रायपुर।भाजपा को किसान विरोधी पार्टी निरूपित करते हुये प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि भाजपा की सरकार 2022 में किसानों की आय दुगुनी करने का झूठा ख्वाब दिखा रही है जबकि सच्चाई यह है कि भाजपा की सरकारें किसान विरोधी और धान विरोधी है। 2013 में घोषणा पत्र में भाजपा ने छत्तीसगढ़ के किसानों से 5 साल तक 300 रू. बोनस, 2100 रू. समर्थन मूल्य और एक-एक दाना धान खरीदी का वादा किया था। इनमें एक भी वादा भाजपा ने पूरा नहीं किया।मोदी सरकार ने तीन वर्षो में धान के समर्थन मूल्य में मात्र 150 रू. की वृद्धि की है, जो कि स्पष्ट रूप से भाजपा के किसान विरोधी धान विरोधी रवैये को उजागर करती है। कांग्रेस की यूपीए सरकार ने धान का समर्थन मूल्य 10 वर्षो में 550 से 1310 किया। (सात सौ साठ रूपयें की वृद्धि)। जबकि पहले भाजपा सरकार ने धान का समर्थन मूल्य 5 वर्षो में 490 से 550 किया था। (मात्र साठ रूपयें की वृद्धि)।
इन आंकड़ों से भाजपा का झूठ उजागर हो जाता है। भाजपा का कथित किसान प्रेम छलावा और दिखावा मात्र है। 18 दिसंबर 2007 को छत्तीसगढ़ के प्रभारी धर्मेन्द्र प्रधान थे जो वर्तमान में भारत सरकार के केन्द्रीय मंत्री है, रमन सिंह जी के उपस्थिति में कार्यकर्ता सम्मेलन में कहा था कि चांवल की दलाली न खायें, यह समाचार पत्रों में भी आया था। रायगढ़ में भाजपा कार्यसमिति की बैठक में भी मुख्यमंत्री रमन सिंह को एक साल के लिये कमीशनखोरी बंद करने के लिये कहना पड़ा। इन्होने जो सीख दी थी अपने भाजपा की कार्यकर्ताओं की यदि वो मान लेते तो नान घोटाला नहीं हो पाता।
36000 करोड़ का नान घोटाला हुआ है उसके बारे में मुख्यमंत्री और खाद्य मंत्री ने कुछ नहीं किया। सारे बड़े लोगो पर आरोप है कि नान से उनको पैसा जाता था, डायरी में अनेक लोगों के नाम है लेकिन अब तक उस पर कोई कार्यवाही नहीं हो पायी। 12 सितंबर 2014 सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री डाॅ. रमन सिंह ने प्रधानमंत्री को पत्र प्रेषित किया था। 12 सिंतबर 2014 उस पत्र में मुख्यमंत्री जी लिखते है कि 2013 के विधानसभा के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की ओर से मतदाताओं को घोषणा पत्र के माध्यम से किये गये वायदो में 300 रू. प्रतिक्विंटल धान बोनस भुगतान प्रमुख है।
आश्चर्यजनक बात यह है कि इस पत्र में मुख्यमंत्री जी ने जो घोषणा पत्र में 2100 रू. धान की कीमत देने की बात कही थी उसका उल्लेख नहीं किया था, सिर्फ बोनस देने की बात की थी और उन्होने कहा था कि यहां से धान उत्पादन अधिक होता है और हम सेंट्रल पूल में अधिक से अधिक चावल जमा करेंगे जो बच जायेगा। भारत सरकार की तरफ से जो जवाब आया था उसमें कहा था कि आप अपने साधन संपन्नता के अनुसार क्रय करे, जितनी आवश्यकता है उतनी क्रय करे, सेंट्रल पूल की कोई बात नहीं है।
300 रू. प्रतिक्विंटल बोनस और 2100 रू. प्रतिक्विंटल धान की कीमत देने के बारे में क्यों बात नहीं की? आज 300 रू. प्रतिक्विंटल बोनस देना है तो किसानों का 5760 करोड़ रू. देना बाकी है, उसके बारे में रमन सिंह सरकार ने आज तक क्यों कुछ नहीं किया?