बिहार की हॉट सीट मोकामा: बाहुबलियों के गढ़ में दांव पर नीतीश की साख

पटना 

बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक चर्चा मोकामा सीट की हो रही है. पटना जिले के अंदर आने वाला मोकामा इसबार हॉट सीट होगा, ये तभी तय हो गया था जब जेडीयू से चुनाव लड़ रहे बाहुबली अनंत सिंह के खिलाफ इलाके के दूसरे बाहुबली सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी को आरजेडी ने मैदान में उतार दिया. दो बाहुबलियों का मोकामा में आमने–सामने आना इस बात का संकेत था कि इस बार का बिहार चुनाव खास होगा. वोटिंग से ठीक 6 दिन पहले दुलारचंद यादव की हत्या हुई तो मोकामा एकबार फिर सुर्खियों में आ गया.

दुलारचंद की हत्या का आरोप अनंत सिंह और उनके समर्थकों पर लगा. अब इसी मामले में अनंत सिंह जेल के अंदर हैं. जिस दुलारचंद यादव की हत्या हुई वह जन सुराज पार्टी के समर्थक बताए जा रहे हैं. उनकी हत्या के बाद लगभग 36 घंटे तक मोकामा से लेकर बाढ़ तक के इलाके में बवाल होता रहा. यह बवाल शांत नहीं होता अगर अनंत सिंह की गिरफ्तारी नहीं की जाती. दुलारचंद यादव की हत्या के मामले में अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद प्रशासन ने मोकामा में चुनावी हिंसा को नियंत्रित करने का प्रयास किया है. राज्य के डीजीपी खुद कह रहे हैं कि इस मामले में दूसरे पक्ष के आरोपियों की भी गिरफ्तारी होगी.

मोकामा मानी जाती है भूमिहार बहुल सीट

दुलारचंद यादव की हत्या के बाद मोकामा में जो तूफान मचा था उसको नियंत्रित करने के लिए प्रशासन ने भले ही कदम उठाए हों, लेकिन चुनावी हिंसा के बाद मोकामा में जातीय समीकरण नई तस्वीर गढ़ सकता है. मोकामा को भूमिहार बहुल सीट माना जाता है. शायद यही वजह है कि आजादी के बाद से लेकर अब तक हर विधानसभा चुनाव में यहां से जीत का सेहरा भूमिहार जाति से आने वाले किसी न किसी नेता के माथे पर ही बंधा है. मोकामा में कुल मतदाताओं का 30 फीसदी भूमिहार जाति से हैं. इस सीट पर लगभग 82 हजार भूमिहार वोटर्स हैं. यहां जाति के लिहाज से दूसरी सबसे बड़ी संख्या यादवों की है. मोकामा में 20 फीसदी यादव यानी लगभग 61 हजार वोटर्स हैं.

यहां निर्णायक भूमिका में हैं धानुक वोटर्स

अन्य सवर्ण जातियों में राजपूत और ब्राह्मण वोटर्स की संख्या को मिला दें तो उनकी तादाद लगभग 28 हजार है. मोकामा में तीसरी बड़ी आबादी कुर्मी और उसकी ही उपजाति कहे जाने वाली धानुक वोटर्स की है. कुर्मी और धानुक वोटर्स की तादाद यहां लगभग 47 हजार है. माना जाता है कि धानुक जाति के वोटर्स मोकामा में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. इसके अलावा दलित–महादलित वोटर्स तकरीबन 25 से 28 हजार और मुस्लिम वोटर्स की संख्या लगभग 11 हजार है. पिछले 20 साल से मोकामा विधानसभा सीट पर बाहुबली अनंत सिंह का कब्जा रहा है. दो दशक में अनंत सिंह जेडीयू के टिकट पर चुनाव जीते और निर्दलीय भी. उनकी पत्नी नीलम देवी ने पिछले उपचुनाव में आरजेडी के टिकट से जीत हासिल की थी.

अनंत सिंह और वीणा देवी के बीच टक्कर

अनंत सिंह एक बार फिर से जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. मोकामा में अनंत सिंह जिस जातीय समीकरण को साधते हुए लगातार जीत हासिल करते रहे हैं उसके पीछे भूमिहार और धानुक जाति के वोटर के गठजोड़ के अलावे अति पिछड़ी जातियों की गोलबंदी बड़ी वजह मानी जाती है. यही वजह है कि अनंत सिंह के खिलाफ भूमिहार जाति से आने वाले दूसरे उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ता है. मोकामा में इस बार अनंत सिंह और सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी के बीच टक्कर है. ये दोनों भूमिहार जाति से आते हैं. दो भूमिहार उम्मीदवारों की टक्कर के बीच जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी की एंट्री ने जातीय समीकरण को ट्वीस्ट दे दिया है. एक तरफ सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी अनंत सिंह को जहां आरजेडी के आधार वोट के जरिए चुनौती दे रही हैं, वहीं दूसरी तरफ धानुक जाति के वोट बैंक में पीयूष प्रियदर्शी भी सेंध लगा सकते हैं.

