शिक्षाकर्मी हड़तालःउधड़ रहीं दमन की परतें…उम्मीद भी…गुस्सा भी

Chief Editor
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strikeबिलासपुर।शिक्षाकर्मी हड़ताल खत्म होने के बाद स्कूलों में स्थिति सामान्य हो रही है। सरकारी स्कूलों में कक्षाएं लगने लगी हैं।जेहन में तरह–तरह के सवाल लिए शिक्षा कर्मी बच्चों को फिर से पढ़ाने लगे हैं। लेकिन हड़ताल खत्म होने के बाद भी खबरें खत्म नहीं हुईं हैं। कहीं यह खबर सुर्खियों में है कि हड़ताल खत्म कराने में किसने–कैसे–कितनी भूमिका निभाई,किसका रोल अहम् रहा।वहीं अब इस तरह की खबरों को जगह मिल रही है कि शिक्षा कर्मियों के मोर्चे में दरार पड़ रही है और वे एक दूसरे के खिलाफ किस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं। लेकिन इन सुर्खियों के बीच एक अहम् सवाल कहीं किनारे लग गया है कि आखिर उस रात शिक्षा कर्मी संगठन के नेताओँ और प्रशासन के नुमाइँदों के बीच ऐसी क्या बात हुई कि हड़ताल वापसी का फैसला कर लिया गया।
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जबकि हड़ताल में शामिल होकर अपनी ताकत दिखा रहे आम शिक्षा कर्मी अभी भी इसी सवाल का जवाब ढूंढ़ रहे हैं।जिनके जेहन में हड़ताल खत्म होने के बाद सरकार की ओर से कमेटी गठन की खबरों से उम्मीद की लहरें भी उठ रही हैं और धीरे –धीरे उधड़ रही दमन की परतें मन में गुस्सा भी पैदा कर रही हैं।श्रेय लेने की होड़ के बीच व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों में से कोई भी बेबसी में सब्र के बाँध को संभाले शिक्षा कर्मियों के मन की बात  को पढ़ने की कोशिश करता दिखाई नहीं दे रहा है।

यह खबर अब पुरानी हो चुकी है कि छत्तीसगढ़ के शिक्षा कर्मियों ने 20 नवंबर से संविलयन सहित अपनी 9 सूत्रीय मांगों को लेकर बेमुद्दत हड़ताल शुरू की थी। फिर करीब दो हफ्ते बाद शून्य में यह हड़ताल वापस ले ली गई। सोमवार 4 दिसंबर की रात करीब 1 बजे हड़ताल वापसी का फैसला किया गया। संगठन के लोगों का एक लाइन का बयान आया कि छात्र हित और समाज हित को देखते हुए हड़ताल वापसी का फैसला किया गया । इसके बाद हड़ताली शिक्षा कर्मी अपने-अपने स्कूलों में लौट गए। लेकिन हड़ताल को लेकर खबरों का सिलसिला थम नहीं रहा है। शुरूआती दौर में इस तरह की खबरें सुर्खियां बटोरती रही  कि हड़ताल खत्म कराने में किसकी – कितनी – कैसी भूमिका रही….। कौन – कब – कैसे – किससे मिला।कहां से गाड़ी आई…कहां से नास्ता आया….।वगैरह…वगैरह…।

लेकिन यह बात सामने नहीं आ सकी कि आखिर उस रात दोनो पक्ष के बीच बात क्या हुई, जिससे हड़ताल वापसी का फैसला किया गया । जबकि हड़ताल में शामिल आम शिक्षा कर्मी केवल यही जानना चाहता है कि आखिर किस बात पर हड़ताल खत्म करने का फैसला हुआ। उन्हे लग रहा था कि शायद धीरे- धीरे यह कोहरा छंटेगा और आखिरी दौर की बातचीत का मजमून सामने आ जाएगा। लेकिन उसकी जगह संगठन में दरार की खबरें सुर्खियां बन गईं। और सीएम से मुलाकात को लेकर बयानबाजी-आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। जबकि शिक्षा कर्मियों के जेहन में अब भी वही सवाल कायम है।

