बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने 47 साल पुराने एक वैवाहिक संबंध को कानूनी रूप से समाप्त करते हुए फैमिली कोर्ट के तलाक आदेश को सही ठहराया है। कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण फैसला देते हुए पति को निर्देश दिया है कि वह अपनी पत्नी को एकमुश्त 10 लाख रुपये गुजारा भत्ता के रूप में अदा करे। यह मामला लंबे समय से न्यायिक प्रक्रिया में था, जिसमें अब जाकर अंतिम निर्णय आया है।
यह पूरा मामला भिलाई स्टील प्लांट में कार्यरत एक कर्मचारी और उनकी पत्नी से जुड़ा है। दोनों की शादी 20 अप्रैल 1978 को रीवा जिले के मऊगंज में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई थी। इस दंपत्ति के तीन बच्चे भी हैं। पति को वर्ष 1995 में भिलाई स्टील प्लांट में नौकरी मिली, जिसके बाद पूरा परिवार सेक्टर-5 भिलाई में बस गया।
समय बीतने के साथ-साथ उनके रिश्तों में खटास बढ़ती गई और विवाद गहराते चले गए। पति का आरोप था कि पत्नी वर्ष 1987 से झगड़ा कर रही थी, गाली-गलौज करती थी और घर के कामों से साफ इंकार कर देती थी।
पति ने यह भी आरोप लगाया कि कई बार पत्नी और बच्चों ने उसके साथ मारपीट भी की। स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि पुलिस तक शिकायत करनी पड़ी। पति के अनुसार, वर्ष 2010 से दोनों एक ही घर में अलग-अलग कमरों में रह रहे थे और वर्ष 2017 में पत्नी ने उसे घर से निकाल भी दिया था।
दूसरी ओर, पत्नी ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि अत्याचार तो पति ही करता था। वह उसे खाने-पीने तक पर रोक लगाता था और अलग कमरे में बंद कर देता था। पत्नी का कहना था कि बाद में पति खुद ही घर छोड़कर चला गया और अब उस पर झूठे आरोप लगा रहा है।
इस मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच ने की। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों और तथ्यों पर विचार करने के बाद यह माना कि दंपत्ति इतने लंबे समय से अलग रह रहे हैं कि अब उनका साथ रहना संभव नहीं है।
कोर्ट ने इस स्थिति को मानसिक क्रूरता की श्रेणी में रखा। इसी आधार पर, हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए तलाक के आदेश को बरकरार रखते हुए पति को पत्नी को एकमुश्त 10 लाख रुपये गुजारा भत्ता के रूप में अदा करने का आदेश दिया।