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अधिसूचना का प्रकाशन..परिसीमन के खिलाफ पूर्व विधायक ने हाईकोर्ट गुहार को बताया…शासन ने किया दावा आपत्ती को दरकिनार

बिलासपुर— पूर्व विधायक शैलेष पाण्डेय ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अतिरिक्त याचिका पेश कर कोर्ट को बताया कि शासन ने जनहित और दावा आपत्तियो को दरकिनार कर  जल्दबाजी में अधिसूचना का प्रकाशन किया है। शासन के गलते फैसले से  बिलासपुर की पांच लाख जनता को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। पूर्व विधायक ने कहा कि जनहित के खिलाफ फैसला किसी भी सूरत में बर्दास्त नहीं है। अंतिम सांस तक लडूंगा।
पूर्व विधायक शैलेष पाण्डेय ने बताया कि शासन ने जून महीने में निकाय चुनाव के मद्देनजर समूचे प्रदेश में परिसीमन को लेकर आदेश जारी किया। जबकि परिसीमन की जरूरत नहीं थी। बावजूद इसके शासन ने बिलासपुर की पाँच लाख जनता को परेशानी के कुंए में धकेला है। नए परिसीमन से जनता को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
 पूर्व विधायक शैलेश ने बताया कि कांग्रेस ब्लॉक अध्यक्ष विनोद साहू,मोती थारवानी,जावेद मेमन,अरविंद शुक्ला के साथ परिसीमन के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर किया। लेकिन शासन ने सत्ता का दुरुपयोग करते हुए दावा आपत्तियों को दर किनार कर प्रकाशन करवा दिया है।
शेलेष पाण्डेय के अनुसार कोर्ट का दरवाजा खटखटाने से पहले जिला काग्रेस कमेटी ने शासन के सामने कलेक्टर के माध्यम से दावा आपत्ती पेश किया। लेकिन शासन ने आपत्तियों को दरकिनार कर परिसीमन को लेकर अधिसूचना जारी कर दिया है। जबकि परिसीमन को लेकर उच्च न्यायालय में अंतिम बहस होने वाली है। पूर्व विधायक के अनुसार अधिसूचना के बाद हाईकोर्ट में दूसरी याचिका पेश कर अध्यादेश पर रोक लगाए जाने के साथ निगम चुनाव पूर्व की स्थिति मे कराए जाने को कहा है। शैलेष ने कहा कि जनहित की लड़ाई अंतिम सांस तक लड़ेंगे। हमें न्याय के मंदिर में पूरा भरोसा है।
शैलेश के अनुसार शासन ने 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन किए जाने की बात कही है। जबकि पांच साल पहले ही बिलासपुर नगर निगम का परिसीमन किया गया था। एक बार फिर जनता को परेशान करने के लिए नए परिसीमन का आदेश जारी किया है। जबकि इसकी जरूरत ही नहीं थी। अधिकारियों ने शासन के दबाव में मनमाने ढंग से गलत परिसीमन किया है। निगम की जनता ने दावा आपत्ती कर नए परिसीमन का विरोध किया। जनहित याचिका दायर कर नए परिसीमन पर रोक लगाए जाने की बात कही। बावजूद इसके राज्य शासन ने  अंतिम फैसला आने से पहले ही अधिसूचना कर दिया। हमने एक बार फिर याचिका पेश कर आध्यादेश पर स्टे दिए जाने की बात कही है।
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