Bihar Assembly Election 2025- सीटों के बंटवारे का पेच और परिवारों का बढ़ता सियासी दबदबा

Bihar Assembly Election 2025/पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों का ऐलान हो चुका है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में अभी भी सीट बंटवारे का पेच महागठबंधन और एनडीए दोनों खेमों में फंसा हुआ है।

इसी बीच, बीजेपी अपनी कुछ ‘पक्की सीटों’ को लेकर खासी आश्वस्त दिख रही है, जहाँ उसने पिछले 5 या 6 चुनावों से लगातार जीत दर्ज की है। रामनगर, चनपटिया, रक्सौल, बनमनखी, पूर्णिया, हाजीपुर, कुम्हरार, पटना साहिब और गया टाउन जैसी 9 सीटें बीजेपी के लिए ऐसी ही अजेय गढ़ बन चुकी हैं।

लेकिन बिहार की राजनीति में सीटों का वर्चस्व सिर्फ जातीय समीकरणों या पार्टी की ताकत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ‘खानदानी’ सीटों का एक बड़ा पहलू भी उभर कर सामने आता है। ये वो सीटें हैं जहाँ एक ही परिवार या खानदान का राजनीतिक दबदबा इतना गहरा है कि चुनाव में उनकी जीत लगभग तय मानी जाती है।

यह समझना मुश्किल नहीं है कि बिहार की राजनीति में ‘परिवारवाद’ की जड़ें कितनी गहरी हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो बिहार के 27% विधायक किसी न किसी राजनीतिक परिवार से संबंध रखते हैं। चौंकाने वाली बात यह भी है कि 57% महिला जनप्रतिनिधि भी सियासी परिवारों से जुड़ी हुई हैं। लोजपा (रामविलास) में तो यह आंकड़ा 50% तक पहुंच जाता है, जहाँ आधे जनप्रतिनिधि राजनीतिक परिवारों से आते हैं।

जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर अक्सर बिहार में ‘1200 राजनीतिक परिवारों’ की बात करते हैं, जहाँ से नेता निकलते हैं, पार्टियों के टिकट मिलते हैं और विधायक-मंत्री बनते हैं। हालांकि उनका मानना है कि दबदबे वाले परिवारों की संख्या 50 से अधिक नहीं है, लेकिन इन परिवारों का प्रभाव कई सीटों को ‘खानदानी’ सीटों में बदल चुका है।

इन खानदानी सीटों के कुछ प्रमुख उदाहरणों में सोनपुर-राघोपुर में लालू यादव का परिवार, हाजीपुर में रामविलास पासवान का परिवार, गयाजी में जीतन राम मांझी का परिवार, सीमांचल में तस्लीमुद्दीन का परिवार, सीवान में शहाबुद्दीन का परिवार, भोजपुर के बड़हरा में अंबिका शरण सिंह का परिवार, तरारी से सुनील पांडेय का परिवार, पश्चिम चंपारण में मदन जायसवाल का परिवार, शिवहर में आनंद मोहन का परिवार, बक्सर में जगदानंद सिंह का परिवार, तारापुर में शकुनी चौधरी का परिवार, झंझारपुर में जगन्नाथ मिश्रा का परिवार, बांकीपुर में नवीन किशोर सिन्हा का परिवार और मोकामा में अनंत सिंह का परिवार शामिल है।

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पारंपरिक पारिवारिक दबदबे वाली सीटें अपना गढ़ बरकरार रख पाती हैं या फिर इस बार बिहार की जनता कोई नया समीकरण पेश करती है। सीटों का बंटवारा और इन खानदानी सीटों पर पार्टियों का रुख, आगामी चुनाव की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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