CG NEWS:छत्तीसगढ़ BJP में क्यों सुनाई दे रहे विरोध के स्वर..? मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति के लिए पुनर्विचार समिति गठित
CG NEWS:छत्तीसगढ़ बीजेपी में संगठन के चुनाव चल रहे हैं। सरकार में रहते हुए पार्टी के संगठन चुनाव में पहले भी खींचतान की खबरें आती रही है और इस बार भी कुछ ऐसी ही ख़बरें नजरों से गुजर रहीं हैं। संगठन चुनाव के इस दौर में अब तक मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति हुई है। लेकिन किस तरह की सहमति के साथ मंडल अध्यक्ष के चुनाव हो रहे हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ जगह मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति रद्द करने की खबरें भी आईं हैं। इस सिलसिले में एक पुनर्विचार समिति भी गठित की गई है। कई जगह उठ रहे विरोध के स्वर को देखते हुए संशोधित सूची जारी किए जाने की चर्चा है।
बीजेपी में संगठन चुनाव के समय खींचतान की खबरें पहले भी सुर्खियों में रही है। अविभाजित मध्य प्रदेश में भी मंडल से लेकर प्रदेश तक होने वाले संगठन चुनाव में कई जगह पार्टी के दिग्गज आमने-सामने दिखाई देते रहे हैं। इसे पार्टी के अंदर लोकतंत्र का नाम दिया जाता रहा है। लेकिन कई बार ऐसे ही मुकाबले के बाद खेमेबाजी के बीच पल्लवित और पुष्पित होते रहे हैं। छत्तीसगढ़ में इस समय भाजपा की सरकार है और संगठन चुनाव को लेकर एक बार फिर भीतरखाने खींचतान की सुगबुगाहट मिल रही है। बताया गया है कि प्रदेश में बीजेपी के 463 मंडल है। इस समय करीब 440 में चुनाव हो रहे हैं। कुछ मंडलों में अलग-अलग कारणों से चुनाव नहीं कराए जा रहे हैं। बिलासपुर में भी पश्चिम क्षेत्र मंडल का चुनाव नहीं हुआ। बिलासपुर जिले के बाकी मंडलों में नए अध्यक्षों के नाम सामने आ चुके है। लेकिन यह चर्चा भी है कि कई जगह बड़े नेताओं की पसंद से बनाए गए मंडल अध्यक्षों का कार्यकर्ताओं ने विरोध किया। जिसके चलते फाइनल होते-होते नाम बदले भी गए हैं।
उधर कवर्धा ,गरियाबंद, धमतरी जैसे प्रदेश के कई हिस्सों से भी इसी तरह की खबरें आ रही है। गुरुवार को यह खबर भी सुर्खियों में रही कि रायपुर के माना और कवर्धा के पिपरिया मंडल में नए अध्यक्ष की नियुक्ति रोक दी गई है। बीजेपी की राजनीति को नजदीक से देखने वाले मानते हैं कि पार्टी के संगठन चुनाव में इस तरह की रस्साकशी पहले भी देखने को मिलती रही है। लेकिन आज के दौर में जब बीजेपी में बहुत कुछ बदल गया है और दाएं -बाएं की कोई गुंजाइश नज़र नहीं आती । ऐसे दौर में भी अगर विरोध के स्वर सुनाई दे रहे हैं तो यह समझा जा सकता है कि संगठन के भीतर क्या चल रहा है।
उधर यह खबर भी आई कि मंडल अध्यक्षों को लेकर उठ रहे विवाद को देखते हुए भाजपा ने एक पुनर्विचार समिति का गठन किया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता सच्चिदानंद उपासने इस समिति के संयोजक बनाए गए हैं। यह समिति लोगों से बातचीत कर मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति से जुड़े विवाद का समाधान निकलेगी। पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर इस बार जो विवाद सामने आ रहा है उसे बेवजह तूल दिया जा रहा है। दरअसल इस बार संगठन में नए चेहरों को मौका देने के लिए बीजेपी ने नियम बनाए हैं। बीजेपी मानती है कि मंडल अध्यक्ष पार्टी की धूरी के रूप में काम करते हैं। इस बार तय किया गया है कि 35 से 45 वर्ष आयु वर्ग के लोगों को मंडल अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जाए। जिससे युवाओं को मौका मिल सके। लेकिन इसमें इस बात का भी ध्यान रखा जाएगा कि वे पार्टी में सक्रिय रूप से काम कर रहे हो। कम से कम दो बार के सक्रिय सदस्य हो । भाजपा के संगठन में पदाधिकारी की जिम्मेदारी निभा चुके हों और उनके खिलाफ किसी तरह का आपराधिक रिकॉर्ड ना हो। इतने बड़े पैमाने पर मंडलों में अध्यक्ष की नियुक्ति के दौरान कहीं कोई चूक भी हो जाती है। ऐसी स्थिति में कुछ स्थानों पर ऐसा भी हो सकता है कि नियम के अनुरूप मंडल अध्यक्ष की नियुक्ति न हो पाई हो। जहां नव नियुक्त मंडल अध्यक्षों की आयु या अन्य रिकार्ड को लेकर कुछ प्रमाण मिल रहे हैं ,वहां पार्टी पुनर्विचार कर फैसला करेगी। इस कवायद में साफ नजर आ रहा है कि पार्टी के दिग्गज नेता अपनी पसंद से किसी को भी मंडल अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त कराने में कामयाब नहीं हो सकेंगे।
वैसे बीजेपी का संगठन हमेशा गतिशील रहता है और हर समय कोई ना कोई कार्यक्रम दिए जाते हैं। जिससे हर स्तर पर सक्रियता बनी रहती है। संगठन चुनाव जैसे महत्वपूर्ण अवसर पर भी इसकी झलक मिल रही है। जाहिर सी बात है कि नए चेहरों को मौका देने की कोशिश में ऐसा भी हो सकता है कि पार्टी के पुराने दिग्गजों को अपनी पसंद के लोगों को किसी ओहदे तक पहुंचाने में दिक्कत भी हो रही हो। जाहिर सी बात है कि नए – पुराने के बीच मुकाबले की वजह से भीतरखाने खींचतान की स्थिति भी बन रही है। जिससे भाजपा संगठन चुनाव को लेकर मीडिया में सुर्खियां भी बन रही हैं। मुमकिन है मंडल से ऊपर के चुनाव में भी इसकी झलक देखने को मिले।