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CG NEWS: दखल..स्मार्ट चश्मे की नज़र में – कैसे गुज़रा 2024…. ?

CG NEWS:( गिरिजेय ) सेकेण्ड, मिनट, घंटे, पहर, दिन, हफ़्ते, महीने की सीढ़ियां लांघते हुए एक और साल गुज़र गया है। यह लिखने – कहने का रिवाज़ है कि खट्टी – मीठी यादें छोड़कर एक और साल गुज़र गया…। लिहाज़ा 2024 के लिए भी कुछ ऐसा ही कहना पड़ेगा…। गुज़रे साल के हिस्से में भी ऐसी यादें हैं। छत्तीसगढ़ के नक्शे के भीतर नज़र घुमाकर देखें तो 2024 का साल ऐसा बहुत कुछ छोड़ गया है , जिसे सामने रखकर नए साल 2025 की तस्वीर खींची जा सकती है।

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कोई समीक्षक अपने चश्मे से देखकर कह सकता है कि गुज़रे साल लोकसभा के चुनाव हुए तो सूबे को नए सांसद मिले और तोखन साहू के रूप में केन्द्रीय मंत्री भी मिल गया । नक्सलवाद पर काबू पाने की दिशा में सधे हुए कदमों से आगे बढ़ गए । घोटालों की जांच की ख़बरें साल भर सुर्ख़ियां बनती रहीं। हालांकि साल भर सरकार का इक़बाल और पॉवर सेंटर तलाश रहे लोग बलौदाबाज़ार, लोहाराडीह, बलरामपुर, सूरजपुर जैसी जगहों से निकलकर आई खबरों के बीच इस सवाल का जवाब भी खोजते रहे कि आख़िर आम लोग सिस्टम के ख़िलाफ सड़क पर क्यों उतर रहे हैं…..?

इधर 2024 गुजरते – गुजरते जब बिलासपुर में एक कार्यपालिक मजिस्ट्रेट ने प्रेस कांफ्रेस लेकर ख़ुद अपने लिए इंसाफ़ की गुहार लगाई तो यह सवाल और अधिक उलझ गया कि सरकार के एक सिस्टम का दूसरे सिस्टम पर भरोसा क्यों नहीं रह गया है…?

ऐसे में लगता है कि 2024 खट्टी – मीठी यादों से अधिक मिर्ची की तरह तीख़े और नीम की तरह कड़वे सवाल छोड़ गया है। जिसका जवाब मिले या ना मिले लेकिन शायद इसका स्वाद 2025 में भी मिलता रहेगा।

छत्तीसगढ़ के नक्शे में उपलब्धियों के फ़्लैग लगाते हुए बहुत से दावे किए जा सकते हैं और विपक्ष के चश्मे से देख रहे लोग इन दावों को झुठलाते हुए पूछ सकते हैं कि – एक साल की कोई बड़ी उपलब्धि बताइए….। लेकिन छत्तीसगढ़ के दूसरे सबसे बड़े शहर न्यायधानी – बिलासपुर में खड़े होकर कोई भी यह दावा कर सकता है कि – हम अब पूरी तरह से “स्मार्ट” हो गए हैं।

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पोजीशन हो या अपोजीशन सब एक चश्मे से देखते हैं । लिहाज़ा इस दावे पर सवाल के लिए कोई जगह ही नहीं बनती। स्मार्टनेस के मामले में सब मिले हुए हैं…। यानी सभी स्मार्ट बने हुए हैं और सभी की बराबर की हिस्सेदारी से बिलासपुर शहर स्मार्ट बन गया है ।

सभी लोग स्मार्ट सिटी की उस परिभाषा को रट्टा मारकर याद कर चुके हैं – जिसके हिसाब से बिलासपुर सहित देश के और भी कई शहरों को स्मार्ट सिटी घोषित किया गया है। जिसमें पूरी तरह से साफ़ है कि स्मार्ट सिटी को लेकर सब कुछ तय करने के लिए जो बॉडी बनेगी उसमे जनता के बीच से चुनकर आए नुमाइंदों के लिए कोई जगह नहीं होगी…. ।

सरकारी सिस्टम चलाने वाले नौकरशाह ही इसके कर्ता-धर्ता होंगे।

स्मार्ट बनने के इस मंत्र को आत्मसात कर वार्ड पार्षद से लेकर ऊपर तक सारे नुमाइंदों ने सब कुछ सिस्टम के हवाले कर दिया । अपने आप में व्यस्त और अपने आप में मस्त होकर स्मार्ट बनने के पूरे प्रोसेस को टुकुर- टुकुर देख रहे हैं।

जनता के वोट से चुनकर आए किसी नुमाइंदे को किसी बड़े ओहदे की आस है और इसी उम्मीद में पूरा साल निकाल दिया कि ओहदा मिल जाए तब शहर के लिए कुछ बोलेंगे। उधर कोई ओहदा पाने के बाद इस ख़ुशफहमी में पूरा साल गुज़ार लेता है कि आस पूरी होने पर कैसा महसूस होता है….।

वैसे तो शहर की सियासत में नगर निगम की भी हिस्सेदारी रहती है। लेकिन एक तो निगम का कार्यकाल आख़िरी पड़ाव पर था और दूसरी बात यह कि वहां बैठे लोगों को लगा कि हमारे हिस्से में कुछ करने को नहीं बचा।

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लिहाज़ा सभी ने बिलासपुर को स्मार्ट बनाने का ज़िम्मा निज़ाम को सौंपकर ख़ुद को भी स्मार्ट बना लिया । स्मार्ट बनने के खेल में यही फ़ायदा है कि शहर के विकास की बात हो या आम लोगों से जुड़े सवालों की चर्चा हो – कहीं भी नुमाइंदों की दरकार नहीं होती। सब कुछ निज़ाम और उसका सिस्टम तय करता है। सरकार चला रही पार्टी के लोगों को लगता है कि – सब चंगा सी…।

वहीं प्रतिपक्ष यह सोचकर चुपचाप देखता है कि – बोलने के लिए अभी हमारा समय नहीं आया है। इस मायने में यह साल स्मार्ट सिटी का बेहतरीन उदाहरण पेश कर गुज़र गया ।

जो हुआ अच्छा हुआ.. जो हो रहा है अच्छा हो रहा है… और जो होगा अच्छा ही होगा… इस सूत्र वाक्य ने शहर को पूरा स्मार्ट बना दिया। साल भर की सियासत का यही कुल जमा हासिल है और यही 2024 की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

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