भविष्य के संकेत

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संजय दीक्षित। कांग्रेस के कद्दावर नेता अजीत जोगी साल में दो-एक पार्टी अवश्य देते हैं। मगर 8 अक्टूबर की शादी की सालगिरह की पार्टी कुछ अलग रही। इसलिए नहीं कि 40वीं सालगिरह थी। खास इसलिए कि पहली बार पूरी सरकार सार्वजनिक तौर पर उनके साथ खड़ी दिखी। उनके अपनी पार्टी के पीसीसी चीफ, लीडर अपोजिशन जैसे कई बड़े नेता पार्टी में भले ही नहीं दिखे। मगर सीएम डा0 रमन सिंह के साथ आधा दर्जन से अधिक उनके मिनिस्टरों ने जोगी की पार्टी में अपनी हाजिरी दर्ज कराई। सीएम तो आधा घंटा से अधिक रहे। मंच पर जोगी के साथ उनकी गुफ्तगूं भी चर्चा में रही। दोनों के बीच जब वार्तालाप हो रही थी, सुरक्षाकर्मियों को वहां से हटा लिया गया था। राजधानी में विरोधी दल के किसी नेता की पर्सनल पार्टी में पहली बार नौकरशाहों का जमावड़ा दिखा। चीफ सिकरेट्री, डीजीपी से लेकर खुफिया चीफ तक। आमतौर से पार्टियों से परहेज करने वाले डीजीपी एएन उपध्याय भी पूरे समय रहे। जाहिर है, सरकार की मौन स्वीकृति के बिना थोक की तादात में अफसर पार्टी में गए नहीं हांेगे। और जाते तो नजर चुराकर भागते। मगर पार्टी का नजारा कुछ और था। अफसरों ने स्टार्टर से लेकर सभी व्यंजनों का लुत्फ उठाया। सियासी प्रेक्षक रिश्तों की इस नुमाइश को 2018 के विधानसभा चुनाव से जोड़ कर देख रहे हैं। रिश्तों की गरमी अगर बरकरार रही तो जाहिर है, सूबे की सियासी स्थिति भी बरकरार रह सकती है।

             
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जश्न के पीछे

अजीत जोगी 2014 के महासमुंद लोकसभा चुनाव में भले ही जीतते-जीतते हार गए। मगर परिस्थितियां जिस तरह उनके फेवर में होती जा रही है, उनके सांसद बनने का मार्ग प्रशस्त हो जाए, तो हैरान मत होइयेगा। क्योंकि, 13 चंदुओं में से छह चंदुओ ने एक ही टाईम में पर्चा भरा है। बीजेपी के निर्वाचित चंदू भी। इन सभी का नामंकन और शपथ का टाईम एक है। जो कि निर्वाचन शून्य करने के लिए काफी है। जोगी ने इसके साक्ष्य हाईकोर्ट में जमा करा दिए हैं। किसी भी दिन इसका फैसला आ जाएगा। निर्वाचन के जानकारों का कहना है, साक्ष्य के आधार पर महासमुंद के चुनावी नतीजे निरस्त हो सकते हैं। इसमें एक तो दूसरे नम्बर के उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित किया जा सकता है या फिर से चुनाव होंगे। ऐसे में, जोगी खेमे को उत्साहित होना स्वाभाविक है।

कद का सम्मान

हाईप्रोफाइल आईएफएस आलोक कटियार के आगे सरकार आखिर झुक गई। उन्हें प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का सीईओ बना दिया। यही नहीं वे एमडी हैंडलुम बोर्ड भी रहेंगे। याने डबल पोस्टिंग। गवर्नमेंट ने पहले उन्हें एमडी हैंडलूम बोर्ड की पोस्टिंग दी थी। मगर आर्डर के महीने भर बाद भी उन्होंने ज्वाईन नहीं किया। तब जाकर सरकार को चूक का अहसास हुआ। फिर, उनके कद का सम्मान करते हुए पीएमजीएवाय की कुर्सी सौंप दी गई। पीएमजीएसवाय बोले तो मलाईदार विभाग। ऐसा विभाग, जिसमें ठेकेदारों की टाईम लिमिट बढ़ाने के नाम पर करोड़ों के वारे-न्यारे हो जाते हैं। कटियार सूबे के वरिष्ठतम सांसद के दामाद के बड़े भाई हैं। तभी तो सरकार ने फौरन अपनी गलती सुधार ली।

