अनोखी दिवाली: गन्ने के तनों से बनती है महालक्ष्मी की प्रतिमा, जानें 17वीं सदी की अनूठी परंपरा!

देशभर में दिवाली का त्योहार जोश, उमंग और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। घर-घर में दीयों की रोशनी, रंगोली की छटा और मिठाइयों की सुगंध हर तरफ फैली हुई है। लोग नए कपड़े पहनकर खुशियों का आदान-प्रदान कर रहे हैं और बाजारों में खरीदारों की भीड़ उमड़ रही है। दीपावली का महत्व सिर्फ रोशनी और खुशियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह एकजुटता, प्रेम और सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक माना जाता है।

घरों में साफ-सफाई हो चुकी है, लोग आतिशबाजी का आनंद ले रहे हैं, और भाई-बहन व रिश्तेदार एक-दूसरे को गले लगाकर प्यार और शुभकामनाएं दे रहे हैं। इस दिन भगवान लक्ष्मी और गणेश की पूजा करके सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। दिवाली का यह त्योहार बड़े पैमाने पर देशभर में मनाया जाता है, और इससे जुड़ी कई पारंपरिक रीतियां आज भी जीवंत हैं।

वहीं, उत्तराखंड में भी दिवाली का माहौल कुछ अलग ही होता है, खासकर कुमाऊं क्षेत्र में। यहां गन्ने के तनों से महालक्ष्मी की प्रतिमा बनाने की एक अनूठी परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह परंपरा 17वीं शताब्दी से शुरू हुई थी और तब से हर दीपावली के दिन गांव-गांव और घर-घर गन्ने के तनों से मां महालक्ष्मी की मनमोहक प्रतिमा बनाई जाती है। स्कंद पुराण में गन्ने को अत्यंत शुभ और फलदायक बताया गया है, और इसे मां लक्ष्मी का प्रिय माना गया है।

इसलिए इस दिन गन्ने के तनों से बनाई गई प्रतिमा की विशेष पूजा होती है। लोग रात में विधिपूर्वक पूजा कर सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की कामना करते हैं। इसके बाद गोवर्धन पूजा या भाई दूज के शुभ मुहूर्त पर इस प्रतिमा को पवित्र नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है, जिससे यह परंपरा पूरी होती है।

दीपावली के मौके पर पहाड़ों में गन्ने की मांग भी काफी बढ़ जाती है।

हरिद्वार, देहरादून और अन्य गन्ना उत्पादन क्षेत्रों से गन्ना पहाड़ों में आता है, और इन दिनों गन्ने के तने की कीमत 70 से 80 रुपये प्रति तना तक पहुंच गई है। स्थानीय व्यापारियों की मानें तो आसपास के ग्रामीण इलाके भी गन्ना बाजार में लाते हैं। यह त्योहार गन्ने के उत्पादन और व्यापार को बढ़ावा देता है, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलते हैं और उनकी आजीविका में सुधार होता है।

कुमाऊं के लोग इस परंपरा को बहुत श्रद्धा और उत्साह के साथ निभाते हैं। गन्ने के तनों से महालक्ष्मी की प्रतिमा बनाना न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह एक सामूहिक उत्सव भी है। लोग इस दिन परिवार और पड़ोस के लोगों के साथ मिलकर प्रतिमा तैयार करते हैं, जिससे यह एक तरह से सामूहिक उत्सव और मेलजोल का प्रतीक बन जाता है। यह परंपरा लोगों में प्रेम, भाईचारा और सामुदायिक भावना को मजबूत करती है।

गन्ने के तनों से बनाई गई प्रतिमा का आकार और सजावट हर घर में अलग-अलग होती है, जिससे यह बहुत ही ज्यादा आकर्षक और मनमोहक दिखती है। ऐसे में, यदि कभी आपको मौका मिले यहां जाकर दिवाली मनाने का, तो आपको जरूर जाना चाहिए। यहां आपको एक अलग ही सांस्कृतिक माहौल और एक अनूठी परंपरा का अनुभव करने को मिलेगा, जो आपकी दिवाली को और भी खास बना देगा।

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