
सिर्फ़ नेतृत्व परिवर्तन से “मोदी की भाजपा” का विकल्प नहीं बन पाएगा “इंडिया” गठबंधन…
“”न रूकी वक्त की गदिॅशें
न जमाना बदला
पेड. सूखा तो परिदों ने
ठिकाना बदला “।।।—-
भारतीय राजनीति मे कुछ अन्तराल मे एक सुगबुगाहट नेतृत्व को लेकर होती है। विशेषकर वो माईनस कांग्रेस नेतृत्व माईनस भाजपा से पृथक है विचार रहता है । अभी पुनः एक बहस फ्लोर मे है ।बड़ी-बड़ी मशक्कत के बाद इंडिया गठबंधन 2024 लोकसभा चुनाव के पूर्व सब लोगों की सहमति से बनाया गया था ।जिसका नेतृत्व कांग्रेस कर रही थी ।2024 लोकसभा चुनाव में भी इस गठबंधन में एकता की कमी आपसी मतभेद सामान्य रूप से कुछ राज्यों में सामने आए।जिसमें विशेष कर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन से पृथक होकर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए हुए चुनाव लड़ा । कमोबेश यही स्थिति केरल में भी थी ।वामपंथी मोर्चे और कांग्रेस में आपसी सहमति का अभाव था ।फिर भी भाजपा के विरुद्ध यह लोग सब नवगठित लोकसभा में एक साथ विरोध के लिए खड़े हुए ।
इस देश में चुनाव “सात दिन 24 घंटे चलते “हैं । लोकसभा चुनाव समाप्त होने के बाद देश के तीन राज्यों में विधानसभा का चुनाव संपादित हुआ। हरियाणा ,महाराष्ट्र और में कांग्रेस के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया । कांग्रेस के लोकसभा में 2019 से बेहतर प्रदर्शन होने 50 से 100 होने के कारण अतिरिक्त उत्साह और आत्मविश्वास से लवरेज नेतृत्व था ।नेतृत्व ने एक धारणा बना ली थी कि इन दोनों राज्यों में आम मतदाता हमारे साथ है और हमारी सरकार इन राज्यों में बनेगी ।यह नेतृत्व का अतिविश्वास था जैसे कि लोकसभा चुनाव में माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी एवं भारतीय जनता पार्टी को था 400 सीट का ….। उनको उनके अनुमान के अनुसार सफलता नहीं मिली ।वैसे ही आदरणीय राहुल गांधी जी को हरियाणा और महाराष्ट्र की जनता ने सिरे से नकार दिया ।जब आप पूर्वाग्रह अवधारणा बनाकर चलते हैं तो इसमें अनुमान गलत साबित होते है ।क्योंकि आपको जो अच्छा लगता है वह सुनते हैं और जो आपके समर्थन में है वही देखते हैं। आम मतदाता क्या सोचता है वह हमारी पकड़ से दूर हो जाता है ।यही हुआ हरियाणा और महाराष्ट्र राज्य के चुनाव में ।सारे राजनीतिक पंडित फेल हो गए ।जो हरियाणा में सुनामी की बात कर रहे थे उनको अभी भी यकीन नहीं है कि हरियाणा में कांग्रेस की सरकार नहीं है। फिर अपने को झूठा दिलासा दिलाने के लिए EVM पर आरोप लगाकर चेहरा छुपाने लगते हैं ।
EVM पर आरोप कभी भी जनता को अपील नही करती ।यहां तक आरोप लगाने वालों को भी….। वो भी इस हकीकत से वाकिफ रह्ते है ये झुठा आरोप है । “मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शेर है हमें मालूम है “जन्नत की हकीकत” साथ ही आरोप के पीछे यह आशय रहता है । अपने असफल अकुशल नेतृत्व का बचाव करना यह एक हकीकत है। राजनीतिक लोगों में धैर्यैता की कमी बहुत रहती है वो सत्तासीन होने के लिए हमेशा आतुर रहता है । तब उसे या लगता है कि हम जो सत्ता से दूर है वह हमारे अकुशल अयोग्य नेतृत्व के कारण हैं और उसमें परिवर्तन की इच्छा तीव्रता से जागृत हो जाती है । यह प्राकृतिक सिद्धांत है। समर्थक और नेता इस नेतृत्व के पीछे चलते हैं जो सफल हो तब विकल्प की खोज होती है ।ऐसे ही विकल्प के रूप में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री माननीय ममता बनर्जी की ओर आशा भरी नज़रों से समूचा इंडिया गठबंधन देख रहा है ।तब जेहन में यह बात आती है कि क्या ममता बनर्जी का नेतृत्व आशा का संचार इंडिया गठबंधन में कर पाएगा ?
