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CG NEWS: स्कूल/शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण की तलवार अभी लटकी है…. विभाग में नज़र आ रहे कई और “साइड इफेक्ट”

CG NEWS:बिलासपुर ( मनीष जायसवाल)  ।सवा दो लाख के करीब नियमित और लगभग एक लाख संविदा, अनियमित, दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी वाले राज्य के स्कूल शिक्षा विभाग में पूर्ण कालिक मंत्री नही होने के साइड इफेक्ट अब धीरे धीरे सामने आ रहे है।

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अव्यवस्था और अफसर शाही लोक शिक्षण विभाग में अब हावी होते जा रही है…। कई व्यवस्था से जुड़े कार्यक्रम, नीतियां, निर्णय टालमटोल नीति पर चल रहे है।जिससे व्यवस्थाएं चरमरा रही है..! नजदीक से देखने पर विभाग के गलियारों के बहुत से किस्से है कई कहानियां है। सबसे ताजा किस्सा स्कूलों और अतिशेष शिक्षको के युक्ति युक्तकरण का है..! यह सियासत से जुड़ी किसी फिल्म का हिस्सा लगता है । इसमें तीर कोई चलEता है ..। घायल कोई और होता है..। आरोप किसी और पर लगते है…।

अभी फिलहाल स्कूल शिक्षा विभाग में पूर्ण कालिक भरपूर समय देने वाला  मंत्री नही है। इसलिए अभी स्कूल शिक्षा मामलो के जमीनी स्तर से जुड़े सलाहकारो की टीम भी नही है। जो नीतियों के क्रियान्वन में अपनी राय शुमारी देते रहते  ।

यही वजह है कि निकाय और पंचायत के चुनावी साल में युक्ति युक्तिकरण की टाइमिंग को लेकर ध्यान नहीं दिया गया….। वही दुसरी ओर युक्ति युक्तिकरण के आदेश जारी होने के बाद उसे रद्द करने का आदेश निकलने के बजाय मौखिक आदेश से रोक दिया गया..! मौखिक आदेश मतलब तलवार तो लटकी हुई ही है। ऐसे में सियासती लाभ हानि का सूत्र  यहां काम करता ही कहां है ..?

स्कूल शिक्षा का हाल यह है कि निलंबन के बाद बहाली के ही कई मामले राज्य स्तर के अटके हुए है। जांच पूरी हो चुकी है फाइलें धूल खाती हुई पड़ी है।

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बिना काम के तनख्वाह ऐसे कर्मचारियों को दी जा रही है। जिससे संबंधित कार्यलय का काम अलग प्रभावित हो रहा है। ठीक ऐसे ही न्यायालय प्रकरण है तो निराकृत हो चुके हैं। जिनके निर्णय विभाग को लेना है आदेश देना है वह भी फाइलों में फंसे हुए हैं।

शिक्षको के ट्रांसफर, नियुक्ति, पदोन्नति भी मनमाने ढंग से चल रही है। शिक्षक से व्याख्याता के लिए की जानी वाली पदोन्नति के लिए 14 महीने में अंतिम वरिष्ठता सूची नही बन पाई है ।

जो अब तक बनी भी उसमें ढेरो गलतियां मिली है। ठीक ऐसे ही प्रदेश में बड़ी संख्या में हाई और हायर सेकंडरी स्कूल प्रभारी प्राचार्य के भरोसे चल रहे है। प्राचार्य और सहायक संचालक स्तर की पदोन्नति सूची बनने के बाद डीपीसी अटकी हुई है।

यही हाल जिले और संभाग स्तर पर हो रही पदोन्नति को लेकर भी है इससे लिए कोई नई और स्पष्ट गाइड लाइन को टाइम टेबल के हिसाब से नहीं बनाया गया है..। जिसका जब मन आया पदोन्नति करते जा रहे है।जिससे स्कूलों में बीच सत्र में शिक्षको की कमी हो रही है।

