कहीं कोर्ट की अवमानना तो नहीं,आदेश में जुड़ गया हारने वाले का नाम,अति.तहसीलदार ने की थी कार्रवाई

BHASKAR MISHRA
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tehsil-bspबिलासपुर—बिलासपुर तहसील प्रशासन को कोर्ट से पंगा लेने का आदत सी हो गयी है। रोज नए विवादों को जन्म दे रहा है। पुराने मामले में एक नया कारनामा सामने आया है। तहसीलदार ने राजस्व मण्डल के आदेश में छेड़छाड़ कर हार चुके व्यक्ति का नाम जोड़ दिया है।  मामला कोर्ट के अवमानना का है। तात्कालीन कलेक्टर को भी जानकारी मिल चुकी थी..लेकिन किन्ही कारणों से ध्यान नहीं दिया। 2015-16 का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। जिला प्रशासन भी प्रकरण को गंभीरता से लिया है।
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                         जानकारी के अनुसार व्यापार विहार और विनोबानगर के बीच करोड़ों की जमीन को लेकर दो पार्टियों के बीच लम्बी कानूनी लड़ाई चली। मामला तहसील से कमिश्नरी कोर्ट और फिर राजस्व मण्डल तक पहुंचा। एक दशक की लड़ाई में राजस्व मण्डल ने व्यापार बिहार क्षेत्र की जमीन को पार्वती का बताया। राजस्व मण्डल बोर्ड में पार्वती बाई और अन्य के खिलाफ रमेश और नरेश को जमीन से धोना पड़ा। राजस्व मण्डल ने तहसीलदार बिलासपुर को पार्वती बाई को जमीन दिए जाने का आदेश भी दिया। लेकिन अतिरिक्त तहसीलदार ने राजस्व मण्डल के फैसले में रमेश और रमेश का नाम जोड़कर फिर नया विवाद पैदा कर दिया।

                          राजस्व मण्डल के निर्णय के बाद पार्वती बाई और अन्य ने व्यापार विहार की खसरा नम्बर  833/1 और  833/3 की जमीन को ऋषभ एसोसिएट्स को बेच दिया। ऋषभ एसोसिएट्स ने नामान्तरण और सीमांकन के लिए तहसील कार्यालय में आवेदन किया। तात्कालीन अतिरिक्त तहसीलदार और पटवारी की जुगलबंदी ने एक बार फिर जमीन को विवादित बना दिया। तात्कालीन अतिरिक्त तहसीलदार ने ऋषभ एसोसिएट्स को बताया कि  रमेश और नरेश का भी संबधित जमीन पर मालिकाना हक है। इसलिए सीमांकन और नामांकन काम थोड़ा पेचीदा है। यद्यपि ऋषभ एसोसिएट्स ने कोर्ट का आदेश भी दिखाया लेकिन अतिरिक्त तहसीलदार ने मानने से इंकार कर दिया।

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अतिरिक्त तहसीलदार ने जोड़ा

                  तात्कालीन अतिरिक्त तहसीदार ने राजस्व मण्डल बोर्ड के आदेश के खिलाफ व्यापार विहार क्षेत्र के तात्कालीन पटवारी से जुगलबंदी कर फर्जी बी 1 और पंचसाला बनाकर कोर्ट के आदेश में रमेश और नरेश को जोड़ दिया। जमीन की लम्बी लड़ाई में राजस्व बोर्ड ने रमेश और नरेश की मालिकाना हक की दावेदारी को गलत बताया था। बावजूद इसके अतिरिक्त तहसीलदार ने रमेश और नरेश का नाम जोड़ा। बाद में मामले को दबाने का भी प्रयास किया गया। जानकारी के अनुसार जमीन में रमेश और नरेश को जोडने और हटाने की प्रक्रिया में जमकर खेल हुआ है।

नामांतरण का निगम ने किया था विरोध

                      हारी हुई जमीन पर रमेश और नरेश का नाम कैसे जुड़ा। कोई भी नहीं जानता…। शायद इसे ही कूट रचना कहते हैं। तात्कालीन अतिरिक्त तहसीलदार ने ऋषभ एसोसिएट्स को बताया कि कोर्ट के अनुसार जमीन के कुछ हिस्से पर रमेश और नरेश का भी हक है। उनके पास दस्तावेज भी है।  नामांतरण के पहले मामले की छानबीन होगी। क्योंकि निगम प्रशासन ने भी जमीन पर दावा ठोका है।यद्यपि बाद में निगम ने अपने दावे को वापस ले लिया।

                        निगम ने कदम क्यों पीछे खींचा फिलहाल इसकी जानकारी किसी को नहीं है। लेकिन रमेश और रमेश का दावा अब भी कायम है। कुल मिलाकर मामला अभी भी विवादों में है। कोर्ट के आदेश के बाद रमेश और नरेश का दावा कैसे बना लोगों को अभी तक समझ में नहीं आया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार दोनों नाम को हटाने के लिए ऋषभ एसोसिएट्स को लोगों ने मंत्र भी दिया। बावजूद इसके ऋषभ एसोसिएट्स को मिले तहसील के आदेश में आज भी रमेश और नरेश को जमीन में हकदार बताया गया है।

तहसीलदार ने किया अधिकार के बाहर काम

                  जानकारी के अनुसार ऋषभ एसोसिएट्स ने जब नामांतरण और सीमांकन के लिए आवेदन किया तात्कालीन अतिरिक्त तहसीलदार का क्षेत्र भी नहीं था। बावजूद इसके उन्होने नामांकन और सीमांकन का कार्य किया। जबकि यह अधिकार तात्कालीन तहसीलदार का था। लेकिन अतिरिक्त तहसीलदार ने बिना किसी पूर्व सूचना के अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर सीमांकन और नामांकन किया। जाहिर सी बात है कि दाल में कुछ काला था इसलिए अतिरिक्त तहसीलदार ने ऐसा किया। कोर्ट के आदेश में हारी पार्टी का भी नाम जोड़ दिया। मतलब कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाया गया। जाहिर सी बात है कि यह आवमानना है।

कलेक्टर ने कहा था कोर्ट ऑफ कंटेम्ट

              सीजीवाल ने तात्कालीन कलेक्टर के सामने मामले को रखा था। उन्होने कहा कि ऐसा करना संभव नहीं है। लेकिन किया गया है..इसकी जानकारी उनके पास है। यह सरासर कोर्ट का अवमानना है। राजस्व मण्डल के निर्णय में कलेक्टर भी दखल नहीं दे सकता है। कोई भी अधिकारी अपने क्षेत्र से बाह जाकर सीमांकन और नामान्तरण का काम विशेष अादेश के बिना नहीं कर सकता है। राजस्व मण्डल ने पार्वती को कब्जा दिया। पार्वती ने ऋषभ को बेचा। इसके बाद रमेश और नरेश का नाम कैसे जुड़ा जांच का विषय है। कोर्ट के आदेश के बाद रमेश और नरेश का नाम जुडना कोर्ट की सीधे सीधे अवमानना है।

मामला रीविजन में था

                            वर्तमान तहसीलदार देवी सिंह ने बताया कि मानना रीविजन में है…। इसलिए कुछ बोलना ठीक नहीं…। कोर्ट का अवमानना का सवाल नहीं है। तात्कालीन समय अतिरिक्त तहसीलदार रहते हुए आदेश के बाद क्षेत्र के बाहर काम किया। बिना आदेश के कार्रवाई संभव नहीं है। उस समय मैं अतिरिक्त तहसीलदार था।

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