जबकि ममता बनर्जी का नेतृत्व पश्चिम बंगाल के क्षेत्र से लगे हुए अन्य राज्यों में भी अपना नेतृत्व देने में असफल रहा है। पश्चिम बंगाल में जरूर उसका स्ट्राइक रेट 75% प्रतिशत है ।भाजपा के विरुद्ध पर अन्य राज्य मे कुछ भी नही है । कांग्रेस का स्ट्राइक रेट जिन राज्यों में भाजपा से उसकी सीधी लड़ाई है लोकसभा चुनाव में स्ट्राइक रेट 10% भी नहीं रहा । उन राज्यों में भी जहां कांग्रेस की राज्य सरकार है जैसे हिमाचल, राजस्थान और कर्नाटक में भी मुश्किल से 50% ही था । लोकसभा चुनाव में 50 से 100 सीट होने पर कांग्रेस का अति आत्मविश्वास का परिणाम हरियाणा और महाराष्ट्र के रूप में सामने आया जहां उसे सिरे से खारिज कर दिया गया।क्या कारण है कांग्रेस के नेतृत्व में मतदाता को विश्वास नहीं है। वह जनता में जज्बा पैदा नहीं कर पाता ।इसका आत्म अवलोकन कांग्रेस को अवश्य करना चाहिए ।लोकसभा चुनाव में जनता के मध्य उनके विश्वास की कमी हो गई है। किसी को भी इतने बड़े देश में ₹10000 महीना प्रत्येक महिला के खाते में दिए जाने की घोषणा करना “चिट फंड” कंपनी के जैसे अविश्वासी है और धोखा प्रथम दृष्टि में ही प्रतीत होता है ।जनता मूर्ख नहीं है यह उसने हमेशा साबित किया है क्या ?तब भी ममता बनर्जी के इंडिया गठबंधन का नेतृत्व संभालने के बाद देश में कोई गर्माहट या कोई जज्बा या कोई आशा एक क्रांतिकारी परिवर्तन के रूप में इंडिया गठबंधन सामने लाने में सक्षम होगा ?
आपको याद होगा गैर कांग्रेस और गैर भाजपा के बिना स्वर्गीय माननीय तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार बनी ।जो 2 दिसंबर 1989 को शपथ ली और 7 नवंबर 1990को विश्वनाथ प्रताप सिंह जी ने त्यागपत्र दे दिया ।यह प्रथम प्रयोग था जब कांग्रेस से ही कुछ लोग निकले और वहां जन मोर्चा और जनता दल के सहयोग से सरकार का गठन किए ।जिसमें भारतीय जनता पार्टी बाहर से समर्थन दे रही थी पर सरकार में शामिल नहीं हुए थे ।भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय माननीय चंद्रशेखर जी ने अपनी आत्मकथा “जिंदगी का कारवां” मैं लिखा है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार आरम्भ से ही कपट पूर्वक बनाई गई थी षचंद्रशेखर जी विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रधानमंत्री बनने के खिलाफ थे ।उन्हें कहा गया कि देवी लाल जी प्रधानमंत्री बनेंगे और संसदीय दल में चंद्रशेखर जी ने देवीलाल का नाम प्रस्तावित किया। फिर एक योजना के तहत देवीलाल जी ने स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप सिंह का नाम प्रस्तावित किया ।परंतु चंद्रशेखर जी बैठक से बाहर चले गए और उन्हें यह पसंद नहीं आया। आरंभ से ही मतभेद नहीं मनभेद सामने आया ।उन्होंने अपनी पुस्तक में यह भी लिखा है कि स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप सिंह जी का योगदान सत्ता परिवर्तन में बहुत रहा। यह प्रथम अवसर था जब स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप सिंह जी ने भ्रष्टाचार को पूरे देश में एक भावनात्मक मुद्दा बना दिया बोफोर्स का ….।जो जनता के बीच में ऐसा संदेश गया कि तत्कालीन सरकार को बदलना जरूरी है । देश में एक विचार हमेशा चलती रहती है वह तीसरी शक्ति की परंतु वह वैचारिक ज्यादा है व्यावहारिक नहीं । और फिर एक उदाहरण सामने है 1989 का …।तब विश्वास नही होता है ।।
आप इस हकीकत को झुठला नही सकते कांग्रेस 100 साल की पार्टी है ।कश्मीर से कन्याकुमारी तक इस पार्टी के सक्रिय सदस्य भले ना हो पर उसके साथ तन मन से रहने वाले हर गांव में काम से कम 10 लोग जरूर मिल जाएंगे ।उसके नेतृत्व को पृथक कर कोई गठबंधन बनना मुमकिन होगा पर सफल नही ?जमीन मे माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी के भाजपा के नेतृत्व को चुनौती देना सिर्फ नेतृत्व परिवर्तन से संभव नहीं है। आपको धरातल में वह सारी बातें सामने रखना पड़ेगा जिन्हें मोदी जी ने मेहनत समर्पण से देश को दिया है।प्रथम जनहित में लाभान्वित कार्य आम जन जिनके सपनों को उन्होंने पंख दिया साकार किया साथ ही सेना का मनोबल ऊंचा किया राष्ट्रवाद ।देश में समर्पित भाजपा कार्यकर्ताओं की फौज ईमानदार और पारदर्शिता पूर्ण सरकार।।कांग्रेस नेतृत्व को आत्म अवलोकन आत्म विश्लेषण करना जरूरी है क्यों जनमानस उनके विरुद्ध है ।
आज के दौर में 24 घंटा का खबरिया चैनल, सोशल मीडिया, व्हाट्सएप से लोग बहुत शीघ्र हकीकत से रूबरू हो जाते हैं ।जनता की मनोदशा को समझना जरूरी है ? आपने भारत जोड़ो यात्रा भी जनता की भावना समस्या को समझने के बजाय सिर्फ आडानी अंबानी को बुरा कहने मे यात्रा समाप्त कर दी। जबकि नेतृत्व को समझना चाहिए ये व्यक्तिगत बातें भावनात्मक रूप से मतदाता को अपील नहीं करती आपको मतदाता और जनता की बेहतरीन के लिए किए जाने वाले कार्यक्रम के साथ जनता के बीच जाना होगा।
क्या एक और प्रयोग इंडिया गठबंधन का माननीया ममता बनर्जी का नेतृत्व कांग्रेस का नेतृत्व और देश स्वीकार करेगा ??
दीपक पाण्डेय
राजनीतिक विश्लेषक गैर पेशेवर
( कैम्प DALLAS Texas USA अमेरिका )