विमोचन समारोह में शामिल हुए दिग्गज..महामण्डलेश्वर ने कहा..गुरू इच्छा का किया पालन..गिरधर बने साहित्य जगत के नाभादास
यदि गीता का जन्म नहीं होता..तो हम दुर्योधन युग में होते...स्वामी हरिहरानन्द
बिलासपुर….मशहूर समाजसेवी और आध्यमिक चिंतक डॉ.गिरधर अग्रवाल सही मायने में साहित्य जगत के संत नाभादास है। डॉ. अग्रवाल पर गुरूदेव की विशेष कृपा रही है। उन्होने सही कहा कि वह संस्कृत भाषा के जानकार नहीं है। वह तो वनस्पति शास्त्र के मास्टर डिग्रीधारी हैं। लेकिन उन्होने अध्यात्म पर ऐसा कलम चलाया जिसे सदियों तक याद रखा जाएगा। वह ज्ञानी दूरदर्शी और गुरूदेव के सच्चे भक्त हैं। यह बातें महामण्डलेश्वर स्वामी हरिहरानन्द ने गिरवर गीता रहस्य किताब विमोचन के दौरान कही। स्वामी हरिहरानन्द ने कहा कि आज गीता जयंती है…और आज ही डॉ.अग्रवाल की किताब का विमोचन हो रहा है। यह इत्तेफाक नहीं हो सकता है। मैं जानता हूं गीता पढना और समझना थोड़ा मुश्किल है…सद्गगुरू कृपा से यह काम डॉ.गिरधर अग्रवाल ने आसान कर दिया है। यदि बाल गंगाधर तिलक की गीता अनुवाद को याद रखा जाएगा..तो डॉ.गिरधर अग्रवाल की गीता रहस्य को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।
सीएमडी महाविद्यालय चौक स्थित उद्योग भवन में समाजसेवी,आध्यामिक चिंतक और लेखक डॉ.गिरधर अग्रवाल की किताब गिरधर गीता रहस्य किताब का दैवी सम्पद मण्डल के बैनर तले गीता जयंति पर विमोचन विमोचन किया गया। विमोचन कार्यक्रम के पहले मुख्य अतिथि महामण्डलेश्वर हरिहरानन्द, कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थावे विद्यापीठ के कलुपति डॉ.विनय पाठक, हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश चन्द्रभूषण वाजपेयी, सीवीआरयू के कुलपति रवि प्रकाश दुबे और थावे विद्यापीठ के उप कुलपति डॉ.गिरधर अग्रवाल ने माता सरस्वती की तैल चित्र के सामने दीप प्रज्वलित कर आशीर्वाद मांगा।
आत्मज्ञान ही गीता का सार–डॉ.गिरधर
मंचस्थ अतिथियों ने गिरवर गीता रहस्य किताब का विमोचन किया। समाजसेवी और आध्यात्मिक चिंतक डॉ. गिरधर अग्रवाल ने किताब की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। उन्होने बताया कि गीता में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक है। मुझे संस्कृत भाषा का ज्ञान नहीं है। और ना ही संस्कत भाषा के मर्म की जानकारी रखता हूं। गुरूदेव शारदानन्द सरस्वती ने आदेश दिया। और उन्हीं की कृपा से आज गीता का अनुवाद आपके सामने है। डॉ.गिरधर अग्रवाल ने बताया कि वह लेखक भी नहीं हैं…चिंतक होने का सवाल ही नहीं उठता है। गीता अनुवाद के दौरान मैने महसूस किया गीता का तीन ही संदेश..ज्ञान, योग और कर्म…। अनुवाद प्रक्रिा के दौरान मैने गौर किया कि गीता की शुरूआत आत्मा से शुरू होकर मम् पर खत्म होता है। इसका सीधा सा मतलब अपने आप को पहचानना ही गीता है। क्योंकि आत्म ज्ञान के बाद कुछ बचता ही नहीं है। डॉ.गिरधर ने बताया कि गिरधर गीता रहस्य कुल सात अध्याय में समेटने का भगीरथ प्रयास किया है।
डॉ.गिरधर ने खोला कर्म योग ज्ञान का दरवाजा
कार्यक्रम को हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश चन्द्रभूषण वाजपेयी ने संबोधित किया। बाजपेयी ने बताया कि गिरवर गीता रहस्य को पढ़कर धन्य महसूस कर रहा हूं। गीता पढ़ने की इच्छा रखने और जीवन के जद्दोजहद को समझने के लिए गिरवर गीता रहस्य का पाठन जरूर करें। पूर्व न्यायाधीश ने गर्व जाहिर करते हुए कहा कि आज ही के दिन गीता का जन्म हुआ और आज के ही दिन गिरधर गीता रहस्य का भेद खुला है। यदि कर्म योग और ज्ञान को समझने की प्यास रखते हो तो पाठक को डॉ. गिरधर की गीरा रहस्य को पढ़ना ही होगा। वह भी बहुत ही सहजता के साथ।
