बिलासपुर— जब भी छात्र और छात्र संघ चुनाव की बात होती है तो जन सामान्य में भय का एक वातावरण देखने को मिला है। यह अलग बात है कि इस बार यह भय अब कुछ कम देखने को मिला है। ऐसा इसलिए कि लंबे समय बाद लोगों को अहसास हुआ कि छात्र संघ चुनाव राष्ट्रहित और समाजहित के लिए उतना ही जरूरी है जितना भारत जैसे विशाल लोकतंत्र को चलाने के लिए आम चुनाव का होना जरूरी है।
इस बात को समझने में सियासतदानों को ढाई दशक लग गए। छात्र संघ चुनाव पर कई बार प्रतिबंध लगे। नियमों में बदलाव हुए। हां और ना के बीच अंत में छात्रों की ही जीत हुई। लंबे विचार विमर्श के बाद लोगों ने महसूस किया कि छात्र संघ चुनाव नहीं होने से देश के नेतृत्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। पिछले तीन दशक से देश में आईएएस और आईपीएस बनने वालों की बाढ़ आ गयी। लेकिन नेतृत्व का मैदान युवा तुर्को से खाली हो गया। अंत में पुरोधाओं को स्किल डेवलपमेंट के नाम पर छात्र संघ चुनाव के लिए बाध्य होना ही पड़ा। इस बात को लेकर अलग-अलग मंच से अलग-अलग विचार आए। बावजूद इसके सबने स्वीकार किया कि देश और समाज के लिए छात्र संघ चुनाव बहुत जरूरी है।
25 अगस्त को छात्र संघ चुनाव परिणाम देर शाम तक सबके सामने आ जाएगा। महीने के अंत में इनमें से ही कोई एक छात्र विश्वविद्यालय का नेता भी चुन लिया जाएगा। पिछले पन्द्रह दिनों से सीजी वाल ने छात्र संघ से ताल्तुक रखने और नहीं रखने वालों नए पुराने छात्र नेताओं और बुद्धिजीवियों के बीच पाया कि छात्र संघ चुनाव नहीं होने से सामाजिक गतिविधियों में खालीपन ने जन्म ले लिया है।
छात्र संघ चुनाव में राजनेताओं की दखलंदाजी को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सभी लोगों ने अच्छा नहीं माना । कई पुराने छात्र नेताओं का मानना कि राजनेताओं की दखलंदाजी का होना बहुत जरूरी है। अन्यथा छात्र राजनीति की दिशा और दृष्टिकोण का सम्यक विकास नहीं हो पाएगा। कई नेताओं ने बताया कि सत्ता पक्ष को छात्र संघ चुनाव में हमेशा दखल रहा है। नतीजन वर्तमान छात्रहित को भूलकर अपने हित के होकर रह गए हैं। बावजूद इसके सभी ने स्वीकार किया है कि बेलगाम अफसरशाही पर अंकुश लगाने. छात्र संघ चुनाव का होना बहुत जरूरी है। भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त जेम्स लिंगदोह ने अपने रिपोर्ट में भी इस बात का जिक्र किया है।
पिछले पन्द्रह दिनों मे छात्र संघ चुनाव विश्वविद्यालय और महाविद्यालय के पुराने सभी छात्र नेताओं ने सीजी वाल से बताया कि वर्तमान छात्र नेताओं में समय के साथ काफी परिवर्तन आ चुका है। छात्रों नेताओं में अब समर्पण के भाव नहीं रहे। जबकि पहले के छात्र नेता अपने कालेज और विश्वविद्यालय के साथ समाज से जुड़े प्रत्येक सकारात्मक गतिविधियों का हिस्सा हुआ करते थे। बिलासपुर को रेल जोन का मिलना, न्यायाधानी का बनना, एनटीपीसी,एसईसीएल जैसे संस्थानों का बिलासपुर को हासिल होना छात्र आंदोलन का ही नतीजा है। यदि नए छात्रों ने थोड़ी ऊर्जा दिखाई होती तो आज आईआईएम, आईआईटी, विधि महाविद्यालय भी हमारे शहर में ही होता । कई छात्र नेताओं ने छात्र संघ चुनाव के राजनीतिकरण पर दुख जताया है।
पुराने छात्र नेता आशीष सिंह,अजय सिंह,मुंशीराम उपवेजा,रामशरण यादव,विजय केशरवानी, ध्रमेश शर्मा, राकेश शर्मा,स्वप्निल,शुक्ला, रविन्द्र सिंह का मानना है कि तमाम विसंगतियों के बावजूद छात्र संघ चुनाव छात्रों के व्यक्तित्व विकास के लिए बेहद जरूरी है। उनका मानना है कि इससे देश की लोकतांत्रिक प्रणाली को गति मिलेगी। छात्रों का नैतिक विकास होता है। सबको एक साथ लेकर चलने का हुनर हासिल होगा। कालेज की छोटी-छोटी जिम्मेदारियों के निर्वहन से उसे देश की बड़ी बड़ी जिम्मेदारियों और लोकतांत्रिक प्रणाली के मूल्यों का अहसास होगा।