
निकाय चुनाव की आहट (2) – ज़मीनी स्तर पर कितनी तैयार है भाजपा की टीम….. ?
बिलासपुर (मनीष जायसवाल) ।(Chhattisgarh Urban Body Elections) हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के जम्मू रीजन में भाजपा की शानदार जीत के नतीजे बताते है कि सत्ता सिर्फ सत्ता में शामिल सेनापतियों के भरोसे नहीं जीती जा सकती है, किसी भी चुनाव में जीत के लिए सेना का संतुष्ट होना भी जरूरी है। देर आए दुरस्त आए कि तर्ज पर छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने पांच प्राधिकरणों के लिए उपाध्यक्ष की नियुक्ति बीते महीने कर दी है तब से यह कयास लगाए जा रहे है कि सत्ता और संगठन प्रमुखों ने भाजपा के कोर रणनीतिकारों से सलाह मशवरा करके तीन दर्जन से करीब आयोग, मंडल,अध्यक्ष और सदस्यों की सूची फाइनल कर ली है। लेकिन इसे सुनते सुनते भाजपा नेता ऊब चुके है । इसलिए उबासी दूर करने के लिए एक दूसरे को ख्याली लड्डू बनाकर खूब बांटते और खिलाते जा रहे हैं..। ऐसे में आयोग, मंडल ,अध्यक्ष और सदस्य का पद भाजपाइयों के बीच में हंसी ठिठोली के टाइम पास का जरिया बन गया है। वहीं मजे देख कर करीब साल भर पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सेना में शामिल हुए नेता अपने भविष्य को लेकर चिन्तित हो उठे है ।
इधर राज्य में भाजपा की सरकार बने दस महीने होने वाले है। समय आगे बढ़ रहा है लोकसभा चुनाव के बाद सबसे ज्यादा चिंतित पहली बार चुन कर आए विधायक जो मंत्री बनने की आस में थे वो भी अब बड़े आयोग की आस लगाए बैठे है। इसी क्रम में भाजपा के पुराने और अनुभवी नेता, संगठन में काम कर रहे सालों से कई चेहरे, राज्य सहित जिला स्तर के प्रवक्ता और इसके बाद भाजपा के दूसरी तीसरी पंक्ति के नेता और कार्यकर्ता निगम, मंडलों और आयोगों में नियुक्ति की राह देख रहे है। लेकिन इन पदों पर नियुक्तियों का मौसम सूनी सड़क जैसा सांय सांय कर रहा है ..!
अब सामने नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव है। इसमें नगर निगम के नगर पालिका नगर पंचायत अध्यक्ष के लिए पार्टी की ओर से घोषित होने वाले संभावित दावेदार जो नवरात्रि के समय से दुर्गा पंडाल से लेकर जगह जगह होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जोर- शोर से हिस्सा ले रहे हैं। वह तो यह मानकर चल रहे हैं कि आयोग मंडल की सूची निकाय चुनाव के बाद आए ताकि लाल बत्ती, बंगला, गाड़ी, वेतन भत्ते सहित कई सुविधाओं की दावेदारी दोनों जगह बनी रहे।
लेकिन इन मलाईदार पदों को लेकर एक तथ्य यह भी है कि भाजपा के करीब 16 साल और कांग्रेस के आठ साल के कार्यकाल के दौरान की सरकारों ने अपने नेताओ कार्यकर्ताओं को पद बांटने के लिए कई दर्जन निगम-मंडल और आयोग बना दिए। इन आयोगों पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च होते रहे है। चार से छह आयोग को छोड़ कर बाकी के बहुत से निगम, मंडल और आयोग सरकार के अनुदान पर ही आश्रित रहे है..!
अब राज्य में कई खटाखट योजनाएं चल रही है। जिसकी वजह से खजांची का लेखा जोखा आमदनी अठनी और खर्चा रूपया बता रहा हो ऐसा हो सकता है। ऐसे में वित्त विभाग आयोग मंडल के अध्यक्षों और सदस्यों को दी जाने वाली सुविधा और आर्थिक लाभ का खर्च कैसे उठा सकता है..? वह भी तब जब राज्य के कर्मचारियों को केंद्र के समान महंगाई भत्ता और गृह भाड़ा भत्ता देने के लाले पड़े हुए हो..! ऊपर से खजांची एक पूर्व कलेक्टर बना हो..!