना नहीं है। दरअसल इस शहर में हरएक समाज को लोग बसर करते हैं । किसी की मोनोपल्ली नहीं है ।कोई भी इधर तोरवा, रेल्वे इलाक़े से लेकर उस्लापुर और उधर सरकंडा से लेकर तिफरा – सिरगिटी तक एक चक्कर घूमकर बख़ूबी देख सकता है कि हिंदुस्तान में जितने भी धर्म – जाति – समाज के लोग रहते हैं, इस शहर में सभी की अपनी हिस्सेदारी मिल जाएगी। इसलिए इस बार भी मुक़ाबला बराबरी का है।
बिलासपुर की इस ख़ूबी को लेकर लल्लन काका की बात शायद और आगे बढ़ती । लेकिन चत्तन चाचा ने बीच में ही टोक दिया । बोले – भई, बात इतनी सीधी – सरल नहीं है। आजकल रिजर्वेशन पॉलिटिक्स में समाज के लोग ठोंक – बजाकर देखते हैं कि जो हमारे वोट से चुनकर जाने वाला है, उसका चेहरा लोकल फ्रेम में कितना फ़िट हो रहा है। ऐसे में रियल ओबीसी फ़ेस की परख़ तो होगी ही। कुछ समय पहले जिस तरह छत्तीसगढ़ी कल्चर पर ज़ोर दिया जा रहा था, उसका असर अभी है या नहीं…. परख़ तो इस बात की भी हो सकती है। अगर सोचिएगा तो इसकी बहुत सी परतें निकलती चली जाएंगी। लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि क्या लोग ऐसी सोच के साथ फैसला करने वाले हैं….?
चत्तन चाचा बीच में ही बोल पड़े – पब्लिक का फैसला जो भी होगा सामने आ जाएगा । लेकिन टिकट के फैसले से जो कुछ सामने आया है, उस पर तो ख़ुश हो लीजिए….। अब धूप भी चढ़ने लगी थी और हल्की चुभन भी महसूस होने लगी थी । मफलर – टोपा उतारकर सहेज चुके बुजुर्गों ने चत्तन चाचा की ओर जिज्ञासा से देखा और सभी की बूढ़ी आंखें सवालिया निशान के साथ उनकी ओर घूरने लगीं…।
चत्तन चाचा बोलते रहे… इस शहर को मंत्री मिलेगा या नहीं…? इस सवाल के जवाब का बड़ा हिस्सा मेयर चुनाव के नतीजों पर टिका हुआ भले ही नज़र आ रहा है। लेकिन टिकट के फैसले को सामने रखकर हम सब अभी से ख़ुश हो सकते हैं कि सूबे में सरकार चला रही पार्टी के पुराने तेवर वापस आ गए हैं। कद्दावर नेता अपने पुराने फार्म में आ गए हैं। पुराना आत्मविश्वास और पुराना तौर तरीका फिर लौट आया है । यह भरोसा झलक रहा कि जिसे भी टिकट दिलाएंगे उसे जितवा के भी ले आएंगे। मेयर टिकट के कई दावेदार बेटिकट हो गए….। हाथ से कबूतर उड़ गए… और कोई आधा दर्जन मेयर टिकट के दावेदार कटसाईज़ कर पार्षद चुनाव के मैदान में उतार दिए गए। जहां वे ख़ुद अपने लिए भी वोट मांगेगे और मेयर के लिए भी मांगना पड़ेगा। अठारह गांव, दो नगर पंचायत और एक नगर पालिका शामिल किए जाने के बाद नगर निगम का दायरा काफ़ी बढ़ गया है । कहते हैं अपना मेयर पांच विधायकों के इलाके से चुनकर आएगा ..। लेकिन रिमोट रहेगा या नहीं… और रहेगा तो किसके हाथ में …?
सोमू दद्दा से अब नहीं रहा गया…। बोले – भई, अनुशासित पार्टी में तो टिकट की लिस्ट के बाद सब ख़ामोश हो गए …। जिसे टिकट मिली उसे जिताने में लग गए। लेकिन दूसरी तरफ़ तो बवाल मचा हुआ है। इस शिविर का माहौल देखकर लगता है, जैसे इस बार पब्लिक एकतरफा इन्ही को जिताने वाली है। जीत की उम्मीद में सभी दौड़ में शामिल हो गए हैं। रियल ओबीसी का दावा करने वाली पार्टी मुकाबला शुरू होने से पहले ही सेल्फ गोल में मात खा गई । एक ओबीसी ने ही सरेंडर कर अपने वार्ड पार्षद के निर्विरोध चुनाव का रास्ता साफ कर दिया । नूरा कुश्ती के मैच में इस गेम प्वाइंट के बाद टीम के अंदर घमासान और बढ़ गया है। कहीं टिकट बेचने का आरोप …. तो कहीं चिन्ह.. चिन्ह के रेवड़ी बांटने की तोहमत से घिर रही पार्टी को यह समझ नहीं आ रहा है कि अनुशासन का डंडा उठाने के बाद शुरू कहां से करें … और अंत कहां होगा…। अगर इसे पार्टी का कचरा साफ़ करने का मौका समझकर आगे बढ़ेंगे तो पता नहीं क्या- क्या साफ हो जाएगा। एक तरफ सरकार चला रही पार्टी अपने पुराने तेवर में लौटकर गदगद है …। और दूसरी तरफ विपक्ष में बैठकर भी इनके पुराने तेवर नहीं जा रहे हैं। बढ़िया मैदान…. बढ़िया गेंद…. बढ़िया बैट.. बढ़िया खिलाड़ी…. और मन माफ़िक दर्शक भी हौसला बढ़ाने को तैयार हैं । फिर भी अगर जीतने का इरादा और पूरी टीम की एकजुटता को ढूंढ़ना पड़े तो भूसे के बोरे से सुई निकालना मुश्किल काम लगता है। आपस में बंटे हुए खेमे कभी इस नारे का मतलब नहीं समझ पाते कि आपस में बंटेंगे तो शहर से कटेंगे….।
सोमू दद्दा की बात को लपकते हुए रिटायर अफ़सर लालाजी बोलने लगे – भई मुकाबला बढ़िया है….। दोनों ही पार्टियों के लिए बढ़िया मौका है…। और शहर के लोगों को भी यह तय करने का मौका है कि ऐसा मेयर चुनकर लाएं जो न्यायधानी की गरिमा – इसकी पहचान के अनुरूप हो…। जिसकी अगुवाई में यह शहर किसी से भी पीछे ना रहे….।
मेयर केंडीडेट को लेकर बुज़ुर्गों के बीच शायद आगे भी कोई बात होती। लेकिन उधर सूरज आसमान में ऊपर चढ़ चुका था और दिन के उजाले में सब कुछ साफ नज़र आने लगा था । चत्तन चाचा ने एक नज़र घुमाकर चारों तरफ देखा और बोले – भई घड़ी को भी देखो…। चुनाव में तो अभी वक्त है। लेकिन अभी तो घर जाने का वक्त है…। बाक़ी बात कल कर लेंगे…। अब चलें…।