सीनियरिटी या प्रेशर?

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संजय दीक्षित। सरकार ने आखिरकार बोर्ड, आयोगों के चेयरमैनों को लाल बत्ती की हसरत पूरी कर दी। हसरत इसलिए, क्योंकि चेयरमैन बनने के बाद बाकी चीजें पूरी हो जा रही थीं। घर-द्वार की चिंता तो उन्हें पहले भी नहीं थी। इनमें से शायद ही कोई होगा, जिसके पास राजधानी में दो-एक मकान नहीं होंगे। 12 साल से सत्ताधारी पार्टी में हैं, तो जाहिर है, रुपए पैसे का भी कोई टेंशन नहीं होगा। शान में बस, लाल बत्ती की कमी थी। वो भी पूरी हो गई। इस एपीसोड में लोगों को सिर्फ एक बात खटक रही है, कैबिनेट और राज्य मंत्री के दर्जे के लिए मापदंड क्या था। सीनियरिटी या प्रेशर? युद्धवीर सिंह जुदेव और शिवरतन शर्मा को कैबिनेट मिनिस्टर का रैंक मिला है। मंत्री न बनाने पर इन दोनों के इलाके में सरकार के खिलाफ जमकर प्रदर्शन हुए थे।

 

राम-राम
दुर्ग, रायगढ़ और बिलासपुर जैसे जिलों को सफलतापूर्वक चलाकर राजधानी रायपुर आने वाले कलेक्ट्रेट के एक बड़े साब इन दिनों रायपुर के नाम पर राम-राम कर रहे हैं। शायद ही उनका कोई दिन गुजरता होगा, जब वे उपर वाले से शिकायत नहीं करते, भगवान तूने कहां फंसा दिया। उन्हें दिक्कत सरकार से नहीं है और ना ही कामकाज से। आजिज आ गए हैं तो राजधानी के आला नौकरशाहों के जमीनों के मामले से। मंत्रालय से लगभग हर दिन फोन, फलां लैंड का सीमांकन करा दो, फलां की नापी। फलां जमीन के सामने से रोड निकालना है। फलां एरिया का फलां पटवारी तुमसे मिलेगा। साब भी हैरान! कलेक्ट्रेट का इतना बड़ा अफसर होकर पटवारी को मैं नहंी जानता और मंत्रालय के साब लोग पटवारी को जानते हैं। ऐसे में, पटवारी भी रुआब झाड़ता है…..फलां साब ने भेजा है। दरअसल, मंत्रालय के कुछ आफिसर, अफसरी के साथ जमीन का पैरेलेल बिजनेस भी करते हैं। सस्ते में खरीदते हैं और महंगे में बेचते हैं। ये काम बिना कलेक्ट्रेट और पटवारी के संभव नहीं है। खैर, इसमें कोई गलत भी नहीं है। आखिर, सबसे बड़ा रुपैया। कुर्सी से हटने के बाद कोई काम नहीं आने वाला।

वाह सेनापतिजी!

लाइवलीहूड कालेज और एजुकेशन सिटी की सफलतापूर्वक लांचिंग के बाद दंतेवाड़ा के तत्कालीन सेनापति ओपी चैधरी ने बस्तर के आदिवासी बच्चों में खेल प्रतिभा तलाशने के लिए स्पोट्र्स कांप्लेक्स का ब्लू प्रिंट बनाया था। मकसद था धुर नक्सल प्रभावित इलाके के बच्चों को पढ़ाई के साथ खेल से जोड़ा जाए। ताकि, रांची जैसे नेशनल, इंटरनेशनल लेवल के प्लेयर बस्तर में भी तैयार हो सकें। इसके लिए एस्सार ने सीएसआर फंड से छह करोड़ 10 लाख रुपए सेंक्शन कर दिया था। प्रोजेक्ट का भूमिपूजन भी हो गया था। मगर ओपी के बाद आए दंतेवाड़ा के नए सेनापति ने एरोगेंसी की पराकाष्ठा कर दी। उन्होंने स्पोट्र्स कांप्लेक्स की योजना बदलकर पांच सितारा ट्रांजिट हास्टल बनवा डाला। और, सीएम को डार्क में रखकर इस हफ्ते उनसे लोर्कापण भी करवा लिया। जबकि, सुप्रीम कोर्ट का गाइडलाइन है कि सीएसआर के पैसे से सिर्फ आम आदमी से जुड़े काम ही होने चाहिए। जरा सोचिए, बस्तर में नेशनल लेवल का स्पोट्र्स कांप्लेक्स बनता….एकाध बड़े खिलाड़ी निकल जाते तो कितनी बड़ी बात होती। उस बस्तर में जहां, नक्सली हिंसा में 2 हजार से अधिक लोग जान गंवा चुके हैं। राज्य के लोगों का भी इससे सीना चैैड़ा होता। क्योंकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोे बस्तर विजिट में सरकार की अगर किसी स्कीम ने सर्वाधिक प्रभावित किया तो वह एजुकेशन सिटी ने। हो सकता था, अगले बार स्पोट्र्स कांप्लेक्स का नम्बर आता। मगर दंतेवाड़ा के सेनापति ने गुड़-गोबर कर दिया। ये वही सेनापति हैं, जो संवैधानिक संस्था राज्य निर्वाचन अधिकारी को ठेंगा दिखाते हुए पुरस्कार लेने के लिए दिल्ली चले गए थे। बिना सरकार से इजाजत लिए। इसके बाद भी बाल बांका नहीं हुआ। ऐसे सेनापतियों को बढ़ावा देने से सरकार को और क्या हासिल होगा? देश भर में बदनामी। हाईकोर्ट में पीआईएल लगने वाला है कि छत्तीसगढ़ में सीएसआर के पैसे का बेजा उपयोग हो रहा है।