जिसका खामियाजा छात्र और पालक उठा रहे है। वही पदोन्नति का टाइम टेबल नही होने और यह पूरे प्रदेश में एक साथ नहीं होने की वजह से इसका कोई राजनीतिक भी लाभ भी नही दिखाई दे रहा है।

नियुक्ति ट्रांसफर को लेकर आलम यह है कि रायगढ़ और बलौदा बाजार में शिक्षा अधिकारीयों की नियुक्ति के आदेश जारी कर दिए जाते है। दाल गलती नही या दाल काली निकल जाती है। 15 दिन बाद नियुक्ति आदेश रद्द कर दिए जाते है..!

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जबकि सामान्य प्रशासन विभाग का आदेश है कि अधिकारी-कर्मचारियों के तबादले का आदेश प्राप्त होने के पांच दिन के बाद छठवां दिन कार्यमुक्त माना जाएगा। पांच दिन के भीतर भी पदभार ग्रहण नहीं करने पर अगले दिन से उनकी नियुक्ति नवीन पदस्थापना के स्थान पर मानी जाएगी।

अगस्त के आखरी हफ्ते में तो सहायक शिक्षक के ट्रांसफर मामले में गजब तीर चलाया गया । एक हाई फाई सहायक शिक्षक को दंतेवाड़ा जिले के कुआ कोण्डा विकासखंड के किसी स्कूल से स्वैच्छिक आधार पर ट्रांसफर करते हुए सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले के बरमकेला विकासखंड में ट्रांसफर कर दिया गया है।

ऐसे में इसका नियोक्ता शिक्षक के वेतन आहरण पर कौन सा नियम लगाएगा। सहायक शिक्षक का पद ट्रांसफर के लिए जिला स्तर का होता है। ऐसे ट्रांसफर बिना एजीवदार के नही हो सकते है। वही अब इस ट्रांसफर से दंतेवाड़ा में एक शिक्षक का पद कम हो गया।

चूंकि मुख्यमंत्री के पास स्कूल शिक्षा विभाग का अतिरित प्रभार के अलावा  कई विभाग है। उन पर फाइलों का दबाव है। ऊपर से दो मंत्रियों की कमी अलग से है। लगता है इसीलिए कई चीजे उनकी खुद नज़र से छूट जा रहीं है। इसलिए कहीं न कही व्यवस्था में छेद होता दिखाई दे रहा है।

जिसका फायदा उठाते हुए कुछ व्यवस्था के जिम्मेदार लोग स्कूल शिक्षा विभाग को सुर्खियों में बनाए रखते हुए विपक्ष के हाथ में सिर्फ स्कूल शिक्षा विभाग से ही एक के बाद एक मुद्दे देकर सरकार के लिए परेशानी खड़े करते हुए साय सरकार के सुशासन पर सवाल खड़े कर रहे है।

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वही सत्ता के रणनीतिकार दो रिक्त मंत्री पद को अपने पार्टी के सिस्टम के मैनेजमेंट के नजरिया से देख रहे हो। लेकिन स्कूल शिक्षा का मैनेजमेंट पर पार्टी का मैनेजमेंट भारी पड़ता जा रहा है। जिसका असर निकाय चुनाव में उल्टा दिखाई दे तो आश्चर्य नहीं होगा।

आम धारणा है अफसर शाही की गोद में बैठकर सियासत नहीं होती जिसे दो पूर्व मुख्यमंत्री ने नजदीक से महसूस किया है।

अगर फिल्म के नजरिए से देखा जाए तो अब तक इस युक्ति युक्तिकरण से ही निकला संदेश कई और भी संघ समूह को बागी बनने के लिए को हौसला अलग देता हुआ दिखाई दे रहा है।वही फिल्म के मुख्य किरदार और रोल प्ले करने वाले को कमजोर साबित होता हुआ दिखाई दिया है।

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