ChhattisgarhBusinessJob/VacancyLifestyleReligion

CG NEWS:दख़लः स्कूल शिक्षा विभाग में बवाल क्यों….? क्या परदे के पीछे से झलक रहा आम शिक्षकों का गुस्सा…. ?

CG NEWS:( गिरिजेय )  छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग में क्या सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है ….? यह सवाल ब्लैक बोर्ड पर चाक से लिखे अक्षरों की तरह साफ-साफ पढ़ा जा सकता है, जब शिक्षा विभाग से जुड़ी दो कड़वी खबरें एक ही दिन मीडिया में देखने को मिलती हैं। एक तो अभनपुर में एक प्रधान पाठक ने महिला बीईओ की पिटाई की। प्रधान पाठक को सस्पेंड किया गया और गिरफ्तार कर लिया गया। दूसरी खबर में प्रतापपुर -बरबसपुर स्कूल में शिक्षिका को बंदूक लेकर धमकाने वाले शिक्षक की गिरफ्तारी से जुड़ी है। इन खबरों को देखकर सहज ही सवाल उठ रहा है कि आखिर शिक्षा विभाग में इतनी बेचैनी क्यों है ..? जिसके चलते सीधी सरल रेखा पर चलने वाले शिक्षक कानून अपने हाथ में ले रहे हैं और पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर रही है। इस तरह की घटनाओं के बरक्स जो बातें सुनने को मिल रही है, उससे लगता है कि शिक्षकों की अपनी समस्याओं को लेकर शिक्षा विभाग के दफ्तरों में जिस तरह का आलम है, शायद उसका ही नतीजा है कि शिक्षक एक अलग ही रूप में सुर्खियों में आ रहे हैं । नतीजतन उसी दिन छपने वाली वह खबर दब जा रही है, जिसमें पांचवी- आठवीं की केंद्रीयकृत परीक्षा और शिक्षा के स्तर में सुधार का जिक्र किया गया है ।

छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ महीनो में जब बलौदा बाजार, लोहाराडीह, बलरामपुर , सूरजपुर की घटनाएं हुई तो सवाल उठा था कि लोग सरकारी सिस्टम के खिलाफ सड़क पर क्यों आ रहे हैं…? इसके बाद बिलासपुर के सरकंडा में थानेदार और तहसीलदार के बीच  विवाद के समय  सरकारी सिस्टम के दो हिस्से एक दूसरे के आमने-सामने नजर आए । अब शिक्षा विभाग से जुड़ी जो खबरें आ रही है, उससे लग रहा है कि एक सरकारी सिस्टम के अंदर ही लोग एक दूसरे के आमने-सामने हैं। अभनपुर और बरबसपुर में जो कुछ हुआ वह सबके सामने है। लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी तैर रहा है कि जिस विभाग पर नई पीढ़ी को तराशने की जिम्मेदारी है, उस विभाग के अंदर ही यह सब क्यों हो रहा है..?  विभाग से जुड़े लोगों से बात करने पर पता चलता है कि सिस्टम के अंदर जिस तरह की भर्राशाही और मनमानी चल रही है, उसकी वजह से भी शिक्षकों में बेचैनी है। जिन शिक्षकों से उम्मीद की जाती है कि वे बच्चों को अच्छी शिक्षा दें और बेहतर नागरिक बनाएं, वे खुद दबाव और तनाव में जी रहे हैं। नई पीढ़ी का भविष्य संवारने वाले शिक्षकों में बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है, जो खुद अपने भविष्य को लेकर चिंतित है।

क्राइम ब्रांच के फर्जी अधिकारियों ने...तान दिया हथियार...कहा...सावधान...हिली तो मार देंगे गोली...30 लाख लेकर हुए फरार

