CG NEWS: एक ख़बर – सबसे अलग – मेयर के लिए दायरा बड़ा….टाइम कम…..और चैलेंज ज्यादा…. ! जाने पहचाने चेहरों पर सबकी नजर
CG NEWS:नगर निगम चुनाव के लिए नामांकन जमा करने की शुरुआत तीन दिन पहले हो चुकी है। लेकिन अब तक बिलासपुर नगर निगम में बीजेपी और कांग्रेस जैसी प्रमुख पार्टियों की ओर से मेयर के उम्मीदवार का नाम सामने नहीं आया है। मंथन का दौर दोनों पार्टियों में चल रहा है। लेकिन जिस तरह टाइम कम बचा है और चुनौती अधिक दिखाई दे रही है, उससे लगता है कि पांच विधानसभा क्षेत्र में फैले बिलासपुर नगर निगम के बड़े दायरे में अपनी पहचान रखने वाले ओबीसी चेहरे की तलाश में दोनों पार्टियों को बड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। दोनों पार्टियां समझ रहीं है कि अगर इस रणनीति में कोई कमी रह गई तो दिक्कत हो सकती है ।लेकिन बड़े नेताओं से नज़दीकी – उनकी पसंद और महज परिक्रमा संस्कृति में माहिर लोगों को टिकट मिली तो समीकरण अलग हो सकते हैं।
बिलासपुर नगर निगम का चुनाव इस बार कई मायनों में अहम है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि कई गांवों को शामिल किए जाने के बाद सीधे मतदाताओं के वोट से पहली बार मेयर का चुनाव हो रहा है। 2019 के चुनाव के समय भी गांवों को शामिल किया जा चुका था। लेकिन उस समय महापौर का चुनाव डायरेक्ट नहीं हुआ था। बल्कि पार्षदों के बहुमत के आधार पर मेयर चुना गया था। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि बिलासपुर नगर निगम में बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र सहित बेलतरा, बिल्हा, तखतपुर और मस्तूरी विधानसभा क्षेत्र के वार्ड भी शामिल है। जाहिर सी बात है कि ऐसे में मेयर पद के साथ कई विधायकों की प्रतिष्ठा भी जुड़ रही है। मौजूदा चुनाव कार्यक्रम के मुताबिक पार्षद और महापौर के पर्चे 28 जनवरी तक दाखिल किए जा सकते हैं। इसके बाद 29 जनवरी को नामांकन पत्रों की छानबीन होगी। 31 जनवरी तक नाम वापस लिए जा सकेंगे। इसके साथ ही यह साफ हो जाएगा की चुनाव मैदान में मुकाबला किसके बीच होगा।
चुनाव के लिए मतदान 11 फरवरी को होगा। 9 फरवरी की शाम चुनाव का शोर थम जाएगा। ऐसी स्थिति में उम्मीदवारों को प्रचार के लिए करीब 9 दिन का समय मिल रहा है। पार्षद उम्मीदवारों के लिए फिर भी दायरा छोटा हो सकता है। पार्षद पद के लिए आरक्षण की प्रक्रिया पहले पूरी कर ली गई थी । लिहाज़ा दावेदारों को कुछ समय मिल गया । लेकिन महापौर उम्मीदवार को अपनी बात रखने के लिए काफी बड़े दायरे में मतदाताओं से संपर्क संपर्क करना पड़ेगा । जाहिर सी बात है कि मेयर उम्मीदवार के लिए दायरा बड़ा है… टाइम कम है और चैलेंज अधिक नजर आ रहा है। नगर निगम की राजनीति के पुराने खिलाड़ी भी मानते हैं की ऐसी स्थिति में मेयर पद के लिए ऐसा उम्मीदवार बेहतर हो सकता है जिसका चेहरा जाना पहचाना हो और निगम की राजनीति से पुराना नाता हो। एक तरफ सकरी, सिरगिट्टी, देवरीख़ुर्द, कोनी तक के इलाके के साथ ही बिलासपुर शहर के अंदरूनी हिस्से और सरकंडा में लोगों के बीच जाना पहचाना चेहरा ही इस बार नगर निगम महापौर के चुनाव में चुनौतियों का सामना कर सकता है।
