संजय दीक्षित।बदलेंगे मंत्रियों के विभाग?शक्ति की उपासना के इस महीने में हो सकता है, कुछ मंत्रियों की शक्ति कम हो जाए। वह इसलिए कि सत्ता के गलियारों में यह चर्चा तेज है कि मुख्यमंत्री अपने मंत्रियों के विभागों का पुनर्गठन करने जा रहे हैं। चुनाव चूकि अगले बरस ही है, इसलिए किसी मंत्री को ड्रॉप करने की खबर नहीं है…चार-से-पांच मंत्रियों के विभाग इधर-से-उधर किए जाएंगे। प्रभावित होने वाले मंत्रियों में जिनके नाम प्रमुखता से चल रहे हैं, उनमें बृजमोहन अग्रवाल, प्रेमप्रकाश पाण्डेय, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, राजेश मूणत और भैयालाल राजवाड़े के नाम बताए जा रहे हैं। चर्चा अगर अंजाम तक पहुंची तो रमन सरकार की तीसरी पारी में विभागों का यह दूसरा फेरबदल होगा। पहली बार तब हुआ था, जब दयालदास बघेल, भैयालाल राजवाड़े और महेश गागड़ा मंत्री बने थे। तब दो-तीन मंत्रियों के विभाग बदले थे। अमर अग्रवाल से लेबर लेकर उन्हें उद्योग दिया गया था। भैयालाल को अमर का लेबर मिला था।
प्रभारी मंत्रियों के प्रभार
मंत्रियों के विभागों के पुनर्गठन के बाद मंत्रियों के प्रभार वाले जिलों में भी फेरबदल किया जाएगा। इसकी नोटशीट भी तैयार कर ली गई है। सीएम को सिर्फ चिड़िया बिठानी है। फिलहाल, दयालदास बघेल, भैयालाल राजवाड़े और महेश गागड़ा के पास अभी कोई जिला नहीं है। ये तीनों सेकेंड फेज में मंत्री बने थे। तीनों को सरकार ने जिला देना मुनासिब नहीं समझा। लेकिन, रायपुर विजिट में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने प्रभारी मंत्रियों को प्रभार वाले जिलों में रात बिताने कहा था इसके बाद नए मंत्रियों ने सीएम से गुहार लगाई थी। इसके बाद नोटशीट दौड़ी…..।
नए निजाम
एन बैजेंद्र कुमार के एनएमडीसी के चेयरमैन बनने के बाद प्रिंसिपल सिकरेट्री टू सीएम अमन सिंह अब सीएम सचिवालय के नए निजाम हो गए हैं। अब, निजाम बदला है तो कुछ नया तो होना ही था। विभिन्न विभागों की फाइलों की नए सिरे से जिम्मेदारी तय करने के साथ ही पहली दफा सचिवों को डिस्ट्रिक्ट का भी प्रभार दिया गया है। अमन सिंह के साथ ही सिकरेट्री सुबोध सिंह और स्पेशल सिकरेट्री मुकेश बंसल को जिले दिए गए हैं। कह सकते हैं, सीएम सचिवालय पर अब जिलों की मानिटरिंग करने का भी लोड होगा। इसका लाभ यह होगा कि जिलों के कई बड़े इश्यूज आपसी समन्वय की कमी के चलते लटक जाते हैं। अब, कलेक्टरों की यह सहूलियतें होंगी….प्रभारी सचिव लेवल के काम अगर किसी वजह से अटक रहे हैं तो वे सीएम सचिवालय के प्रभारी सचिवों से दरख्वास्त कर सकते हैं। ऐसे में, कलेक्टर सरकार के और नजदीक आएंगे।
प्राब्लम ही प्राब्लम
लगातार छुट्टियों पर रहने के कारण सरकार ने नाराज होकर आईएएस रितु सेन को लाइवलीहूड मिशन से हटा कर मंत्रालय में बिना विभाग का स्पेशल सिकरेट्री बना दिया था। लेकिन, रितु के फेमिली प्राब्लम की जानकारी मिलने पर सरकार का दिल पिघला और उन्हें कंफर्ट पोस्टिंग देते हुए अब दिल्ली में अपर रेसिडेंट कमिश्नर अपाइंट कर दिया है। रजत कुमार के हावर्ड जाने के बाद से यह पद खाली था। पता चला है, इस पोस्टिंग के बाद रितु अब छुट्टी से लौट रही हैं। उन्होंने 30 दिसंबर तक की छुट्टी ली थी। मगर सवाल तो उठते ही हैं…..हम नहीं…..ब्यूरोक्रेट्स ही पूछ रहे हैं….कलेक्टर रहते कोई प्राब्लम नहीं…..अंबिकापुर से हटते ही प्राब्लम ही प्राब्लम…..?
