CG NEWS: बाकी सब ठीक है.. लेकिन प्राइवेट अस्पताल का कंधा क्यों तलाश रहा सरकारी सिस्टम..?
CG NEWS:( गिरिजेय ) अब लग रहा है कि बिलासपुर संभाग के सबसे बड़े प्राइवेट अस्पताल अपोलो में जल्द ही आयुष्मान योजना जैसी सरकार की हेल्थ स्कीम लागू हो जाएगी । जिससे गरीब – ज़रूरतमंदों को फ़ायदा मिल सकेगा। हाल के दिनों में इस सिलसिले में सार्थक पहल की गई है ।
असरदार तरीके से मुद्दा उठाने की वज़ह से लग रहा है कि जल्द ही अच्छे नतीजे सामने आएंगे । इस बात पर किसी को ऐतराज क्यों होगा कि छत्तीसगढ़ की ज़मीन पर बने इस अस्पताल में आम लोगों का इलाज़ भी होना चाहिए।
लेकिन गरीबों के इलाज़ से जुड़ी इस “उपलब्धि” की दहलीज़ पर खड़े होकर व्यवस्था के ज़िम्मेदार लोगों से कोई यह सवाल भी पूछ सकता है कि सरकारी ख़जाने से इसी बिलासपुर में बनाए गए कई बड़े -बड़े अस्पतालों की पहचान ऐसी क्यों नहीं बन पा रही है कि आम लोग उस पर भरोसा कर सकें ? और सरकार के सिस्टम को टिकने के लिए किसी प्राइवेट अस्पताल का कंधा क्यों तलाशना पड़ रहा है…. ?
आज की तारीख़ में इस हकीक़त से शायद ही कोई इंकार करे कि अचानक किसी की तबीयत बिगड़ी तो इमरजेंसी में सबसे पहले अपोलो अस्पताल का नाम सामने आता है।
लोग उम्मीद करते हैं कि किसी हादसे या आपातकालीन स्थिति में पहुंचने पर तुरत इलाज की सुविधा मिल जाएगी। गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए भी लोग इस अस्पताल पर भरोसा करते हैं। बिलासपुर की स्वास्थ सुविधा को करीब़ तीन – चार दशक पीछे झांककर भी इसकी अहमियत को समझा जा सकता है।
उस दौर में छोटे – बड़े सभी के इलाज़ के लिए सिर्फ धरम अस्पताल की सुविधा थी। इमरजेंसी या गंभीर बीमारी के इलाज़ के लिए मरीज को भिलाई के सेक्टर- 9 अस्पताल या दूसरी जगह ले जाने की मज़बूरी थी । कई बार आधे रास्ते से यूटर्न कर वापस लौटना पड़ता था और मरीज की जगह उसकी पार्थिव देह घर वापस लौटती थी। स्थानीय अख़बार हमेशा इस मुद्दे को छापते रहे हैं कि स्वास्थ सुविधा के मामले में हम इतने पीछे क्यों हैं…?
