Chhattisgarh

कही-सुनी : DGP अशोक जुनेजा एक बार फिर सुर्ख़ियों में

एक बार फिर सेवावृद्धि मिलने के संकेतों के बीच डीजीपी अशोक जुनेजा सुर्ख़ियों में हैं। अशोक जुनेजा 11 नवंबर 2021 से छत्तीसगढ़ के डीजीपी की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। भूपेश बघेल की सरकार ने डीएम अवस्थी को हटाकर पहले उन्हें प्रभारी डीजीपी बनाया, फिर 10 महीने बाद पांच अगस्त 2022 से नियमित डीजीपी बना दिया।60 साल की आयु पूर्ण करने के बाद अशोक जुनेजा को जून 2023 में रिटायर हो जाना चाहिए था, पर रेगुलर डीजीपी के दो साल के फार्मूले के आधार पर उनका कार्यकाल अगस्त 2024 तक मान लिया गया। अगस्त 2024 में रिटायर होने की जगह छह माह की सेवावृद्धि ले ली। यह अवधि भी चार फरवरी को समाप्त होने जा रही है।

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इस बीच उन्हें दोबारा सेवावृद्धि मिलने की खबरें उड़ने लगी हैं। लोगों को ऐसा लगने लगा है कि अशोक जुनेजा डीजीपी के पद का पट्टा लिखवाकर ले आए हैं। चर्चा है कि अशोक जुनेजा की दिल्ली में तगड़ी जुगाड़ से डीजीपी के दावेदारों ने हथियार डाल दिया है। लोग कहने लगे हैं कि भाजपा की सरकार भी नए डीजीपी को लेकर अब ज्यादा उत्सुक नहीं है। वह दिल्ली के इशारे के इंतजार में है। नए डीजीपी को लेकर सरकार कुछ महीने पहले तक काफी एक्टिव दिखी,पर लगता है कि संघ लोक सेवा आयोग से बार-बार पैनल वापस आने से सरकार का उत्साह भी ठंडा पड़ गया। राज्य सरकार चाहे तो किसी को प्रभारी डीजीपी बना सकती है। यह उसकी इच्छा शक्ति पर निर्भर करेगा। अब लोगों को अशोक जुनेजा या कोई और, इसका इंतजार है।

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मंत्री का कच्चा-चिट्ठा दिल्ली के सुपुर्द
कहते हैं भाजपा के ही कुछ लोगों ने छत्तीसगढ़ के एक मंत्री का कच्चा-चिट्ठा दस्तावेजों के साथ हाईकमान को दिल्ली भेज दिया है। चर्चा चल पड़ी है कि फ़रवरी में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद मंत्री जी को संगठन में भेज दिया जाएगा और मंत्रिमंडल से छुट्टी हो जाएगी। हाईकमान ने बृजमोहन अग्रवाल को सांसद का चुनाव लड़वाकर मंत्रिमडल से बाय-बाय कर दिया। भाजपा हाईकमान कब क्या खेल कर जाय कोई अंदाजा नहीं लगा सकता। मंत्री जी पहले भी संगठन में रह चुके हैं। बताते हैं मंत्री जी एक सप्लायर के फेर में पड़कर बदनाम हो गए हैं। कहा जा रहा है कि मंत्री जी सप्लायर के माध्यम से ही सारा खेल करते हैं, यह पार्टी के लोगों को नहीं भा रहा है। खबर है कि मंत्री जी की डिमांड काफी लंबी-चौड़ी हो गई है। मिल बांटकर चलने की जगह अपनी जेब भरने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं। देखते रहिये समय और समय की धार को।

कलेक्टर से परेशान विधायक
कहते हैं सरगुजा संभाग के एक जिले के विधायक अपने जिले के कलेक्टर से बड़े परेशान हैं। कलेक्टर को जिले में पदस्थ हुए सालभर ही हुआ है। सालभर में ही विधायकों को कलेक्टर ने पानी पिला दिया है। बताते हैं जिले में कुल चार विधायक हैं और चारों ही परेशान हैं। विधायकों ने अपना दुखड़ा सरकार के पास रो चुके हैं, पर अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। कहा जा रहा है कि कलेक्टर साहब ने ऊपर मजबूत खूटा पकड़ रखा है और अपनी छवि पाक-साफ़ बना कर रखी है। खबर है कि कलेक्टर साहब ने दफ्तर में बजरंगबली जी का मंदिर भी बनवा दिया है। कलेक्टर साहब से विधायक ही खफा नहीं हैं। जिला मुख्यालय के इक्के-दुक्के पत्रकारों को छोड़कर बाकी ने कलेक्टर साहब का बहिष्कार कर रखा है।