समय – समय पर ज्ञापन और प्रतिनिधि मंडल के जरिए खबरें आती है कि तमाम शिक्षक सेवा की गणना, पदोन्नति, क्रमोन्नति, वेतन विसंगति जैसी मांगों को लेकर किस तरह परेशान है। जब भी पदोन्नति की चर्चा चलती है तो गोपनीय  रिपोर्ट ( सीआर) का भी जिक्र आता है। बताते हैं कि पिछले कई साल से सीआर नहीं लिखी गई है। अब शिक्षकों को कहा जा रहा है कि वे अपना सीआर तत्कालीन बीईओ या डीईओ से लिखाकर पेश करें। जिन अफसरों का तबादला दूसरी जगह हो चुका है, शिक्षक अपना सीआर लिखाने के लिए अब उनके चक्कर काट रहे हैं। वैसे भी शिक्षा विभाग के दफ्तरों में संतान पालन अवकाश,  मेडिकल छुट्टी या दूसरे वेतन – भत्ते को लेकर आम शिक्षक दफ़्तरों के चक्कर काटने के आदी हो चुके हैं । जहां बिना चढ़ावा काम करा पाना करीब – करीब नामुमकिन है। अड़ंगेबाज़ी और कागजी कार्रवाई में फंसा कर शिक्षकों को परेशान करना दफ़्तरों में बैठे लोगों का सबसे पसंदीदा शौक बना हुआ है।

जाहिर सी बात है कि इससे प्रताड़ित हो रहे शिक्षकों में बड़ा आक्रोश है । एक दिलचस्प सवाल से भी बहुत कुछ समझा जा सकता है कि आख़िर बीईओ की कुर्सी पाने के लिए शिक्षक – लेक्चरर के बीच क्यों मारामारी नज़र आती है..?

जबकि इस मामले में बड़ी अदालत ने भी गंभीर टिप्पणी की है कि शिक्षक / व्याख्याता का पद शैक्षणिक है ,उन्हें बार-बार क्यों बीईओ के प्रशासनिक पद पर बिठाया जाता है। हालत यह है कि पिछले काफी समय से बीईओ की लिस्ट अटकी पड़ी है। लोग यह भी बताते हैं कि चयन परीक्षा के ज़रिए एबीईओ के पद पर चयनित और अब बीईओ का ओहदा संभाल रहे अफ़सरों के तेवर कुछ अलग ही हैं। भले ही अनुभव की कमी के कारण  दफ़्तर चलाते हुए शिक्षकों को संतुष्ट नहीं कर पाते। वैसे प्राचार्य से बीईओ बनाए गए अफ़सर अधिक व्यावहारिक है और कुशलता से दफ्तर चलाते रहे हैं। बदइंतज़ामी ऐसी है कि एक जिले में बीईओ दफ्तर में तालाबंदी जैसी घटनाएं भी हो चुकी है।

Weather ki jankari: अगले कुछ दिन इन इलाकों में शीतलहर का अलर्ट

हालांकि असंतोष या आक्रोश कितना भी क्यों ना हो…… कानून को अपने हाथ में लेने का हक किसी को नहीं है। इस नजरिए से हाल की घटनाओं में गिरफ्तार हुए शिक्षकों के प्रति सहानुभूति की कोई वजह नहीं हो सकती। लेकिन अब तक एक पूर्ण शिक्षक के अधिकारों से वंचित छत्तीसगढ़ के तमाम शिक्षकों के अंदर सुलग रहे आक्रोश और गुस्से को भी ख़ारिज नहीं किया जा सकता। जो अब तक ज्ञापन , आवेदन, आंदोलन के चक्र में उलझे हुए हैं। ऐसी सूरत में  पांचवी- आठवीं की केंद्रीयकृत परीक्षा के जरिए स्कूल स्तर पर शिक्षा को बेहतर बनाने की पहल से जुड़ी खबर अगर उसी दिन दो शिक्षकों की गिरफ्तारी की खबर के नीचे दबी हुई नजर आ रही है, तो व्यवस्था के ज़िम्मेदार लोगों को सवालों के बड़े गोल घेरे से बाहर कैसे देखा जा सकता है…?

 

 

Back to top button
close