India Newseducation

सेवारत शिक्षकों के लिए TET अनिवार्यता का मुद्दा अब संसद में: लोकसभा में नियम-377 के तहत चर्चा के बाद जगी राहत की उम्मीद

रायबरेली। देश भर के लाखों सेवारत शिक्षकों के लिए एक बड़ी और राहत भरी खबर सामने आई है। वर्षों से सेवा दे रहे शिक्षकों पर लागू शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) की अनिवार्यता का संवेदनशील मुद्दा अब देश की सबसे बड़ी पंचायत यानी लोकसभा में पहुंच गया है।

लोकसभा में इसे नियम-377 के अंतर्गत उठाए जाने की स्वीकृति मिलने के बाद शिक्षकों में आशा की नई किरण जगी है।

इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, बछरावां से जुड़े शिक्षकों ने हर्ष व्यक्त करते हुए अपने प्रदेश नेतृत्व और सांसदों के प्रति आभार प्रकट किया है।

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के अध्यक्ष आशुतोष शुक्ल ने बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद से प्रदेश के लाखों शिक्षक मानसिक तनाव में हैं।

TET उत्तीर्ण करने की अनिवार्यता उन शिक्षकों पर भी लागू करने की बात हो रही है, जो वर्षों से सेवा दे रहे हैं और कई तो सेवानिवृत्ति की दहलीज पर खड़े हैं। ऐसे में उनकी नौकरी और परिवार की आजीविका पर अचानक संकट उत्पन्न हो गया है।

सरकार के आश्वासनों के बावजूद शिक्षकों के बीच असमंजस और भय का माहौल बना हुआ था।

संगठन के नेतृत्व की निरंतर कोशिशों के कारण यह विषय लोकसभा में नियम-377 के तहत स्वीकार किया गया है।

अब यह मामला सदन के पटल पर रखा जाएगा और केंद्र सरकार को इस पर लिखित उत्तर देना होगा। इससे यह स्पष्ट हो सकेगा कि पुरानी नियुक्तियों को लेकर सरकार का रुख क्या है।

संगठन के महामंत्री लोकतंत्र शुक्ल ने चिंता जताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विशेषकर वर्ष 2011 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों की सेवा पर खतरा मंडरा रहा है।

कार्यवाहक अध्यक्ष अभिनव सिंह ने विश्वास जताया है कि इस विधायी हस्तक्षेप से शिक्षकों को न्यायसंगत राहत मिलेगी।

संगठन के संरक्षक राजेन्द्र प्रसाद शर्मा ने भी इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों की चुप्पी और सक्रियता पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। शिक्षकों का मानना है कि उनकी वर्षों की सेवा और अनुभव को देखते हुए TET की अनिवार्यता से उन्हें छूट मिलनी चाहिए।

Shri Mi

पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
Back to top button
cgwall