अलबत्ता सही बात सामने नहीं आने पर सोशल मीडिया पर सेटिंग जैसे शब्दों के साथ तरह-तरह के सवाल तैरने लगे। लोकताँत्रिक व्यवस्था में किसी आँदोलन का ऐसा अँत उन लोगों के लिए यकीनन तकलीफदेह है, जिन्हे लगता है कि इस व्यवस्था में कोई भी समुदाय शांतिपूर्ण ढंग से अपनी आवाज उठा सकता है। लेकिन अगर 1 लाख 80 हजार लोगों की मुहिम इस तरह मजाक बनकर रह जाए तो आने वाले कल की तस्वीर की कल्पना की जा सककती है । और सोचना पड़ता है कि क्या इस सिस्टम में कल को कोई भी पीड़ित समुदाय अपनी आवाज बुलंद करने की हिम्मत कर सकेगा।

हमने इस सिलसिले में शिक्षा कर्मी संगठन के कई नेताओँ से बात कर समझौते की रात का सच जानने की कोशिश की । इस बीच कुछ बातें सोशल मीडिया पर भी सामने आईं। जिन्हे मिलाकर देखें तो यही समझ में आता है कि हड़ताल के दौरान सरकार की ओर से चलाए गए दमन चक्र के सामने शिक्षा कर्मियों को हड़ताल खत्म करने पर मजबूर होना पड़ा। नेताओँ ने बताया कि जिस तरह से आँदोलन को रोकने की कोशिश की गई, जिस तरह से जगह-जगह 144 धारा लगाई गई, धरना के लिए अनुमति नहीं दी गई,बर्खास्गी का दौर शुरू हुआ ,लाठी चार्ज हुए, रास्ते पर रोककर तलाशी ली गई, धड़ाधड़ गिरफ्तारिया की गईं और खासकर दो-दो महीने के दुधमुहे बच्चों के साथ भी महिला शिक्षा कर्मियों को जेल में बंद कर दिया गया , उनकी पुकार सुनी नहीं गई।

इसके बाद लगा कि आम शिक्षा कर्मियों की सुरक्षा के लिए हड़ताल वापस लेना ही एक मात्र उपाय रह गया है। वे यह भी कहते हैं कि सरकार से लड़ना कठिन है।और सरकारी कर्मचारियों की एक सीमा होती है।एक शिक्षा कर्मी नेता ने बताया कि हम पर किसी का दबाव नहीं था….हमें दमन से पीड़ित हो रहे हमारे शिक्षा कर्मी साथियों (खासकर महिला शिक्षा कर्मी) के चेहरे दिखाई दे रहे थे।हमारे सारे नेता या तो जेल में बंद थे या अँडरग्राउँड थे,आंदोलन नेतृत्वविहीन-दिशाहीन हो रहा था।ऐसे में आपस में बातचीत करके ही हम कोई फैसला कर सकते थे।इसलिए हमने ही आला अफसरों को जेल में बुलाया और सभी को साथ बिठाने की अपील की।जिससे सभी जेल में इकठ्ठे हुए और शिक्षा कर्मियों पर हो रहे दमन को देखते हुए हड़ताल वापस लेने का फैसला किया जा सका।इस पूरी प्रक्रिया में ही देर रात हो गई…।शिक्षा कर्मियों के एक नेता ने तो साफ-साफ लिखा है कि हम सरकार के इस दमन को भूल नहीं सकते और जो घाव मिले हैं उनका अभी भर पाना मुश्किल है।

हालांकि आम शिक्षा कर्मियों को उम्मीद है कि सरकार ने जिस तरह कमेटियों के गठन की घोषणा की है , उससे आने वाले समय में कुछ राहत मिल सकती है।लेकिन हड़ताल के दौरान हुए दमन की उधड़ती परतों के बीच गुस्सा और उम्मीद दोनों अपनी- अपनी जगह पर हैं। श्रेय लेने की होड़ और एकता टूटने की खबरों के बीच अब गेंद सरकार के पाले में हैं।अगर सरकार को  सच में लगता है कि शिक्षा कर्मी अपने ही बच्चे हैं और उनकी मांगे पूरा करना है तो इतिहास को भुलाकर सचमुच ऐसा कदम उठाना पड़ेगा,जिससे कि शिक्षा कर्मियों की उम्मीद का सुफल उनके सामने आए।…और दमन से उपजा गुस्सा भी दूर हो जाए।

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