रायपुर । राज्य सरकार ने आम जनता से विभिन्न प्रकार के आयोजनों में प्लास्टर ऑफ पेरिस (पी.ओ.पी.) और बेक्ड मिट्टी की मूर्तियों और प्लास्टिक के फूलों तथा प्लास्टिक निर्मित सजावटी वस्तुओं का उपयोग नहीं करने की अपील की है। नदियों, तालाबों और अन्य जल स्रोतों को प्रदूषण से बचाने के लिए पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल द्वारा यहां जनता के नाम इस आशय की अपील जारी की गई है। इसमें सभी लोगों से राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की मार्ग-दर्शिका का उल्लेख किया गया है और कहा गया है कि आयोजनों के लिए कच्ची मिट्टी की मूर्तियों का ही निर्माण किया जाना चाहिए।
पर्यावरण विभाग के अपर मुख्य सचिव और छत्तीसगढ़ पर्यावरण मंडल संरक्षण के अध्यक्ष एन. बैजेन्द्र कुमार ने इस संबंध में परिपत्र भेजकर जरूरी दिशा-निर्देश दिए हैं। परिपत्र में नगरीय प्रशासन विभाग से कहा गया है मूर्तियों के निर्माण और विसर्जन के समय केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइड लाइन का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। संबंधित अधिकारियों से कहा गया है कि वे यह सुनिश्चित करें कि सभी मूर्तियों का निर्माण प्राकृतिक (कच्ची) मिट्टी से किया जाए और प्लास्टर ऑफ पेरिस तथा बेक्ड मिट्टी के इस्तेमाल को हतोत्साहित किया जाए। कच्ची मिट्टी की मूर्तियों में प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाए, ताकि विसर्जन के समय जल प्रदूषण की स्थिति निर्मित न हो। पूजा सामग्री जैसे फूल, वस्त्र, कागज, और प्लास्टिक से बनी सजावटी वस्तु आदि को मूर्ति विसर्जन के पहले अलग कर लिया जाए और उनका निपटान उचित तरीके से किया जाए। मूर्ति विसर्जन स्थल पर आम जनता की सुविधा के लिए पर्याप्त घेराबंदी और सुरक्षा व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाए। पहले से ही विसर्जन स्थल पर नीचे सिन्थेटिक लाइनर की व्यवस्था की जाए, ताकि मूर्ति विसर्जन के बाद उसके अवशेष बाहर निकाले जा सके। बांस और लकड़ी का दोबारा उपयोग करते हुए खाली जगह के भराव के लिए मिट्टी का उपयोग किया जाए।
परिपत्र में मूर्ति निर्माण और विसर्जन के संबंध में व्यापक रूप से जनजागरूकता अभियान चलाने के भी निर्देश दिए गए हैं। परिपत्र में यह भी कहा गया है कि मूर्ति विसर्जन नदी, तालाब, डबरी में किया जा रहा है, तो विसर्जन के लिए अस्थायी लाईनर का निर्माण करवाया जाए। नदी या तालाब में प्रदूषण की स्थिति नियंत्रित करने के लिए मूर्ति विसर्जन के पहले आवश्यक तैयारियां की जाए, ताकि नदी और तालाब को प्रदूषण से बचाया जा सके। मूर्ति विसर्जन स्थल में सभी तैयारियां समय से पहले कर ली जाए और इस बारे में व्यापक प्रचार-प्रसार के जरिये आम जनता और संबंधित समितियों को भी जानकारी दी जाए।