बिलासपुर नगर निगम महापौर पद ओबीसी वर्ग के लिए रिजर्व है। ऐसे में बीजेपी कांग्रेस दोनों में उम्मीदवार को लेकर मंथन चल रहा है। बिलासपुर महापौर का पद ओबीसी वर्ग के लिए रिजर्व होने के बाद से ही कई नाम सामने आ रहे हैं। लेकिन कुछ नाम ही ऐसे हैं जिनकी पहचान शहर व्यापी कहीं जा सकती है। बिलासपुर नगर निगम के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए मैदान खुला है। दोनों पार्टियों जोखिम उठाए बिना उम्मीदवार का नाम तय करती है तो नगर निगम की राजनीति से जुड़े पुराने चेहरे फिर सामने आ सकते हैं। गौर तलब है कि 2014 के चुनाव में भी बिलासपुर नगर निगम महापौर का पद ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित था। उस समय आसपास गांव के इलाके निगम में शामिल नहीं हुए थे। 2014 में भी मतदाताओं के वोट से मेयर का चुनाव डायरेक्ट हुआ था। उस चुनाव में बीजेपी की ओर से किशोर राय और कांग्रेस की ओर से रामशरण यादव के बीच मुकाबला हुआ था। बीजेपी ने यह चुनाव रिकॉर्ड वोट के अंतर से जीता था। मेयर रहते हुए किशोर राय ने शहर में अपनी पहचान बनाई और उनका कार्यकाल निर्विवाद रहा। पार्टी इस बार भी दांव लगाती है तो कड़ी चुनौती पेश कर सकती है।
इस बार चुनावी माहौल की शुरूआत में ही कांग्रेस ने प्रदेश में आरक्षण को लेकर ओबीसी वर्ग के साथ अन्याय का मुद्दा उठाया है। चुनाव में आगे इसका कितना असर होगा, यह आने वाला समय बताएगा। लेकिन ऐसा मानने वाले लोग अधिक है कि इत्तफ़ाक से बिलासपुर मेयर पद ओबीसी के लिए रिज़र्व है । लिहाजा बिलासपुर मेयर केन्डीडेट तय करते समय यह देखना भी अहम होगा कि जो भी नाम सामने आए, उसका जुड़ाव लोकल स्तर पर ओबीसी समाज के बड़े हिस्से के साथ हो। इस कड़ी में बीजेपी शिविर में पूर्व महापौर किशोर राय सहित लक्ष्मी नारायण कश्यप, श्याम साहू , विनोद सोनी, दुर्गा सोनी, शैलेन्द्र यादव जैसे नाम चर्चा में रहे हैं। लेकिन बीजेपी इन नामों से अलग किसी अन्य चेहरे पर दांव लगाने का रिस्क भी ले सकती है। लिस्ट ज़ारी होने के ठीक पहले जिन नामों की चर्चा हो रही है, उससे कुछ इसी तरह के संकेत मिल रहे हैं। ओबीसी तबके को लेकर चल रही सियासत के बीच बीजेपी के इस दांव से किस तरह के समीकरण बनेंगे – इसके लिए वक्त का इंतज़ार करना पड़ेगा ।
दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए भी एक मौक़ा है कि बिलासपुर नगर निगम महापौर पद पर कब्जा बरकरार रखने के लिए मैदान में उतरे। कांग्रेस के पास यह कहने का भी मौक़ा है कि 2019 में महापौर का पद अनारक्षित था फिर भी पार्टी ने रामशरण यादव के रूप में ओबीसी महापौर दिया। इस बार भले ही कांग्रेस के मेयर उम्मीदवार के लिए प्रमोद नायक का नाम तय माना जा रहा है। लेकिन कांग्रेस में रामशरण यादव सहित भास्कर यादव, शैलेन्द्र जायसवाल, विनोद साहू जैसे कई दावेदार हैं । ज़ाहिर सी बात है कि पांच साल तक लगातार महापौर रहते हुए रामशरण यादव का संपर्क पूरे 70 वार्डों में रहा है। वे पहले भी छात्र राजनीति से लेकर नगर निगम में पार्षद के रूप में कई बार अपनी हिस्सेदारी निभाते रहे हैं । उन्हे एक और मौका देकर कांग्रेस चुनौती पेश कर सकती है। लेकिन चुनावी माहौल में यह भी सुना जा सकता है कि सियासत में मौज़ूदा दौर परिक्रमा संस्कृति में माहिर और बड़े नेताओं की पसंद के लोगों का दौर माना जाता है। नतीजतन पार्टी संगठन से लेकर बैंक, लोकसभा, विधानसभा तक हर जगह एक ही नाम चर्चा में आता है और पार्टी कार्यकर्ताओं पर थोप दिया जाता है। शहर के लोगों के साथ जुड़ाव और सियासत में हिस्सेदारी का नाप – तौल का दौर अब गुज़र चुका है। कोई पार्टी इस मामले में पीछे नहीं रहना चाहती।
पांच विधानसभाई क्षेत्रों में फैले बिलासपुर नगर निगम के महापौर उम्मीदवार का नाम तय करने को लेकर चल रही मशक्कत के पीछे भी शायद यही वज़ह हो सकती है। इस रास्ते के गुज़रते हुए कौन – कौन से चेहरे सामने आएंगे…..? यह जानने के लिए शायद आने वाले वक्त का इंतज़ार करना ही बेहतर है…।