अपमान का बदला अपमान

आईएएस वर्सेज आईपीएस के पंगे में अब आईपीएस को कीमत चुकानी पड़ रही है। कमिश्नर स्पोटर्स की पोस्ट उनसे छीन ही गई। अशोक जुनेजा के बाद सरकार ने आईएफएस अनिल राय को वहां पोस्ट कर दिया। जबकि, स्पोटर्स पुराने मध्यप्रदेश के समय से ही आईपीएस के लिए रिजर्व रहा है। राज्य बनने के बाद सिर्फ एक बार एडिशनल कलेक्टर रैंक के जितेंद्र शुक्ला डायरेक्टर रहे। वो भी तत्कालीन खेल आयुक्त आरपी मंडल के स्पेशल डिमांड पर। वरना, छत्तीसगढ़ बनने पर राजीव श्रीवास्तव, अशोक जुनेजा, संजय पिल्ले, राजेश मिश्रा, जीपी सिंह, राजकुमार देवांगन, दोबारा फिर अशोक जुनेजा कमिश्नर स्पोट्र्स रहे। मगर सुनते हैं, इस बार आईएएस लाबी अड़ गई…..आईपीएस वाले बहुत जख्म दिए हैं…..नान, फिर भानुप्रतापपुर में रिश्वत लेते हुए ट्रेप….. देश भर में हमारे कैडर की फजीहत करा दी। छोड़ेंगे नही! सरकार ने समझाया….आईएएस में डायरेक्टर लेवल के अफसरों की फौज है, इनमें से किसी को अपाइंट कर देते हैं। इसके बाद भी आईएएस लाबी टस-से-मस नहीं हुई तो सरकार ने तथास्तु कह दिया। असल में, आईपीएस में ढंग का कोई प्लेयर बचा नहीं। पुलिस महकमे के असली नायक गिरधारी नायक को खलनायक बनाकर जेल भेज दिया गया है। मुकेश गुप्ता ऐतिहासिक पारी खेलकर अभी-अभी आउट हुए हैंैै। डीएम अवस्थी को सरकार ने पांच साल पहले आउट आफ फार्म करार देकर बाहर कर दिया। ऐसे में, मानकर चलिये आईपीएस को सिचुएशन ठीक होने तक सरेंडर होकर ही काम करना होगा।

जै-जै आसाराम

सूबे में स्कूल एजुकेशन के हालात को लेकर रोना मचा है। सभी आंसू बहा रहे हैं। नेता से लेकर अधिकारी तक। शुक्र है…..15 साल बाद ही सही, चिंता तो झलकी। वरना, अभी तक तो एजुकेशन में प्रयोग ही होते रहे हैं। आपको याद होगा, 2012 में तो साल में चार सिकरेट्री बदल गए थे। आरपी मंडल, एमके राउत, सुनिल कुमार और इसके बाद केआर पिस्दा। पिस्दा तब स्पेशल सिकरेट्री थे। उनके प्रभार में एक साल निकल गया। अब तो अफसरों ने भी मान लिया है कि कोई चमत्कार ही शिक्षा विभाग की नैया पार लगा सकता है। भले ही वो आसाराम का चमत्कार ही क्यों ना हो। तभी तो एजुकेशन के सारे अफसर जै-जै आसाराम कर रहे हैं। मंत्रालय के एक अफसर तो अपने ब्रीफकेस में आसाराम की फोटू रखना नही भूलते।

रिश्तों की तल्खी

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक लखीराम अग्रवाल स्कूल के विद्यार्थी रहे हैं। लखीराम ने ही उन्हें राजनीति में आगे बढ़ाया बल्कि, पहली बार टिकिट दिलाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। तभी, लखी पुत्र अमर के साथ धरम के 2007 तक रिश्ते बेहद मधुर रहे। एकदम सहोदर भाई सरीखा। मगर राजनीति ऐसी चीज है, जिसमें पोस्ट और पावर के आगे रिश्तों के मायने बदल जाते हैं। वक्त ने अमर और धरम के बीच ऐसी दरारें पैदा कर दी है कि अब पटने की कोई गुंजाइश भी नहीं दिख रही है। दोनों के कामन वेलविशर मानते हैं, कुछ अदृश्य शक्तियां भी दोनों के बीच की खाई को चैड़ी कर रही है। वे बिलासपुर के प्रशिक्षण शिविर की ओर इशारा करते हैं। उसमें अमर अग्रवाल के एक समर्थक भाषण दे रहे थे। घंटे भर सेे अधिक खींच देने पर धरम ने टोका, कोई भी कार्यकर्ता लंबा भाषण न दें। इस पर तमतमाते हुए अमर समर्थक ने बीच में भाषण रोक दिया। हालांकि, धरम का टोकना और अमर समर्थक का गुस्साना एक संयोग हो सकता है। मगर संदेश क्या गया, इसे आप समझ सकते हैं। ऐसे में, बेहतर रिश्ते की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस मंत्री को उनके एमडी ने फारचुनर गाड़ी गिफ्ट किया है?
2. किस एडिशनल चीफ सिकरेट्री का फोन टेप हो रहा है और क्यों?

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