दोस्त, दोस्त ना रहा

कांग्रेस के जय-बीरु के संबंध अब पहले जैसे नहीं रहे। कांग्रेस के लोग भी दबी जुबां से मान रहे हैं कि दोनों के रिश्तों में दरार आनी शुरू हो गई है। पहले गजब की ट्यूनिंग थी। आंदोलन हो या प्रदर्शन, दोनों साथ दिखते। दौरे भी साथ में होते। प्रेस कांफे्रेस भी साथ-साथ। दोनों एक साथ दिल्ली जाते थे और साथ ही आते। मगर अब दोनों अलग-अलग ही दिल्ली जा रहे हैं और अकेले ही लौट रहे हैं। याद नहीं आता कि पिछले एक महीने में दोनों ने साथ में कोई दौरा किया हो। एक बस्तर जा रहा है, तो दूसरा कोरिया। हाल में, कांग्रेस भवन में हुई एक प्रेस कांफे्रेंस मंे दोनों दिखे भी, मगर बाडी लैंग्वेज बता रहा था कि समथिंग इज रांग। कांग्रेस नेताओं की मानें तो राहुल गांधी के दौरे के बाद यह फर्क आया है। बताते हैं, राहुल के दौरे के रुट को लेकर दोनों में मतभेद उभरे और अब यह दरार का शक्ल ले लिया है। फिर, बीरु ने दिल्ली में अपनी फील्डिंग तेज कर दी है। जय को यह नागवार गुजर रहा है। सो, जय के लोग अब बीरु पर नजर रखने लगे हैं। याने दोस्त, दोस्त ना रहा……। नवरात्रि में सरकार और बीजेपी के लिए इससे गुड न्यूज और क्या हो सकता है।

या देवी….

नवरात्रि के प्रथम दिन ही सरकार ने दो महिला आईपीएस को जिले का कप्तान अपाइंट कर दिया। नेहा चंपावत को महासमुंद और नीतू कमल को मुंगेली। दोनों का यह दूसरा जिला है। नेहा धमतरी कर चुकी हैं और नीतू महासमुंद। फिलहाल, छत्तीसगढ़ के एक भी जिले में महिला कप्तान नहीं थीं। पारुल माथुर को सरकार ने हाल ही में एसपी बनाया है मगर रेलवे की। जबकि, छह जिलों में महिला कलेक्टर हैं। इनमें से तीन के काम तो आउटस्टैंडिंग है। अलबत्ता, एसपी के काम से सरकार खुश नहीं है। और ना ही डीजीपी। सूबे में अच्छे एसपी की गिनती करें तो तीन से चार पहुंचने में दिक्कत होगी। कहीं कोई जुआ खिला रहा है तो कहीं आरगेनाइज ढंग से वसूली। चोर, बदमाश से लेकर कबाड़ी तक एसपी साहबों की जय जयकार कर रहे हैं। ऐसे में, दो देवियों को कप्तान बनाने से सरकार ने सोचा होगा, इससे दोहरा लाभ होगा। नवरात में मां प्रसन्न होगी और दूसरा, महिला कप्तानों का भी ट्रायल हो जाएगा।

 

मंत्री से पंगा

रायपुर के तीन इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई के पीछे की जो बात निकल कर आ रही है, उसमें लब्बोलुआब यह है कि इंजीनियरों ने यंग्रीमैन मिनिस्टर से पंगा ले लिया। दरअसल, विभागीय मंत्री ने इंजीनियरों को अपने करीबी आदमी से डीपीआर याने डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनवाने के लिए कहा था। काम बड़ा छोटा था। मगर मंत्रीजी के आदमी को दो पैसा बच जाता। दो फीसदी के हिसाब से यही कोई दो करोड़। मगर इंजीनियरों ने गलती कर दी। तो इसके अंजाम तो भुगतने पड़ेंगे ना।

अपनी मां

नवरात्रि में मां का व्रत रखने से पहले एक बार अपनी मां से पूछ लेना, मां क्या हाल है…..मां कुछ चाहिए तो नहीं…..?

हफ्ते का व्हाट्सएप

शिष्टाचार कहता है कि किसी स्त्री से कभी उसकी उम्र नहीं पूछनी चाहिए और पुरुष से उसकी आय। शायद इसके पीछे खूबसूरत अंर्तदृष्टि छुपी है कि कोई भी स्त्री कभी अपने लिए नहीं जीती और कोई पुरुष कभी अपने लिए नहीं कमाता।

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