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खांसी सिरप की गुणवत्ता प्रकरण पर मुख्य सचिव की बैठक

चिकित्सकीय सलाह और निर्धारित खुराक के अनुसार ही दवा लेने के लिए आमजन को करें जागरूक - मुख्य सचिव

जयपुर। मुख्य सचिव सुधांश पंत ने सोमवार को शासन सचिवालय में खांसी सिरप की गुणवत्ता प्रकरण के संबंध में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की बैठक ली।

उन्होंने निर्देश दिए कि राज्य में खांसी की दवा के वितरण और उपयोग पर सख्त निगरानी रखी जाये और अमानक पाई जाने पर दवा निर्माताओं के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाये। उन्होंने कहा कि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं में किसी भी लापरवाही की स्थिति में जिम्मेदारी तय की जाएगी।

मुख्य सचिव ने कहा कि राज्य सरकार का प्रमुख उद्देश्य नागरिकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करना है। उन्होंने कहा कि आमजन को केवल चिकित्सक की सलाह और निर्धारित खुराक के अनुसार ही दवा लेने के लिए जागरूक किया जाए।

उन्होंने प्रदेश में चिकित्सक, फार्मासिस्ट और स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा दवा प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया जाना सुनिश्चित करने के भी निर्देश दिये।

श्री पंत ने विशेष रूप से बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए संभावित हानिकारक दवाओं पर सतर्क चेतावनी अंकित करने के निर्देश दिएं। साथ ही डोर-टू-डोर सर्वे और आईईसी गतिविधियों के माध्यम से जनजागरूकता अभियान तेज करने के निर्देश दिये ताकि लोग बिना चिकित्सकीय परामर्श दवाइयों का सेवन न करें। 

चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की प्रमुख शासन सचिव  गायत्री राठौड़ ने बैठक में बताया खांसी की दवा की गुणवत्ता का प्रकरण सामने आते ही विभाग द्वारा इस दवा के सभी बैचों के उपयोग एवं वितरण पर रोक लगा दी थी।

साथ ही दवाओं के उपयोग को लेकर एडवाइजरी जारी कर व्यापक स्तर पर जागरूकता के लिए कदम भी उठाए जा रहे हैं।

दवायां लिखने एवं उपयोग को लेकर चिकित्सक, फार्मासिस्ट एवं आमजन की वृहद स्तर पर काउंसलिंग की जा रही है। खांसी की सीरप के उपयोग के स्थान पर अन्य वैकल्पिक उपायों से उपचार पर जोर दिया जा रहा है।

श्रीमती राठौड़ ने बताया कि मौसमी बीमारियों के दृष्टिगत प्रदेश में सीएचओ, एएनएम एवं आशा के माध्यम से डोर-टू-डोर सर्वे किया जा रहा है। इस सर्वे के दौरान खांसी, जुकाम एवं बुखार के लक्षण वाले रोगियों को चिन्हित करने के साथ ही आमजन को आईईसी गतिविधियों के माध्यम से जागरूक किया जा रहा है कि वे किसी भी तरह की बीमारी के मामले में घर पर रखी किसी दवा का उपयोग नहीं करें।

नजदीकी चिकित्सा संस्थान जाकर चिकित्सक से परामर्श लें एवं चिकित्सकीय सलाह के अनुसार ही दवाइयों का सेवन करें। विशेषरूप से बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को बिना चिकित्सक के परामर्श के कोई दवा नहीं दें। घर में रखी दवाओं को बच्चों की पहुंच से दूर रखें। 

उन्होंने बताया कि दवा के उपयोग, बच्चों में सामने आ रहे लक्षणों एवं विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत जांच करने के लिए तकनीकी समिति भी गठित कर दी है। यह समिति बच्चों में सामने आ रहे लक्षणों, उन्हें दिए जा रहे उपचार सहित विभिन्न पक्षों पर जांच एवं अनुसंधान कर रही हैं।

उन्होंने बताया कि प्रदेश के नामी शिशु रोग विशेषज्ञों एवं अन्य विशेषज्ञों से भी इस प्रकरण को लेकर चर्चा की जा रही है।

कई विशेषज्ञों ने अवगत भी कराया है कि इस मौसम में बच्चों में कई बार दिमागी बुखार, निमोनिया, सांस में तकलीफ जैसे मामले सामने आते हैं, जिनसे बच्चों की मौत हो जाती है। हमारा प्रयास है कि बच्चों की मौत के वास्तविक कारणों का पता लगाया जाए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं नहीं हो और बचाव के लिए आवश्यक उपाय सुनिश्चित किए जा सकें।

विगत दिनों भरतपुर, सीकर एवं अन्य स्थानों पर मुख्यमंत्री निःशुल्क दवा योजना में आपूर्ति की जाने वाली औषधि Dextromethorphan HBr Syrup IP 13.5mg/5ml की गुणवत्ता का मामला सामने आया है। शिकायत प्राप्त होने पर विभाग ने तत्काल प्रभाव से शिकायती बैचों के वितरण व उपयोग पर रोक लगा दी। साथ ही, इन बैचों के वैधानिक नमूने लेकर गुणवत्ता जांच के लिए राजकीय औषधि परीक्षण प्रयोगशाला भिजवाया गया। तीनों ही प्रकरणों में जाँच में चिकित्सक द्वारा उक्त दवा लिखे जाने एवं दिए जाने की पुष्टि प्राथमिक जांच में नहीं हुई है।

उन्होंने बताया कि सतर्कता बरतते हुए एहतियात के तौर पर फिर भी केंद्र सरकार ने वर्ष 2021 में एडवाइजरी जारी कर 4 साल से छोटे बच्चों को डेक्स्ट्रोमैथोरपन दवा नहीं देने के लिए कहा था। इसके क्रम में राज्य सरकार ने भी एडवाइजरी जारी की है। गत शुक्रवार को ड्रग कंट्रोलर आफ इंडिया ने पुनः एक एडवाइजरी जारी कर कहा है कि सामान्यतः 5 साल से बड़े बच्चों को ही यह दवा दी जाए। विशेषकर 2 साल से छोटे बच्चों को किसी भी स्थिति में यह दवा नहीं दी जाए। प्रदेश में भी इस एडवाइजरी की सख्ती से पालना के निर्देश दिए गए हैं। 

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