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बिना जांच बहाल किया..25 साल बाद मिला न्याय..हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला…शासन को देना होगा 24 साल का वेतन, भत्ता

आनन्दमार्गी के आरोप का किया सामना

बिलासपुर—आनंद मार्गी होने के आरोप शासकीय सेवा से बर्खास्त कर्मचारी को 25 साल बाद न्याय मिला है। हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई कर 24 साल का लंबित देयक का भुगतान करने को कहा है। हाईकोर्ट ने कहा कि यदि शासकीय कर्मचारी न्यायालय के आदेश पर बिना जांच बहाल किया गया हो तो कर्मचारी पिछला वेतन पाने का अधिकारी होता है।
सेवाकाल से 9  साल तक अलग रखे गए जल संसाधन विभाग के कर्मचारी को 25 साल बाद पूरा न्याय मिला है। कोर्ट ने कहा किसी शासकीय सेवक को अनिवार्य सेवानिवृत्त को न्यायालय ने अपास्त कर दिया है बावजूद इसके यदि उसे सेवा से दूर रखा जाता है तो ऐसी सूरत में  प्रार्थी को सेवा में मानकर अवधि का पूर्ण वेतन और भत्ता पाने का हकदार होगा। ऐसे ही एक मामले में हाईकोर्ट ने 24 साल से लंबित देयक के लिए पेश याचिका को निराकृत करते हुए शासन को सेवा से बाहर किए गए अवधि के वेतन और अन्य देयकों का भुगतान करने का आदेश दिया है।
राजनांदगांव निवासी याचिकाकर्ता अब्दुल रहमान अहमद जल संसाधन विभाग में सहायक ड्राफ्टमैन के पद में अगस्त 1989 को नियुक्ति हुए। रहमान मुख्य अभियंता, महानदी कछार रायपुर के अधीन काम कर रहे थे। 19 अप्रैल 1991 को प्रमुख अभियंता, जल संसाधन ने याचिकाकर्ता के आनंद मार्ग संगठन से जुड़े होने पर बर्खास्तगी का आदेश जारी किया।
आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण में आवेदन दिया। 18 मई 1999 को न्यायाधिकरण ने प्राकृतिक न्याय के सिद्बांत का उल्लंघन करने के आधार पर याचिकाकर्ता को बर्खास्त करने के आदेश को निरस्त कर दिया। विभाग को मामले की अलग से जांच करने की छूट प्रदान की। न्यायाधिकरण के आदेश पर याचिकाकर्ता को बहाल किया गया। लेकिन पिछली सेवा को बिना जोड़े रहमान को फ्रेस नियुक्ति दी गई।
विभाग ने न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ कही अपील नहीं किया। याचिकाकर्ता के आनंद मार्ग संगठन से जुड़े होने की जांच नहीं किया। बर्खास्त किए जाने से पुन नियुक्ति दिए जाने के बीच की अवधि का वेतन और  अन्य भत्ता दिलाए जाने की मांग को लेकर रहमान एमपी हाईकोर्ट में याचिका दायर किया।
 राज्य स्थापना के बाद मामले को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में आया।  कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सेवा से हटाए गए अवधि का वेतन देने का आदेश दिया। मामले की अंतिम सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी की एकलपीठ में हुई। कोर्ट ने आदेश में कहा कि 54-ए(1).  जहां बर्खास्तगी, निष्कासन या सरकारी कर्मचारी की अनिवार्य सेवानिवृत्ति को रद्द कर दिया गया है। सरकारी कर्मचारी को बिना किसी जांच के बहाल किया गया है। ऐसी सूरत में कर्मचारी को पिछला पूरा वेतन और भत्ता प्राप्त करने का अधिकार है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सेवा से बाहर रखे गए समय का पूरा वेतन, भत्ता देने का निर्देश दिया। यचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अनूप मजुमदार ने पैरवी की है।
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