Bilaspur NewsChhattisgarh

CG News: दख़ल… हमने बनाया है हम ही तोड़ेंगे..? और हम ही फ़िर से बनाएंगे

Capture DAKHAL

CG News: ( गिरिजेय ) छत्तीसगढ़ सरकार का नारा है….. हमने बनाया है हम ही सवारेंगे…। लेकिन बिलासपुर में व्यवस्था के जिम्मेदार लोग इससे और एक कदम आगे नजर आ रहे हैं। अपने पुराने रिवाज को बरकरार रखते हुए आगे जोड़ दिया है… हमने ही बनाया है.. हम ही तोड़ेंगे….और फ़िर से बनाएंगे। बनाने और तोड़ने की  यह परंपरा उसलापुर ओवरब्रिज के पास बने चौराहे में एक बार फिर जीवंत होती हुई नज़र आ रही है ।

 “कुशल इंजीनियरिंग” के साये में बनाए गए इस चौराहे को एक बार फिर छोटा किये जाने की ख़बर आ रही है। सरकारी खजाने में पैसे की कोई कमी नहीं है…. । हम पहले भी इसी तरह बनाने – तोड़ने का खेल करते रहे हैं….।

एक बार फ़िर पहले बनाने का खर्च… और अब तोड़ने का खर्च शामिल करके रिकॉर्ड बनाने की तैयारी है ।शहर के नुमाइंदों से लेकर आम आदमी तक सभी सिस्टम के इस  “बेहतरीन नमूने” को पिछले कुछ समय से देख रहे हैं और आगे भी देखते रहेंगे…..। और बनाने…. तोड़ने….संवारने का नारा इसी तरह ज़मीन पर उतरता रहेगा…..। इस कामयाब़ी के पीछे सिस्टम के जिन लोगों की “विलक्षण प्रतिभा” का इस्तेमाल हुआ है, उनकी ख़ोजबीन कर पुरस्कार दिया जाना सही रहेगा।

CHOUK

दिल्ली में बैठी सरकार का यह नारा बहुत मशहूर है…. सबका साथ – सबका विकास…। समय – समय पर… सबका प्रयास .. जैसी लाइन इसमें जुड़ती रहती है।

वैसे ही छत्तीसगढ़ की मौजूदा सरकार के स्लोगन – हमने ही बनाया है – हम ही सवारेंगे ….के आगे बिलासपुर में लाइन जुड़ रही है हमने ही बनाया है… हम ही सवारेंगे …हम ही तोडेंगे और फिर हम ही बनाएंगे…. ।

दूर की सोच रखने वाले सिस्टम की काबिलियत और लियाकत को लोगों ने जमीन पर उतरते देखा था, जब उसलापुर ओवरब्रिज से लगकर मंगला चौक की ओर जाने वाली सड़क का चौड़ीकरण किया गया ।

बिलासपुर शहर को एक अच्छी चौड़ी सड़क की सौगात मिली। कुशलता की लाइन को आगे बढ़ते हुए ओवरब्रिज के ठीक सामने एक बढ़िया चौराहा बनाया गया। जितनी बड़ी जगह मिली उसका उपयोग करते हुए करीब आधी सड़क पर आलीशान रोटरी ( आईलैंड) बनाई गई।

जिसमें हरी घास लगाकर सुंदर फ़व्वारा चालू किया गया। देखते ही देखते एक नया चौराहा लोगों को मिल गया । जिसमें आकर चार से अधिक सड़कें मिलती हैं।

हालांकि  उधर से गुजरने वाले इंजीनियर और आर्किटेक्ट भले ही अपनी कम समझ के कारण यह सवाल उठाते थे कि पूरी सड़क को घेर कर इतना बड़ा चौक क्यों बनाया गया है…? जब इस शहर और तमाम शहरों में सभी तरफ चौक के बड़े आईलैंड  को तोड़कर छोटे-छोटे आलैंड बनाए जा रहे हैं। ऐसे में बड़ा चौक बनाने का क्या तुक है…?  

लेकिन उन्हें कौन समझाता कि अचानकमार के जंगल को बिलासपुर शहर से जोड़ने वाली इस सड़क पर मिला यह अचानक चौक सिस्टम की “कुशल यांत्रिकी” का बेहतरीन नमूना है।

जिसे बनाते हुए सिस्टम में मौजूद लोगों ने  अपना पूरा “टैलेंट” लगाया है। भले ही चौक बनते समय आसपास के लोगों ने चौराहे के आईलैंड को छोटा करने के सुझाव दिए हो…। या फिर इस चौक पर से आना-जाना शुरू होने के बाद लोगों को दिक्कत हुई हो …।

CG NEWS:क्या इस चौराहे की तरह “कन्फ्यूज़” है बिलासपुर का निज़ाम…? और “ऊठक – बैठक” में मस्त हैं हमारे नुमाइंदे…?

