जंगल में लूटतंत्र (राजनीति 3)

cgwallmanager
5 Min Read

jngl

Join Our WhatsApp Group Join Now

झूठे आरोपों के जहरीले तीर से घायल राजा विचलित हो गया, वह गुफा के निकट अपने स्थान पर बैठकर दीर्घ श्वास के सहारे शांत होने का प्रयास करने लगा। कुछ देर बाद उसने मंत्री से कहा- जामवंत, हमने व्यवस्था का पूर्ण निरीक्षण कर लिया है, मुझे लगता है अब हमें नई व्यवस्था पर विचार करना चाहिए।

जामवंत ने हंसते हुए कहा- राजन्, वास्तविक निरीक्षण तो अब आरंभ हुआ है। जिस तरह सौरमंडल के केंद्र में सूर्य रहता है, ग्रह उसके चक्कर लगाते हैं। उसी तरह इस तंत्र के केंद्र में राजनीति रहती है, व्यवस्था इसके आसपास घूमती है, अतः इसका सूक्ष्म निरीक्षण आवश्यक है।

हे राजन्, राजनीति की शतरंज का खेल आरंभ हो चुका है, शह और मात के लिए चालें भी चली जाने लगी हैं, आगे और बहुत कुछ होने वाला है। आप शक्तिशाली व नीति निपुण हैं, आपके मंत्री, अधिकारी सजग व सक्रिय हैं, इसलिए आप राज्य की सुरक्षा के संबंध में निश्चिंत रहिए, साथ ही शांति से राजनैतिक गतिविधियों का अवलोकन कीजिए।

जामवंत की सलाह से राजा सिंह शांत हो गया। अगले दिन सुबह दरबार लगा, मंत्री जामवंत, उच्च अधिकारी शेर, चीते सहित अन्य दरबारी व सैनिक सेवा में उपस्थित हुए। सभी ने राजा का अभिवादन किया और एक ओर बैठ गए। दरबार में वार्तालाप आरंभ होने ही वाला था, इसी समय बाहर कोलाहल हुआ। एक सैनिक ने आकर कहा- राजन्, कुछ जनपद नेता व वन्यप्राणी आपसे भेंट करना चाहते हैं। राजा ने सभी को दरबार में उपस्थित करने का आदेश दिया।

कुछ पल बाद सभा में भाषण देने वाले सियार व उनके साथी गधे, गेंडे, भैंसे, सांड, लकड़बग्घे विनयी मुद्रा में आते दिखे। उन्हें दरबार में आते देख सिंह की आंखें लाल हो गईं। जामवंत की सलाह का स्मरण कर राजा ने क्रोध को रोकने का अथक प्रयास किया, परन्तु वह सफल नहीं हो सका, सियारों के सामने आते ही उसके अंदर उत्पात मचा रही दहाड़ स्वमेव बाहर आ गई।

राजा के दहाड़ते ही उच्च अधिकारी शेर, चीते व सैनिक तेंदुए हमले के लिए तैयार हो गए, वातावरण भयावह होते देख पीछे चल रहे गधे, गेंडे, सांड, भैंसे और लकड़बग्घे उल्टे पैर भागे, परन्तु सियार हिम्मत जुटाकर कांपते हुए खड़े रहे।

राजा का रुख देख चतुर सियार समझ गए कि उसे सभा की जानकारी मिल गई है, इसलिए तत्काल पैंतरा बदलकर उन्होंने उसकी स्तुति आरंभ कर दी। उन्होंने एकस्वर में कहा- हे धरती पर अवतरित साक्षात भगवान विष्णु आपकी जय हो, हे सिंहवाहिनी के प्रिय वाहन आपकी जय हो, जय हो…

हे राजन, आप ही वन्यप्राणियों के रक्षक हैं, आपके कुशल नेतृत्व, संगठन क्षमता, आपकी तपस्या से वन में विकास की गंगा बह रही है, यह शत्रुओं के आतंक से मुक्त है, आपकी जय हो, जय हो, जय जय हो…. कानों में बारंबार जय रूपी अमृत ध्वनि के प्रवेश से सिंह का क्रोध कुछ शांत हुआ, उसने सियारों से कहा- बताइए आप सभी यहां क्यों उपस्थित हुए हैं।

राजा की तीखी वाणी सुन चालाक सियार भांप गए कि वह अभी पूरी तरह शांत नहीं हुआ है, अतः कुछ कहना छोड़ वे पुनः जय जयकार करने लगे। झांसा देने के लिए वे तब तक जयकारा लगाते रहे, जब तक सिंह ने हंसना आरंभ नहीं किया। राजा को हंसते देख एक चतुर सियार ने कहा- हे वनपाल, हे सर्वप्रिय महान राजा आप ही हमारे पालक हैं। आपकी कृपा से ही हम सभी जीवित हैं। राजन्, आपने अपनी उदारता व प्रगतिशीलता का परिचय देते हुए जंगल में लूटतंत्र लागू कराया।

हे राजन्, उस व्यवस्था से नंदन वन तीव्रता से विकसित होने लगा, परन्तु व्यवस्था में पूर्ण परिवर्तन नहीं होने से समस्याएं भी सामने आने लगी हैं। जनपदों का समान विकास नहीं हो रहा है, वन्यप्राणियों की सेवा करने वालों को सेवा का सर्वोत्तम अवसर प्राप्त नहीं हो रहा है, धीरे धीरे उग्रवाद भी फैल रहा है। संपूर्ण लूटतंत्र लागू कराने के लिए शांतिप्रिय भालू विद्रोही हो गए हैं। मीडिया भी विरोध करने लगा है……

(आगे है राजा की खरी खरी, सियारों की बैठक)

close