‘सत्या ‘ के बहाने एक ‘ सत्य ‘ की सुखद अनुभूति…..

Chief Editor
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satya 2                                                        ( रुद्र अवस्थी )

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हमारे पत्रकार साथी सत्यप्रकाश पाण्डे ( सत्या ) तस्वीरों के शौकीन हैं। सोशल मीडिया में भी यह नाम काफी जाना- पहचाना और मकबूल है…। फोटोग्राफी में उनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम ही है। आम आदमी की जिंदगी से लेकर जंगल के कठिन जीवन तक सभी जगह उन्हे जो अपनी दोनों आंखों से दिखता है, उसे एक तीसरी आँख की गवाही में कैद कर लेना उनका शगल है….। ऐसा शगल जिसमें जिंदा-दिली और कुछ नया करने की ललक साफ दिखती है। ऐसा शगल ….. जिसे पूरा करने बड़ा दिल और जजबात के साथ जेब की भी दरकार होती है….। सब-कुछ दोनों हाथों से लुटाते हुए सत्या भाई फोटोग्राफी के शौकिनों को बहुत कुछ दे जाते हैं….वह भी रोज-के-रोज….।कभी रेलगाड़ी तो ….. कभी सड़क और कभी वनवासियों की जिंदगी की ओर ही इनका कैमरा झांकता रहता है और उनके कैमरे में कैद  तस्वीरें पूरी कहानी कह जाती हैं….।

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सत्या भाई की तस्वीरें अक्सर दिलों-दिमाग पर अपनी छाप छोड़ जातीं हैं…। इस बार दही-हांडी …कृष्ण कन्हैया के माहौल में उनकी खींची तस्वीर देखकर अहसास हुआ जैसे तस्वीर देखने वाला खुद इतनी ऊंचाई पर टंगी दही-हांडी तक पहुंच गया और हाडी के फूटते ही खुद भी दही से सराबोर हो गया…..। तस्वीर की यह खूबसूरती और खासियत कुछ वक्त ठहरकर उसे निहारने का न्यौता देते हुए दिखी….। यह तस्वीर पहली नजर में ही बयां कर रही है कि करोड़ों-अरबों खरचा करके जो आनंद नहीं खरीदा जा सकता , उस खुशी और आनंद का इजहार दही में सराबोर गोविंदा की देह-भाषा कर रही है….।ऐसे में तस्वीर देखकर मन में जो तरंगे उठीं….. वह तरीफ की शक्ल में की-बोर्ड के जरिए कम्प्यूटर के स्क्रिन पर सहज ही उभर आईं..।

एक बोलती हुई तस्वीर को देखकर जी भर के खुश हो लेना और जी भर के तारीफ कर लेना…. ही नहीं उस खुशी औऱ तरीफ का जी भर के मित्रों के बीच इजहार कर लेने का सुख मिल गया तो इसके लिए आज के दौर के मीडिया ( सोशल ) के प्रति आभर जताने का भी मन करता है……। करीब तीन दशक से पत्रकारिता की दुनिया में रहकर ( जिसे लोग थैंकलेस कहते हैं ) एक बात बात बड़ी अहम् लगती रही है कि भले ही प्रबंधन के बोझ तले दबते नजर आ रहे इस सिस्टम में बुराई को बुराई लिखने या कहने की आजादी मिले या न मिले । लेकिन समाज में जो अच्छा लगे उसे अच्छा लिखने – बोलने की आजादी तो मिले….।

भाई सत्या की  काबिल-ए-तारीफ और मन को खुश कर देने वाली इस उपलब्धि की खुलकर तारीफ करने का खुला – मंच  आज के दौर के सोशल –मीडिया में मिला ….। न किसी किसम की वर्जना और न कोई झिझक…..। न कारोबार की बात…..और  न  लेन-देन या दुकानदारी का सिलसिला……। इस तरह अपनी धुन में रहकर समाज को कुछ देते रहने का जोश हमारे आस-पास के कई लोगों में है….।जो समय-समय पर सोशल मीडिया पर आते रहे हैं और आगे भी आते रहेंगे…..।  इस लिहाज से मुझे सत्या की तस्वीर के बहाने उस सत्य से रू-ब-रू होने का मौका मिला ,जो सत्य  मीडिया  के इस नए दौर का सत्य है……। जिसमें बुराई को बुराई लिखने की भी आजादी है और अच्छाई को अच्छा कहने का जज्बा भी है…..। जो अच्छा लगे अगर उसकी खुलकर तारीफ न कर सकें तो सचमुच किसी अच्छाई को समाज में अपनी जगह बनाने ….. अपनी पहचान बनाने का मौका भला कैसे मिलेगा…..? इस नजरिए से आज के नए मीडिया का यह सत्य बेहतर कल की ओर एक इशारा भी है……… । सत्य है तो सत्या की तस्वीर की तरह अच्छा ही होगा…..  ।.

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