Bilaspur News

चुनावी बहस में चत्तन चाचा क्यों बोले – उड़ जाएगा “सफेद कबूतर”…. ?

त्तीसगढ़ के दूसरे बड़े शहर…. न्यायधानी बिलासपुर के एक गार्डन का सीन है….। सुबह – सुबह सूरज निकला है… धीरे – धीरे ऊपर चढ़ रहा है…। जिसकी हल्की गरमाहट का अहसास होते ही कुछ बुजुर्ग गार्डन की बेंच पर तशरीफ़ रखते हुए मार्निंग वॉक पर अल्पविराम लगाकर गपशप का सिलसिला शुरू कर रहे हैं…। शुरूआत में ही चत्तन चच्चा ने नगर निगम चुनाव का ज़िक्र छेड़ दिया ।

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बोले –  “भई बिलासपुर में तो मेयर की सीट ओबीसी के लिए रिज़र्व हो गई है। ऐसे में क्या समीकरण बनेगा…? बिलासपुर में इसके पहले दो बार मेयर की कुर्सी ओबीसी के लिए रिज़र्व हो चुकी है । एक बार 1999 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले निगम चुनाव में ओबीसी सीट थी, तब बीजेपी की टिकट पर उमाशंकर जायसवाल ने कांग्रेस के बैजनाथ चंद्राकर को हराया था।

दूसरी बार 2014 के चुनाव के समय बीजेपी के ही किशोर राय ने कांग्रेस के रामशरण यादव को हराकर ओबीसी के लिए रिज़र्व मेयर की कुर्सी पर कब्जा कर लिया था । पता नहीं इस बार क्या होने वाला है ?”

चत्तन चच्चा की बात को गेंद की तरह लपकते हुए लल्लन काका अपनी पोपली आवाज़ में बोल उठे- “ इस बार तो निगम का चुनाव काफ़ी दिलचस्प होने वाला है। यहां तो बीजेपी के पांच -पांच दिग्गजों की इज्जत दांव पर लगने वाली है।

उनको ख़ुद आगे बढ़ना है तो अपने – अपने इलाके में अधिक से अधिक वार्ड में पार्टी को जिताकर लाना होगा और महापौर चुनाव में भी कमल खिलाना होगा। बीजेपी में भी अब पहले जैसा दौर नहीं रहा…। मौक़ा कोई भी हो … पहले जैसे किसी की चलती नहीं…। रिजल्ट देना पड़ता है। ऊपर के लोग हालात पर लगातार नज़र रखे हुए हैं…।

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उनको सिर्फ़ जिताऊ केंडीडेट चाहिए…। ऊपर वाले इस मामले में किसी की नहीं सुनते । विधानसभा चुनाव की बात हो…. मंत्री पद बांटने का समय हो…. या लोकसभा चुनाव की बात हो… हर जगह इसकी मिसाल मिल जाएगी। अब मतलब सिर्फ़ रिज़ल्ट से है । इस गणित में किसी की नाम- चेहरा – मोहरा कहीं फ़िट नहीं होता…।अगर फ़िट होता है तो सिर्फ विनिंग केंडीडेट…।”

सुबह – सुबह मौसम की ठंडक को मात देते हुए आगे बढ़ रही गरमागरम बहस में अब एक और ट्विस्ट आने वाला था…..। अबकि बार सोमू दद्दा बोल उठे – केंडीडेट तय करते समय इतना कड़ा इम्तहान होगा तो क्या इस बार “सफ़ेद कबूतर” के लिए कोई गुंजाइश नहीं बचेगी….?

इतना सुनते ही मफ़लर – टोपा से ढंके बुज़ुर्गों के चेहरे खिल उठे और गार्डन में ठहाके  गूंजने लगे….। गरमाहट थोड़ी और बढ़ी, इधर दद्दा बोलते रहे… भई बात मज़ाक की नहीं है। इसकी संज़ीदगी को समझिए…।

सफ़ेद कबूतर प्रेम, शांति,पवित्रता,आज़ादी ,ईमानदारी और वफ़ादारी का प्रतीक है। शकुन शास्त्र कहता है घर में सफ़ेद कबूतर का आना शुभ माना जाता है । ऐसा माना जाता है कि सफ़ेद कबूतरों का आना घर में सुख-शांति लाता है ।

कबूतर को मां लक्ष्मी का भक्त माना गया है ।कबूतर के घर आने से सकारात्मक ऊर्जा आती है और नकारात्मक ऊर्जा कम होती है ।कबूतर को दाना डालने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है । अगर घर में सफेद कबूतर अचानक नजर आए तो समझ लीजिए मां लक्ष्मी की कृपा बरसने वाली है । ऐसा माना गया है कि सफेद कबूतर दिखने का अर्थ है कि जल्दी ही आपका सोया हुआ भाग्य जागने वाला है ।