आत्मा और जीव एक सिक्के पहलु
उपस्थित लोगों के सामने सीवीआरयू कुलपति रवि प्रकाश दुबे ने गिरधर गीता रहस्य के मर्म को विस्तार से पेश किया। रवि प्रकाश ने आत्मा और जीव के बीच के रिश्तों को उजागर किया। उन्होने बताया कि गीता अध्ययन से स्पष्ट आत्मा और जीव एक सिक्के के दो पहलु हैं। जिस तरह सूर्य हमसे दूर है लेकिन किरणों से सूर्य का अहसास होता है। मतलब सूर्य से ही किरण है ऊर्जा है। उसी तरह जीव से ही आत्मा है। गिरधर गीता रहस्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गीता के कठिन से कठिन मर्म को इतना सहजता के साथ लिखने का कमाल सिर्फ और सिर्फ डॉ. गिरधर ही कर सकते हैं। उन्होने गीता का अनुवाद कर ना केवल किसी समाज बल्कि पाठक और संत समाज पर बहुत बड़ा उपकार किया है।
दुरूह गीता को बना दिया सरल
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थावे विद्यापीठ के कुलपति और राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ के पूर्व अध्यक्ष डॉ.विनय पाठक ने किया। उन्होने बताया कि मंच से गीता और गीता रहस्य पर बहुत कुछ कहा और सुना गया। मेरे लिए अब कुछ ज्यादा बोलने को रह नहीं गया है। इतना जरूर कहूंगा…गीता ग्रंथ जितना दुरूह है..उससे कहीं ज्यादा दुरूह उसका अनुवाद करना है। प्रांज्जल संस्कृत भाषा में लिखी गयी गीता ग्रंथ के श्लोक के मर्म को जस के तस हिन्दी में गीतमय अन्दाज में पेश कर देना ड़ॉ.गिरधर के ही बस की बात है। कहना बहुत आसान है…लिखना बहुत मुश्किल है। गीता को पढ़कर पहले आत्मसात करना..फिर अपनी मन बुद्धि से गीता ग्रंथ की आत्मा में घुसकर लिखना बहुत बड़ा कमाल है। मैं दावा कर सकता हूं कि यदि तिलक की गीता को याद रखा जाएगा तो गिरधर की गीता को भी हिन्दी जगत की दुनिया कभी नहीं भुला पाएगी। तिलक का गीता मराठी से हिन्दी में आया है।
डॉ.गिरधर..साहित्य जगत के नाभादास
कार्यक्रम के अन्त में महामण्डलेश्वर स्वामी हरिहरानन्द ने गिरधर की गीता पर प्रकाश डाला। उन्होने महाभारत के प्रसंग को याद करते हुए कहा कि यदि गीता का जन्म नहीं हुआ होता तो आज हम दुर्य़ोधन के कार्यकाल में रहते। हमें आज निश्चित करना है कि दुर्य़ोधन के काल में रहें या रामायण काल में। सब कुछ हमारी इच्छा पर निर्भर करता है। यदि गीता का जन्म नहीं होता तो निश्चित रूप से हमें दुर्योधन काल में ही रहना पड़ता।
स्वामी हरिहरानन्द ने बताया कि कुरूक्षेत्र के बीच मैदान में गीता का उपदेश कृष्ण की नीति का हिस्सा था। उन्होने अर्जुन के बहाने दुनिया को ज्ञान,कर्म और योग का संदेश दिया। गाय ग्वाला और बछड़ा के बहाने गीता के जन्म पर प्रकाश डाला। स्वामी हरिहरा नन्द ने कहा कि यह सच है कि गिरधर को संस्कृत भाषा का ज्ञान नहीं है। फिर गीता की प्रांजल्ल संस्कृत को समझने का सवाल ही नहीं उठता है। वह मेरे गुरूभाई हैं…मैं अच्छी तरह से जानता हूं..उन्होने गिरधर गीता रहस्य का लेखन गुरूकृपा से ही किया है। हरिहरानन्द ने डॉ.गिरधर अग्रवाल को साहित्य जगत का नाभादास बताया। उन्होने बताया कि जिस तरह गुरू अग्रदेव के शिष्य नाभादास ने अपने गुरू की सदइच्छा को समझने में देर नहीं कि..उसी तरह डॉ.गिरधर ने भी गुरू शारदानन्द सरस्वती की मर्म को समझते हुए आज सबके लिए गीता रहस्य की रचना कर चमत्कार किया है। मुझे विश्वास है कि हिन्दी में लिखी गयी गिरधर गीता रहस्य को सर्वाधिक पढ़ा और गुना जाएगा।