डीजीपी के तेवर
डीजीपी एएन उपध्याय सौम्य और शालीन पुलिस अफसर के रुप में जाने जाते हैं। किसी को डांटना-डपटना उनकी कुंडली में नहीं है। स्वभाव भी भोले बाबा टाईप। पुलिस महकमे के उनके निजाम बनने के बाद तो पुलिस मुख्यालय के अफसरों की निकल पड़ी थी। साब….आज मैं पीएचक्यू नहीं आ पाउंगा, सीएम हाउस जाना है। सर…आज मुझे फलां काम है। कौन, कब आ रहा है, कब जा रहा है, कोई सिस्टम नहीं। लेकिन, डीजीपी ने अब जरा सी भौंहें टेढ़ी की तो अफसरों की शामत आ गई है। डीजीपी अब एवरी वीक थर्सडे को रिव्यू मीटिंग कर रहे हैं। याने अब गुरूवार को पीएचक्यू पहुंचना अनिवार्य तो हुआ ही, पिछले हफ्ते उन्होंने क्या किया, यह भी बताना पड़ रहा है। जाहिर है, ऐसे में अफसरों को दिक्कत होगी ही।
कांग्रेस की टिकिट
छत्तीसगढ़ कांग्रेस में ढेर जोगिया होने के कारण विधानसभा टिकिट वितरण में पार्टी आलाकमान को भी पसीना आ जाता था। पिछले चुनाव का याद ही होगा, नामंकन जमा करने तक दिल्ली में बैठकों का दौर चलता रहा। लेकिन, अब पार्टी में वन मैन आर्मी है, इसलिए पीसीसी की कोशिश है….समय से पहिले अबकी टिकिट तय हो जाए। लिहाजा, सुटेबल कंडिडेट के लिए पार्टी सर्वे करा रही है। बिलासपुर के एक युवा नेता और एक युवा वकील को सर्वे का काम दिया गया है। दोनों युवा हैं तो जाहिर है, युवाओं को ज्यादा वेटेज मिलेगा। पता चला है, पार्टी इस बार सीनियर नेताओं की बेदर्दी के साथ टिकिट काटने जा रही है। अभनपुर में धनेद्र साहू की सीट पर एक युवा साहू चेहरे को आगे किया जा रहा है। पीसीसी इस लाइन पर काम कर रही है कि पुराने और उम्रदराज नेताओं के बल पर बीजेपी से निबटना संभव नहीं है। लिहाजा, यूथ और साफ-सुथरा चेहरों को लेकर मैदान में उतरा जाए। ऐसे में, कांग्रेस के आला नेताओं को अब मार्गदर्शक मंडल में शामिल होने के मेंटली प्रीपेयड रहना चाहिए।
बिलासपुर की अहमियत
आमतौर पर राज्यों में वहां की राजधानी राजनीति का केंद्र होता है। लेकिन, छत्तीसगढ़ में बिलासपुर राजनीतिक का केंद्र बिन्दु बनता जा रहा है। वह इसलिए, क्योंकि, तीनों पार्टियों के प्रमुख या तो वहां से बिलोंग करते हैं या फिर वहां से उनका गहरा ताल्लुकात है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बिलासपुर से हैं। छत्तीसगढ़ जनता पार्टी के सुप्रीमो अजीत जोगी का बिलासपुर गृह जिला है ही, उनकी पत्नी और बेटे का विधानसभा भी बिलासपुर में आता है। अब कांग्रेस। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के सर्वाधिक करीबी सिपहसालार भी बिलासपुर से हैं। यही नहीं, कांग्र्रेस का सबसे बड़ा नाम चरणदास महंत भी जांजगीर से ही हैं। और, टीएस सिंहदेव के सरगुजा का रास्ता भी बिलासपुर से होकर ही गुजरता है। बिलासपुर में पार्टी की एक टुकड़ी भी उनके टच में है।
महंत का कद?
मध्यप्रदेश के समय में चरणदास महंत कभी नेक्स्ट टू दिग्विजय सिंह थे। पुराने लोगों को याद होगा, महंत को खतरा मानते हुए दिग्गी ने गृह मंत्री से इस्तीफा दिलाकर 98 में जांजगीर से लोकसभा में भेज दिया था। राज्य बनने के बाद महंत दो बार पीसीसी चीफ रहे। केंद्र में राज्य मंत्री भी। जोगी के बाद प्रदेश भर में किसी कांग्रेस नेता के बाद सबसे अधिक फॉलोअर थे, तो महंत ही थे। लेकिन, अब गर्दिशों का ऐसा दौर कि पूछिए मत! उन्हें घेरने का कोई कोर कसर नहीं छोड़ा जा रहा। दिल्ली में जिला अध्यक्ष के लिए हुई मीटिंग में जांजगीर पर विवाद और बहस की खबर प्लांट कर दी गई। जबकि, जानकार बताते हैं, बहस जैसा कुछ हुआ ही नहीं। लेकिन, कार्यकर्ताओं में मैसेज तो चला ही गया…..दाउ को अपने जिले में, अदद एक आदमी के लिए जूझना पड़ रहा है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. अशोक अग्रवाल के सूचना आयुक्त ज्वाईन करने के बाद राजभवन की नई सिकरेट्री कोई महिला आईएएस होंगी?
2. किस आईपीएस ने एयरपोर्ट पर सीआईएसएफ जवान की न केवल ठुकाई कर दी, बल्कि वीडियो बनाने वाले को भी नहीं बख्शा?