कलेक्टर साहब की पत्नी का रौब
एक कहावत है “सैयां भये कोतवाल, अब डर काहे का।” ऐसा ही कुछ बस्तर संभाग के एक जिला मुख्यालय में इन दिनों गूंज रहा है। बताते हैं जिले के कलेक्टर साहब की पत्नी एक सरकारी अस्पताल में डाक्टर हैं। मैडम साहिबा हैं तो जूनियर, पर कलेक्टर की पत्नी होने का रौब-दाब, ऐसा कि सीनियर भी उनसे डरते हैं। चर्चा है कि अस्पताल में वे मुखिया की भूमिका में रहती हैं। अब कलेक्टर साहब की पत्नी हैं तो कौन उनसे पंगा ले। सरकारी अस्पताल के डाक्टर कलेक्टर के मातहत ही होते हैं। कहा जाता है कि कलेक्टर साहब जिस जिले की कमान संभालते हैं, वहां के अस्पताल में अपनी पत्नी की पोस्टिंग करवा लेते हैं।

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सुब्रत साहू के लिए पिघला दिल
कहा जा रहा है अपर मुख्य सचिव सुब्रत साहू के लिए साय सरकार का दिल पिघल गया है। भाजपा की सरकार ने ही एक साल पहले प्रशासन अकादमी का महानिदेशक के साथ धार्मिक-धर्मस्व विभाग देकर प्रशासन की मुख्य धारा से किनारे कर दिया था। अब उन्हें सहकारिता विभाग देकर कुछ कद बढ़ा दिया है। सहकारिता कोई बहुत बड़ा विभाग नहीं है। इस विभाग में अभी एक सचिव हैं। सचिव के ऊपर अपर मुख्य सचिव की पदस्थापना के मायने लोग तलाश रहे हैं। वैसे धार्मिक-धर्मस्व विभाग में भी एक सचिव पदस्थ हैं। सहकारिता विभाग में पदस्थापना के बाद चर्चा होने लगी है कि क्या सुब्रत साहू के अच्छे दिन लौटने वाले हैं ? मुख्य सचिव अमिताभ जैन के बाद वरिष्ठताक्रम में सुब्रत साहू तीसरे नंबर पर हैं। सुब्रत साहू से वरिष्ठ रेणु पिल्लै हैं। अमिताभ जैन इस साल जून में रिटायर होने वाले हैं, पर उनका मुख्य सूचना आयुक्त में नाम चल रहा है, ऐसे में वे समय से पहले रिटायरमेंट ले सकते हैं।

पीडब्ल्यूडी में मनमर्जी राज
कहते हैं कि लोक निर्माण विभाग के एक रिटायर्ड मुख्य अभियंता को संविदा नियुक्ति देने के लिए नियमों को ताक पर रख दिया गया। विभाग ने सहमति के लिए सामान्य प्रशासन विभाग को फाइल भेजी, तो जीएडी ने अनुमति देने के बजाय कई आपत्तियां लगा दी। मुख्य अभियंता 31 दिसंबर को ही रिटायर हुए हैं। बताते हैं इनकी संविदा नियुक्ति से एक पद ब्लाक हो जाएगा। खबर है कि सब इंजीनियर के रूप में विभाग में भर्ती यह अधिकारी अच्छी गोपनीय चरित्रावली के आधार पर कई लोगों की वरिष्ठता को लांघकर अधीक्षण अभियंता बन गए थे। कुछ महीने पहले पदोन्नत होकर मुख्य अभियंता बन गए थे,जबकि इनसे कुछ वरिष्ठ पदोन्नति के इंतजार में हैं। इनको गुपचुप संविदा नियुक्ति देने के खिलाफ कुछ इंजीनियरों ने आवाज भी उठानी शुरू कर दी है। फिलहाल तो जीएडी के रोड़े से मामला लटक गया है।

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निगम चुनाव की गर्मी शुरू
राज्य में स्थानीय निकायों में चुनाव की गर्मी दिखाई पड़ने लगी है। दावेदारों की कतार के बाद अब उम्मीदवारों की घोषणा भी शुरू हो गई है। उम्मीदवारों को घोषणा में भाजपा आगे रही, उसने पहले प्रत्याशियों की घोषणा शुरू की। नगर निगम और पालिकाओं में मेयर,अध्यक्ष और पार्षदों के चुनाव दलीय आधार पर होंगे। इस कारण संघर्ष दिखाई पड़ने लगा है तो राजनीति भी शुरू हो गई है। मेयर का चुनाव जनता के माध्यम से होने के कारण दिलचस्पी कुछ ज्यादा ही नजर आ रही है। पहली बार राज्य में नगरीय निकायों और पंचायतों के चुनाव एक साथ हो रहे हैं।
(लेखक पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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