
CG NEWS:यह कैसा राज्योत्सव है भाई….. ! जो पद्मश्री कला साधक को दुखी कर गया…
CG NEWS: ( गिरिजेय ) “क्या हम अपने आप को अपमानित करते हुए दूसरों का सम्मान करके खुश हो सकते हैं….? और क्या ऐसा करते हुए हम कोई उत्सव मान सकते हैं ? यह सवाल छत्तीसगढ़ राज्योत्सव के दौरान बिलासपुर के पुलिस ग्राउंड में आयोजित समारोह बैठे हुए किसी भी शख्स के दिमाग में उठ सकता है…..। अलबत्ता यह सवाल उसके दिल और दिमाग को भी झकझोर सकता है। और जब कथक गुरु के रूप में देश ,प्रदेश और दुनिया भर में विख्यात पद्मश्री रामलाल बरेठ जी कैमरे के सामने आकर कुछ इसी तरह का अपना दुख व्यक्त करते हैं तो यह सवाल और भी गहरा जाता है।
लंबे समय तक इतिहास के किताब़ों की पढ़ाई कर प्रशासनिक सेवा में आए अफसरों को यह तो मालूम ही होगा कि हमारे देश और दुनिया में राज्योत्सव का रिवाज कितना पुराना है। उन्होंने यह भी पढ़ा होगा कि राज्योत्सव जैसे आयोजनों में उस समय के स्थानीय प्रतिभाओं – कलाकारों को कितनी अहमियत दी जाती थी। उन्हें राज्याश्रय भी मिलता रहा और उनका सम्मान भी किया जाता रहा। छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना के 24 साल पूरे होने पर जिला स्तर पर आयोजन हो रहे हैं। बिलासपुर में भी पुलिस ग्राउंड में बड़ा जलसा किया जा रहा है। जिसमें कलाकारों की ओर से बेहतर प्रदर्शन किए जा रहे हैं। लोग इस आयोजन में जुट भी रहे हैं। सरकार की मंशा के अनुरूप ऐसे आयोजन की बड़ी तैयारी होती है, ख़जाने से खर्चा भी होता है। चाकचौबंद इंतज़ाम करते हुए व्यवस्था के ज़िम्मेदार लोग पूरे समय सचेत रहते हैं कि कहीं कोई कमी या चूक ना रह जाए। लेकिन तमाम तैयारियों के बाद हर बार ऐसे आयोजन में एक सवाल को अपनी जगह बनाने का मौक़ा मिल जाता है कि स्थानीय कलाकारों को प्रदशर्न का मौक़ा क्यों नहीं मिलता । देश के तमाम हिस्से से कलाकारों को अवसर मिलता है । वे सुखद आतिथ्य की मीठी यादें लेकर यहां से वापस लौटते हैं। लेकिन हमारे अपने आसपास के कलाधर्मी प्रदर्शन के लिए तरस जाते हैं, दुखी होते हैं और हर बार उत्सव उनके लिए कड़वी यादें छोड़ जाता है। उनके ही सामने दूसरे कलाकारों की आवभगत होती रहती है और हमारे अपने लोग अपने ही घर में अपमानित होते रहते हैं। यह सही है कि कलाकारों को किसी राज्य या देश की सरहद में बांधा नहीं जा सकता। लेकिन यह सवाल भी अपनी जगह है कि क्या हम अपने आप को अपमानित करते हुए दूसरों का सम्मान करके खुश हो सकते हैं और कोई उत्सव मना सकते हैं ? क्या यह आमंत्रित कलाकारों के मंहगे स्वागत – सत्कार की लम्बी लकीर खींचकर अपने घर के लोगों की लक़ीर छोटी करने जैसा नहीं लगता …. ?