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दद्दा कबूतर के बारे में पता नहीं आगे और क्या – क्या बोलते..। लेकिन बीच में उनको टोकते हुए चत्तन चच्चा बोल पड़े – भई बात निगम चुनाव की हो रही है या सफ़ेद कबूतर की…? अंदाज़ लगाइए मेयर की टिकट किसको मिल सकती है.. सफेद कबूतर को उड़ा दीजिए…।

जैसे – जैसे सूरज ऊपर उठ रहा था वैसे – वैसे कोहरा छंटता जा रहा था और बुजुर्गों की बहस भी खुलने लगी थी…। लल्लन काका ने माइक थाम लिया और बोले – सफेद कबूतर पालने का शौक पुराना है । कबूतर उड़ाने का शौक भी पुराना है। इसके बिना बात कैसे पूरी हो सकती है। देखते जाइए – सफेद कबूतर का किरदार आपको कहीं ना कहीं दिखाई दे जाए तो हैरत मत कीजिएगा…। जो पहले भी ओबीसी सीट पर पार्षद बन चुके हैं…। पार्टी में पुराने हो चुके हैं और संगठन में भी बड़े ओहदे संभाल चुके हैं…. उनका दावा तो बनता ही है…।

अब बारी सोमू दद्दा की थी । उन्होने ही चुनावी बहस में कबूतर की एंट्री कराई थी। आगे बोले – आप जानते ही हो कि सफेद कबूतर क्यों शुभ माने जाते हैं..। अपनी इस खूबी की वज़ह से ही बेरोक टोक भीतरखाने तक अपनी पहुंच बना लेते हैं और शायद इसीलिए बड़े से बड़े ओहदे तक पहुंचने के लिए दरवाजा खुल जाता है।

भले ही छत्तीसगढ़ी बोल ना पाएं…. लेकिन ओहदा और संगठन चलाकर दिखा देते हैं…। है ना कमाल की बात…। अब निगम को भी चलाकर दिखा सकते हैं…। ऐसा दावा क्यों नहीं कर सकते..?

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अपने साथियों की बात बड़ी देर से सुन रहे बुजुर्ग रिटायर अफ़सर लालाजी से अब रहा नहीं गया…। और उनके मुंह से निकला.. यही तो फ़र्क है भाईसाहब । संगठन चलाने और निगम चलाने में…। मनोनयन और चुनाव मैदान में भी बड़ा अंतर है….।

वोटर के बीच पहुंचकर केवल सर्टिफिकेट से काम नहीं चलेगा । विपक्षी दल का भी सामना करना पड़ेगा…। विपक्षी पार्टी तो पहले से ही तैयारी कर रही है और ओबीसी के आरक्षण में कटौती को मुद्दा बना रही है। चुनाव के मैदान में तो सभी तरह की बात होती है। अगर विपक्ष ने यह जुमला उछाल दिया कि हमारे “पिछड़े केंडीडेट” को छत्तीसगढ़ी बोलकर वोट मांगना पड़ेगा तब तो सारा भेद खुल जाएगा … औऱ सफेद कबूतर हाथ से उड़ जाएगा।

छत्तीसगढ़ी बोली- भाषा- संस्कृति – रहन सहन – खानपान का मुद्दा भूपेश सरकार के समय बहुत पॉपुलर हुआ था..। क्या चुनाव में इसका असर नहीं हो सकता…? नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव से पहले ही ओबीसी का मुद्दा गरमा रहा है । क्या ऐसे में कोई भी पार्टी बड़ा रिस्क ले सकती है…?

गार्डन की बेंच पर चल रही बहस कबूतर पर ही सिमट गई थी…औऱ रिस्क के सवाल पर आकर अटक गई थी….। यह ऐसा सवाल था जिसके सही जवाब के लिए आने वाले समय का इंतज़ार करने के अलावा और कोई चारा नहीं था…।

मेयर केंडीडेट को लेकर बुज़ुर्गों के बीच शायद आगे भी कोई बात होती। लेकिन उधर सूरज आसमान में ऊपर चढ़ चुका था और धुंध छटने की वज़ह से पेड़- पौधों की हरियाली साफ नज़र आने लगी थी…।

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चत्तन चाचा ने एक नज़र घुमाकर चारों तरफ देखा और बोले – भई घड़ी को भी देखो…। चुनाव में तो अभी वक्त है। लेकिन अभी तो घर जाने का वक्त है…। बाक़ी बात कल कर लेंगे…। अब चलें…।

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