वक़्त के साथ बहुत कुछ बदला है। इमरजेंसी से लेकर गंभीर बीमारियों के इलाज़ के लिए बिलासपुर में भी अच्छे अस्पताल हैं ।
मेडिकल जांच के उपकरण और स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं। हार्ट की एंजियोप्लास्टी और बाईपास सर्जरी से लेकर घुटना ट्रांसप्लांट तक सब कुछ हो रहा है। जिसमें कई छोटे – बड़े अस्पतालों के साथ ही अपोलो की भी अपनी हिस्सेदारी है।
हालांकि तकलीफ़ की बात तो है कि अपोलो जैसे अस्पताल की सुविधाओं का लाभ सक्षम लोगों को ही मिल पाता है। बेहतर सर्विस के एवज़ में बिल की रकम भर पाने में असमर्थ गरीब़ तबके के लोगों की पहुंच वहां तक नहीं हो पाती।
आयुष्मान योजना लागू करने के लिए हाल ही में जिस तरह की पहल की गई है, उससे आस जगी है कि यह सुविधा अब गरीब़ों तक भी पहुंच सकेगी। हालांकि दूसरे अस्पतालों में आयुष्मान योजना का लाभ ज़रूरतमंदों को किस तरह मिल रहा है, इस पर भी नज़र डाली जा सकती है।
हो सकता है कि ऐसा भी सुनने को मिल जाए कि अस्पताल प्रबंधन ने आयुष्मान योजना से भी पैसा ले लिया और इधर मरीज से भी बिल वसूल कर लिया । फ़िर भी यह सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है और इसका लाभ उन लोगों को मिलना चाहिए ,जिनके लिए इसे शुरू किया गया है।
लेकिन जिस समय यह मुद्दा सुर्ख़ियों में है, ऐसे समय में व्यवस्था के ज़िम्मेदार लोगों से यह सवाल तो पूछा ही जा सकता है कि सरकारी सिस्टम स्वास्थ सुविधा के लिए प्राइवेट अस्पताल की ओर क्यों ताक रहा है ? अगर बिलासपुर की ही बात करें तो यहाँ पर सरकारी अस्पताल की सुविधा भी कम नहीं है।
मेडिकल कॉलेज का सिम्स अस्पताल है। बड़ा जिला अस्पताल है। अभी हाल ही में एक सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पीटल भी बना है। इन अस्पतालों में भारी – भरकम अमला है। आधुनिक उपकरण हैं और डॉक्टरों की फ़ौज है।
कोई आंकड़े निकाल सकता है कि मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में सरकार के ख़जाने से अब तक कितना ख़र्च हुआ है। और चाहे तो यह हिसाब भी निकाल सकता है कि इतने पैसे में अपोलो की तरह कितने अस्पताल खड़े किए जा सकते हैं।
सरकारी सिस्टम के अस्पतालों का सच मीडिया की ख़बरों के ज़रिए सामने आता रहता है। जो इस ओर इशारा करता है कि यहां की व्यवस्था से आम लोगों की उम्मीदें पूरी नहीं हो पा रही हैं। छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान के अहाते से ऐसी ख़बरें अकसर मीडिया में जगह पाती हैं, जिसे देखकर लगता है- इस संस्थान को आम लोगों की उम्मीदों के अनुरूप बनाने के लिए ही लगातार अनुसंधान और तरह – तरह के प्रयोग हो रहे हैं। हाल के दिनों में बैक – टू – बैक औचक निरीक्षण के ज़रिए व्यवस्था सुधारने की कोशिश की गई ।
अब यह ज़िम्मेदारी डीन को सौंपी गई है। तमाम कोशिशों के बावज़ूद सिम्स पहुंचने वाले मरीज और उनके परिजन बता सकते हैं कि वे सिस्टम से कितना संतुष्ट हैं ? हाल ही में बनकर तैयार हुए सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पीटल से लोगों को कितनी राहत मिलेगी यह आने वाला वक्त बताएगा।
इलाज़ के लिए सरकारी व्यवस्था को पूरी तरह से नाकाम नहीं कहा जा सकता। रोज़ाना हज़ारों लोग इस सुविधा का लाभ ले रहे हैं। सरकारी और प्राइवेट सिस्टम में अंतर तो रहेगा ही…। प्राइवेट अस्पताल अपनी सर्विस के एवज़ में मरीजों से बिल वसूल करते हैं। सरकारी अस्पतालों में बिल नहीं बनता, बल्कि सरकार अपने ख़जाने से जरूरतमंदों को सहूलियत देती है। जिससे गरीब और कमजोर तबके के लोगों को राहत मिल सके।
लेकिन गरीबों के बेहतर इलाज की चिंता में टिकने के लिए सरकारी सिस्टम को अगर किसी प्राइवेट अस्पताल का कंधा तलाशना पड़ रहा है , तो क्या यह कहना गलत होगा कि – आप ख़ुद भी ऐसा अस्पताल क्यों नहीं बना लेते… ? आपके पास भी इमारत है…. कुशल चिकित्सक है…. और आधुनिक उपकरण भी है…। जरूरत है तो सिर्फ़ कुशल प्रबंधन की….।