
CG NEWS:बीएड और डीएड विवाद में 2900 स्कूलों के छात्रों का क्या कसूर..! चिंतन जरूरी
CG NEWS:बिलासपुर ( मनीष जायसवाल)।बीते सात महीने से राज्य के सबसे बड़े स्कूल शिक्षा विभाग का पूर्णकालिक मंत्री नहीं होने का सबसे बड़ा खामियाजा यह निकला कि विभाग में चल रही बड़ी और गंभीर समस्याओं को लेकर बाद में देखते है…वाली स्थिति बनी रही है..! जिसका नतीजा यह निकला कि पंचायत और निकाय चुनाव के पूर्व बीएड और डीएड विवाद को लेकर समय रहते अगर निर्णय लिया जाता तो सरकार के इस कदम की जय जयकार हो सकती थी ..! लेकिन ऐसा लगता है कि व्यवस्था के जिम्मेदार लोग बीएड और डीएड विवाद में यह नीति बना कर बैठे थे कि सरकार की किरकिरी ठीक पिक टाइम में होए ..! इसलिए इस विवाद को लगातार टालते रहे । इस टालमटोल नीति ने ऐसी परिस्थिति को जन्म दिया कि विभाग ने बीएड योग्यता धारी सहायक शिक्षकों को कोर्ट का आदेश पालन कराने के लिए बर्खास्त कर दिया । वही डीएड किए हुए अभ्यर्थियों को भी अब तक अधर में अटका के रखा गया है इन्हें भी नियुक्ति नहीं दी गई है अब मोर्चे पर बर्खास्त बीएड सहायक शिक्षक और डीएड किए अभ्यर्थी दोनों विरोध में खड़े है। अब इनका विरोध पूर्व की जगह तत्कालीन सरकार से है।
समय रहते नहीं हुआ निर्णय
अब परिस्थितियां यह है कि सेवा से हटाये जाने के बाद सिस्टम की मार खाए बेकसूर बर्खास्त बीएड सहायक शिक्षको को आज मजबूरन सड़क का संघर्ष करना पड़ा रहा है। क्योंकि इनके पुनर्वास या समायोजन को लेकर कोई व्यवस्था सरकार की ओर पहले से नहीं बनाई गई समय रहते अगर इस विषय पर निर्णय ले लिया गया होता और कमेटी बना दी गई होती तो आज यह स्थिति सरकार के सामने नहीं आती..! वही डीएड किए हुए अभ्यर्थियों को भी समय रहते अगर नियुक्ति दे दी गई रहती तब की स्थिति में भी सरकार के पास पंचायत और निकाय चुनाव के बीच चौतरफा विरोध की स्थिति नहीं होती।
पेशी की तारीख बाकी है
स्कूल शिक्षा विभाग में लूप लाइन में चल रहे सिस्टम के लोग इस बात को बखूबी जानते थे कि बीएड और डीएड मामले में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट का जो निर्णय हुआ है वही लागू होना है। डीएड किए हुए अभ्यर्थियों को सेवा में शामिल करना है। सरकार के पास विकल्प सिर्फ बीएड किए हुए शिक्षकों का संवैधानिक रूप समायोजन करना है। यह सरकार का नीतिगत फैसला होता। ताकि युवाओं का भविष्य बर्बाद ना हो लेकिन इस मामले को टालते टालते यहां तक ले आए कि न्यायालय में अवमानन की स्थिति का कई बार सामना करना पड़ा..। अभी भी मामला खत्म नहीं हुआ है। न्यायालय में विभाग की पेशी की तारीख बाकी है, जो लोकतांत्रिक नजरिए से चिंता का विषय भी है..!
विवाद ने कराई पढ़ाई प्रभावित
भले ही किसी ने ध्यान नहीं दिया हो लेकिन इस विवाद में सबसे जो महत्वपूर्ण और दुखद पहलू यह है कि व्यवस्था के जिम्मेदार लोग यह तय नहीं कर पाए कि इस विवाद में समय रहते निर्णय नहीं लेने पर असल में नुकसान किसका हो रहा है ..। जाहिर सी बात है कि नुकसान इसमें और स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों का हो रहा है जो सरगुजा और बस्तर संभाग के आंचलिक क्षेत्रों में रहते हैं..। करीब 2900 प्राथमिक स्कूल के शिक्षको का एका-एक कम हो जाना किसी भी लिहाज से उचित नहीं माना जा सकता है। वह भी उस दौर में जब बड़ी संख्या में राज्य स्तर पर सहायक शिक्षकों की शिक्षक और प्राथमिक स्कूल के प्रधान पाठक के पद पर पदोन्नति हो चुकी है उनकी जगह खाली हो चुकी है। नई भर्ती नहीं हुई है।
चूंकि प्रदेश में नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव की आचार संहिता लागू हो चुकी है। न्यायालय के निर्णय के अनुसार बीएड किए हुए सहायक शिक्षकों को आचार संहिता के पूर्व हटाया गया है। तो न्यायालय के आदेश को ध्यान में रखते हुए इनकी जगह आसानी से डीएड किए अभ्यर्थियों की भर्ती और पद स्थापना युद्ध स्तर पर की जा सकती है..।इसके लिए विभाग राज्य चुनाव आयोग से अनुमति ले सकता है। इसमें छात्र हित को ध्यान में रखते हुए किसी भी राजनीतिक दल को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। चुनाव आते जाते रहेंगे लेकिन करीब 2900 स्कूलों से शिक्षकों को हटाए जाने की कमी उन स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को महसूस तो होगी। क्योंकि शिक्षा सत्र दुबारा लौट कर आने वाला नहीं है..। बीएड और डीएड मामले की वजह से परिस्थितियां बनी है इस पर सरकार, राजनीतिक दलों, संघ संगठनों , समाज के चिंतकों और मेन स्ट्रीम मीडिया को चिंतन करना बेहद जरूरी है।