या इतनी चौड़ी सड़क के बावजूद रास्ता जाम हो रहा हो। और पुलिस के अमले को मशक्कत करनी पड़ रही हो…..।  लेकिन सिस्टम के लोगों ने अपनी सूझबूझ और समझ के हिसाब से इस चौक को बेहतर आकार दिया। भले ही इस चौक से गुजरने वाले लोग कन्फ़्यूज हो रहे थे । लेकिन सिस्टम में बैठे लोगों ने भनक नहीं लगने दी कि वह भी कन्फ़्यूज है…।

Epaper 1734789584237

जब मीडिया ने असुविधा की बात की तो चौक पर कुछ इस अंदाज में दिशा निर्देश संकेतक बोर्ड लगाए गए जैसे पुरातत्व संग्रहालय में लगे साइन बोर्ड बताते हैं कि किसी ओर किस राजा के कार्यकाल की मूर्तियां रखी हुई है। जाहिर सी बात है – उम्मीद की गई थी कि इस ओर से गुजरने वाले लोग कुछ पल रुक कर पहले बोर्ड में लिखी इबारत पढ़ेंगे और डायरेक्शन को समझ कर उस हिसाब से आगे बढ़ेंगे। उस रास्ते से गुजरने वाले आम लोग भी इसका पालन करते हुए अपना सफर तय कर रहे हैं। और  आम लोगों के बीच से चुनकर आए जन प्रतिनिधि भी यह सब देखते हुए सायरन वाली गाड़ियों में अपना रास्ता तय कर रहे हैं। वैसे किसी चौक पर आने-जाने में दिक्कत होती है या जाम की स्थिति आती है तो उसके लिए आम लोग भी  जिम्मेदार माने जाते हैं।  “ट्रेफ़िक सेंस” को लेकर लोगों की समझ को किसी भी रास्ते पर चलते हुए या किसी भी चौक चौराहे पर देखा जा सकता है। लेकिन उसलापुर ओवर ब्रिज के पास इस चौक पर ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने के लिए पुलिस ने भी बड़ी मशक्कत की ।तरह – तरह के प्रयोग चलते रहे..। कुछ बैरिकेट्स लगाए गए ।लेकिन  फिर भी व्यावहारिक दिक्कतें बनीं रहीं तो ऊपर के लोगों को भी यह समझना आसान हो गया कि चौराहे की बनावट में ही कोई गड़बड़ी है। यह कमेंट भी सुनने को मिला कि – बिलासपुर का निज़ाम इस चौराहे की तरह कन्फ़्यूज तो है… लेकिन ज़िद्दी नहीं है…।

मीडिया में भी इस बारे में लिखा गया। जो चीज आम लोगों को हर समय नजर आती है और मीडिया भी जिसे देख लेता है उसे शहर के नुमाइंदे क्यों नहीं देख पाते – यह सवाल शायद अब पूछा भी नहीं जाता। लेकिन अब यह खबर आ रही है कि उसलापुर ओवर ब्रिज के सामने बने चौराहे को  छोटा किया जाएगा। शायद अब यह पूछने वाला भी कोई नहीं है कि किस पैमाने के हिसाब से  इस चौक की डिजाइनिंग की गई थी….? इसमें कितना पैसा सरकारी खजाने से खर्च हुआ….?  इसे तोड़ने में फिर कितना खर्च होगा….? फिर उसे दोबारा बनाने में कितना खर्च किया जाएगा …? तोड़फोड़ और फिर से बनाने की इस कवायद में आने जाने वालों को होने वाली दिक्कत के लिए जिम्मेदार कौन है….?  

क्या ऐसे लोगों के खिलाफ भी कोई कार्रवाई की जाएगी…? शायद अब इस तरह के सवाल ही बेमानी हो चुके हैं ।क्योंकि हमने ही बनाया है…. हम ही सवारेंगे…. हम ही तोड़ेंगे… और हम ही बनाएंगे… इस सूत्र वाक्य को चौक के सहारे ज़मीन पर उतारना है…. !

ED raid: मनी लॉन्ड्रिंग का केस मैनेज करने के नाम पर करोड़ों वसूली के मामले में ईडी ने कई ठिकानों पर डाली रेड
Back to top button
close