छत्तीसगढ़ के इस अंचल में भी कई तपस्वी कलाकार हैं। जो लोक कलाओं के साथ ही नृत्य, संगीत, साहित्य और संस्कृति के विभिन्न विधाओं में पारंगत हैं।जिन्होने प्रदेश , देश और दुनिया के मंच पर अपना परचम लहराया है। यकीनन ऐसे आयोजनों में उम्मीद की जाती है कि लोकल कलाकारों को न केवल प्रदर्शन का मौका मिले, बल्कि उन्हें सम्मानित भी किया जाए। मगर बिलासपुर के पुलिस ग्राउंड में राज्योत्सव देखने पहुंचे लोगों को भले ही आमंत्रित कलाकारों ने आनंद से भर दिया। कला प्रेमियों ने पूरे सम्मान के साथ इस मौके का आनंद उठाया ।लेकिन कहीं ना कहीं इस कसक ने भी दिलो दिमाग पर अपनी जगह बना ली कि स्थानीय कलाकार कहां हैं ? क्या उन्हें ऐसे मौके पर प्रदर्शन का मौका नहीं दिया जाना चाहिए ? आयोजक ऐसा मौक़ा क्यों देते हैं कि लोग ख़ास इलाक़े के आमंत्रित कलाकारों के चेहरे को ख़ास इलाक़े के अफसरों से जोड़कर देखने पर मज़बूर हो जाते हैं ? और इसमे छत्तीसगढ़ की बज़ाय किसी और सूबे के उत्सव की झलक दिखाई देने लगती है।
छत्तीसगढ़ में रायगढ़ घराना कथक नृत्य के लिए प्रदेश, देश और दुनिया में अपनी एक पहचान रखता है। इस घराने से जुड़े रामलाल बरेठ की चौथी पीढ़ी आज भी इस कला को समर्पित है। रामलाल बरेठ को भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया है। इसके अलावे वासंती वैष्णव भी मशहूर ख्याति प्राप्त नृत्यांगना है। लोक कला में रेखा देवार, लालजी श्रीवास जैसे कई नाम है। ऐसे कला धर्मियों की प्रस्तुति राज्योत्सव में नजर नहीं आई तो कला प्रेमियों को स्वाभाविक रूप से निराशा हुई। राज्योत्सव के दौरान हुई इस चूक की पुष्टि उस समय भी हुई जब कथक गुरु रामलाल बरेठ ने कैमरे के सामने अपना दुख व्यक्त किया। उनकी बातों में यह साफ झलक रहा था कि जिस कथक कलाकार को राष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया है, उसे राज्योत्सव जैसे कार्यक्रम में सम्मानजनक तरीके से न्यौता भी नहीं दिया गया। उन्होंने दुखी मन से कहा कि पता नहीं हमारे अंदर क्या कमी है जिसकी वजह से हमें छोड़ दिया जाता है। जबकि रायगढ़ कथक घराना ने भारतवर्ष में अपना स्थान बनाया है। रामलाल बरेठ को अविभाजित मध्य प्रदेश के समय 1995 में तब के राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा ने शिखर सम्मान से नवाज़ा था। रामलाल बरेठ और उनके पुत्र भूपेंद्र बरेठ के निर्देशन में नई पीढ़ी को कथक सिखाया जा रहा है। जिसमें कई नवोदित कलाकार शिक्षा ग्रहण कर अपनी दक्षता हासिल कर रहे हैं। ऐसे नवोदित कलाकारों को स्थानीय मंच पर अवसर मिले तो हौसला बढ़ता है। लेकिन प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग और व्यवस्था के जिम्मेदार दूसरे लोगों को पता नहीं यह सीधी सरल सी बात क्यों समझ में नहीं आती ? क्यों ऐसी सूची में स्थानीय प्रतिभाओं को शामिल नहीं किया जाता और कला के क्षेत्र में अपना जीवन समर्पित करने वाले वयोवृद्ध कथक गुरु को अपना दुख व्यक्त करना पड़ता है ? रंगीन रौशनी की चमक दमक के बीच चल रहे जलसे में यह सवाल अब भी जवाब की तलाश कर रहा है।