दुलारचंद यादव पीयूष प्रियदर्शी को समर्थन दे रहे थे और अब उनकी हत्या के बाद मोकामा में नए जातीय समीकरण बनने की आशंका है. बिहार का चुनावी इतिहास बताता है कि यादव और धानुक जाति के वोटर कभी जातीय गोलबंदी के साथ एकजुट होकर मतदान नहीं करते हैं. यादवों का समर्थन जिस तरफ होता है, धानुक जाति के वोटर्स उसके खिलाफ ही वोटिंग करते रहे हैं. यही वजह है कि बिहार में नीतीश कुमार गैर यादव पिछड़ा और अति पिछड़ा मतदाताओं की गोलबंदी के सहारे दो दशक से शासन में हैं. नीतीश की सोशल इंजिनियरिंग में धानुक जाति के मतदाताओं की भूमिका बेहद खास रही है. नीतीश के विरोधी भी इस बात को भली भांति समझते हैं और यही वजह रही कि तेजस्वी यादव ने 2024 के लोकसभा चुनाव में कुछ नए प्रयोग के जरिए नीतीश के इस सोशल इंजीनियरिंग को साधने की कोशिश की थी.

लव-कुश समीकरण को तोड़ने की कोशिश

नीतीश के लव-कुश समीकरण को तोड़ने के लिए तेजस्वी यादव ने बीते लोकसभा चुनाव में कुशवाहा जाति के कई उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. तेजस्वी ने यह प्रयोग इसबार भी जारी रखा है. आरजेडी ने कई कुशवाहा उम्मीदवारों को टिकट दिया है. तेजस्वी की नजर बीते लोकसभा चुनाव में भी धानुक वोटर्स को नीतीश से अलग करने की थी. इसीलिए मुंगेर लोकसभा सीट पर आरजेडी ने धानुक जाति के मतदाताओं को साधने के लिए अशोक महतो की पत्नी को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन ललन सिंह ने नीतीश की सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर चलते हुए तेजस्वी के इस प्रयोग को विफल कर दिया था. धानुक वोटर्स को साधने में तेजस्वी भले ही फेल रहे थे लेकिन इस बार प्रशांत किशोर ने शायद उनका काम आसान कर दिया. जन सुराज पार्टी ने मोकामा जैसी सीट पर धानुक जाति से आने वाले पीयूष प्रियदर्शी को उम्मीदवार बनाकर एनडीए के जातीय समीकरण को तोड़ने की कोशिश की है.

हालांकि दुलारचंद यादव की हत्या के बाद अगर धानुक वोटर्स वाकई अनंत सिंह का साथ छोड़ते हैं तो इसका फायदा प्रशांत किशोर के उम्मीदवार से ज्यादा आरजेडी के उम्मीदवार को मिल सकता है. दुलारचंद यादव की हत्या के बाद मोकामा में जातीय गोलबंदी के लिए यह मैसेज देने का प्रयास भी किया गया कि अनंत सिंह से धानुक जाति के पीयूष प्रियदर्शी को बचाने के लिए यादव जाति के दुलारचंद ने अपनी जान दे दी. मोकामा में दुलारचंद यादव की हत्या के बाद जिस तरह जातीय समीकरण में बदलाव की आशंका है, उसे देखते हुए सभी उम्मीदवार अपने-अपने वोट बैंक को जोड़े रखने का प्रयास कर रहे हैं. धानुक वोटर्स को अपने पाली में करने के लिए ही दुलारचंद यादव की शव यात्रा में आरजेडी उम्मीदवार वीणा देवी भी शामिल हुई थीं.

मोकामा में ललन सिंह ने संभाली कमान

दुलारचंद यादव की शव यात्रा के दौरान मोकामा से लेकर बाढ़ तक में जो हुआ उसके बाद सियासी जानकार भी कह रहे हैं कि अनंत सिंह के साथ भूमिहार और बाकी सवर्ण मतदाता एकजुट हो सकते हैं. इस मामले में अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद उनके साथ मतदाताओं की सहानुभूति भी हो सकती है. दुलारचंद यादव की शव यात्रा में वीणा देवी के शामिल होने से भूमिहार वोटर्स में उनको लेकर नाराजगी बढ़ सकती है. अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद ललन सिंह ने मोकामा में जेडीयू उम्मीदवार के चुनाव प्रचार की कमान संभाल ली है. ललन सिंह को लेकर यह बताने की जरूरत नहीं कि वह नीतीश कुमार के बेहद करीबी रहे हैं और जेडीयू की सोशल इंजीनियरिंग को भली-भांति समझते हैं. अनंत सिंह की गिरफ्तारी के जरिए बिहार में सुशासन मॉडल को मोकामा में मैसेज देने के तौर पर भी देखा जा रहा है. धानुक समेत अन्य पिछड़ी जातियां अगर यादवों के साथ मिलकर मौजूदा दौर में वोटिंग नहीं करती हैं, तो इसकी सबसे बड़ी वजह लालू–राबड़ी के शासनकाल में इन जातियों के लिए यादव जाति से पैदा हुई चुनौतियां हैं.

नीतीश की सोशल इंजीनियरिंग का टेस्ट

नीतीश कुमार ने अपने शासन के जरिए इन जातियों को यादवों के सामने जमीनी स्तर पर मजबूती दी है. ललन सिंह ने इसी फार्मूले के तहत यादवों के साथ अति पिछड़ी जातीय गोलबंदी के प्रयास की बीते लोकसभा चुनाव में हवा निकाल दी थी. ऐसे में सवाल ये है कि क्या ललन सिंह मोकामा में यही काम अनंत सिंह के लिए कर पाएंगे? अनंत सिंह को भले ही भूमिहार समेत अन्य सवर्ण जातियों का साथ मिल जाए, लेकिन मोकामा के चुनावी रण में जीत तभी मिलेगी जब धानुक और अन्य अति पिछड़ी जातियों का समर्थन मिले. मुकाबला भले ही मोकामा का हो लेकिन लिटमस टेस्ट नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग का भी है, जिसमें तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर सेंधमारी का प्रयास कर रहे हैं.

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