
CG Highcourt का बड़ा फैसला: नियमों को ताक पर रखकर जूनियर को पदोन्नति देने पर जताई नाराजगी, शिक्षा विभाग का आदेश निरस्त
जस्टिस संजय जायसवाल की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि सेवा नियमों की अवहेलना कर किसी भी कर्मचारी को उसके वैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।
CG Highcourt/बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने स्कूल शिक्षा विभाग में नियम विरुद्ध की गई पदोन्नति के एक मामले में सख्त रुख अपनाते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।
कोर्ट ने विभाग के उस आदेश को निरस्त कर दिया है जिसमें एक पात्र शिक्षक को दरकिनार कर उनसे कनिष्ठ (जूनियर) कर्मचारियों को पदोन्नत कर दिया गया था।
जस्टिस संजय जायसवाल की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि सेवा नियमों की अवहेलना कर किसी भी कर्मचारी को उसके वैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।
यह पूरा मामला शिक्षक दिनेश कुमार राठौर से संबंधित है, जिनकी नियुक्ति 1989 में निम्न वर्ग शिक्षक के रूप में हुई थी और वर्ष 2009 में वे उच्च वर्ग शिक्षक बने।
विभाग के ‘भर्ती एवं पदोन्नति नियम 2008’ के अनुसार, व्याख्याता (लेक्चरर) के पदों को 100 प्रतिशत पदोन्नति के माध्यम से भरा जाना अनिवार्य है।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि वह इस पद के लिए पूरी तरह पात्र थे और 5 वर्ष की सेवा अवधि भी पूर्ण कर चुके थे। इसके बावजूद, जून 2012 में जारी पदोन्नति आदेश में विभाग ने उन्हें छोड़ दिया और उनके जूनियर शिक्षकों को व्याख्याता बना दिया।
विभागीय अधिकारियों ने याचिकाकर्ता का दावा इस आधार पर खारिज कर दिया था कि 1 अप्रैल 2010 की स्थिति में उनके पास स्नातकोत्तर (PG) की डिग्री नहीं थी।
हालांकि, याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने कोर्ट को बताया कि 19 जून 2012 को जब पदोन्नति की सूची जारी हुई, उससे काफी पहले यानी 16 अप्रैल 2012 को ही याचिकाकर्ता ने स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर ली थी।
कोर्ट ने माना कि पदोन्नति के समय पात्रता रखने के बावजूद अधिकारी ने जानबूझकर उनके नाम पर विचार नहीं किया, जो सेवा नियमों के खिलाफ है।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में 16 सितंबर 2016 के उस सरकारी आदेश को रद्द कर दिया है, जिसके तहत याचिकाकर्ता को अपात्र माना गया था।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता को निर्देशित किया है कि वे अपनी सभी मांगों के साथ विभाग के समक्ष एक विस्तृत अभ्यावेदन (Representation) प्रस्तुत करें।
साथ ही, राज्य सरकार और सक्षम प्राधिकारियों को आदेश दिया गया है कि वे ‘भर्ती एवं पदोन्नति नियम 2008’ के प्रावधानों के तहत आगामी 90 दिनों (तीन महीने) के भीतर याचिकाकर्ता की पदोन्नति पर सकारात्मक निर्णय लें।















