जंगल में लूटतंत्र (बेरोजगारी)

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विकास का चमत्कार देख राजा और मंत्री गुफा की ओर जाने लगे। नगर के चौक चौराहों पर उन्हें उत्पात मचाते युवा वन्यप्राणी दिखे। जामवंत ने बताया राजन्, ये शिक्षित बेरोजगार हैं। इनके पास डिग्रियां हैं, नौकरी नहीं है, इसलिए ये उत्पात मचाते रहते हैं।

बेरोजगोरी पर चर्चा करते राजा और मंत्री ने गहन वन में प्रवेश किया। यहां एक पेड़ के नीचे युवा वानर योगासन में बैठे दिखा, वह उल्टी सीधी सांसें लेने का प्रयास कर रहा था। राजा और मंत्री उसके निकट चले गए। उन्हें देखकर वानर भयभीत हो गया।

राजा ने उससे पूछा- बालक तुम कौन हो और यहां क्या कर रहे हो। वानर ने डरते डरते कहा- मेरा नाम शक्ति वानर है, मैं यहां साधना कर रहा हूं। राजा ने हंसते हुए कहा- बालक तुम जो कर रहे हो, वह साधना नहीं पलायन है। तुम युवा हो, परिश्रम करते हुए परिवार का पालन पोषण करो, यही सबसे बड़ी साधना कही गई है।

राजा की बातें सुनकर वानर हंसने लगा, उसने कहा- अरे ग्रैंडपा, आप भी कैसी बातें कर रहे हैं। मैं जंगल में रहने के लिए नहीं, मनी एंड पावर गेन करने के लिए यह प्रैक्टिस कर रहा हूं। राजा ने पूछा यह क्या है ?

वानर ने कहा- ग्रैंडपा, मैं इंजीनियर हूं, मेरे पिता फार्मर हैं, वे फलों की खेती करते हैं। फार्मिंग में एडवांसनेस, मनी, पावर नहीं है, इसलिए मैंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, परन्तु मुझे कोई अच्छी जाब नहीं मिली।

तंग आकर मैंने अधिकारियों की कालोनी में बड़ी सी दुकान खोली। सोचा था उस इलाके में अच्छी कमाई होगी, परन्तु वहां मेरा भट्ठा बैठ गया। अफसरानियों ने आर्डर देकर सामान मंगा लिया, उनके पति देवताओं ने भुगतान नहीं किया। रुपए मांगने पर डरा धमकाकर पुलिस से पिटवा दिया, दुकान बंद हो गई, कर्ज सिर पर लदा रह गया।

निराश होकर मैंने एक नेता की शरण ली, उसने मेरी प्रतिभा का भरपूर दुरुपयोग किया। वह मुझसे भाषण लिखवाकर स्टेज पर गरजता रहा, मैं नीचे बैठकर अपना ही लिखा भाषण सुनकर तालियां बजाता रहा। वह छुटभैया मुझसे अपनी जय जयकार करवाकर, नारे लगवाकर, लाठी चलवाकर बड़ा नेता बन गया, मैं कार्यकर्ता ही रह गया। भविष्य अंधकारमय देख मैंने उस राह का भी त्याग कर दिया।

अब मैं आखिरी दांव खेल रहा हूं। आजकल बाबागीरी भी एडवांस हो गई है। बाबा जब स्पिरीचुअल लाइफ एंड मैनेजमेंट की हरी सब्जी को संस्कृत का नमक, हिंदी की मिर्च, योगा के मसाले, सैक्यूलेरिज्म का तेल डालकर अंग्रेजी की आग में पकाता है, उसे लैक्चर के रूप में परोसता है, तो आधुनिक मालदार मछलियां आसानी से जाल में फंस जाती हैं।

फिर चंदे और धंधे के चक्कर में नेता भी खिंचे चले आते हैं। इन दोनों के करीब आने से बाबा डबल रोल में आ जाता है, वह सामने लैक्चर देता है और पीछे डीलिंग कराने लगता है। इस तरह मनी और पावर उसकी मुट्ठी में आ जाते हैं…

कल्पना में खोए वानर ने कहा- अब इसी राह चलकर मुझे ऐश करना है, इसलिए आप दोनों मुझे आशीर्वाद देकर यहां से जाइए, मुझे बहुत प्रैक्टिस करनी है। सिंह ने कहा- बालक, सत्ता और संपत्ति की भूख ने तुम्हारी आंखों में पर्दा डाल दिया है, तुम अपने कर्त्तव्यों को भूल गए हो।

याद करो, जब तुम छोटे और लाचार थे, तब तुम्हारी माता ने तुम्हें हृदय से चिपकाकर रखा होगा, पिता ने न जाने कितने कष्ट झेलकर तुम्हें बड़ा किया होगा। अब जब उनकी रक्षा का समय आ रहा है तो तुम घर छोड़कर भाग रहे हो।

बालक, लालच छोड़ो, अपने घर जाओ। इंजीनियरिंग की डिग्री को फेंक दो, पिता के साथ काम करो, उनके फार्म को आधुनिक स्वरूप दो, परिवार की सेवा करो, यही वास्तविक सत्ता और संपत्ति है। सिंह की बातें सुनकर युवा वानर विचारमग्न हो गया, उसे घर की याद आने लगी, आंखों में आंसू आ गए…

वह कहने लगा- आपने मेरी आंखें खोल दीं, मैं कई दिनों से घर नहीं गया हूं, माता और बहिनी मेरी अनुपस्थिति में भोजन नहीं करतीं, वे आंसू बहाती होंगी। भूखे प्यासे पिता मुझे ढूंढते हुए दर दर की ठोकरें खा रहे होंगे… रोते हुए वानर ने सिंह व जामवंत को बारंबार प्रणाम किया और उछलते कूदते अपने घर की ओर चला गया….

( आगे है वन्यप्राणियों के नेता सियारों की सभा )

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