जंगल मे लूटतंत्र (व्यापार 3)

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रेस्टोरेंट का भोजन अत्यधिक स्वादिष्ट तो था, परन्तु राजा को यह प्रतीत हुआ कि मसालों के बीच छिपा मांस निषिद्ध है। भोजन किनारे कर राजा ने कहा- हे जामवंत, वेटर ने हमें बताया है कि यह चीतल का स्वादिष्ट मांस है, किंतु मुझे लगता है कि यह मांस चीतल का नहीं शूकर का है। जामवंत ने कहा- राजन्, आप कच्चा मांस खाने के आदी हैं, यह अनेक खुशबूदार मसालों के साथ पकाया गया है, इसलिए आपको संदेह हो रहा होगा।

सिंह ने कहा- नहीं जामवंत, बचपन में एकबार मैंने खेल खेल में शूकर को मारकर खाना शुरू कर दिया था, अरुचिकर प्रतीत होने पर मैंने उसे छोड़ दिया था, इसका स्वाद भी वैसा ही है। शूकर के मांस की याद आते ही सिंह को मितली आने लगी।

उसने भोजन करना छोड़ जामवंत से कहा- तत्काल यहां से चलिए। रेस्टोरेंट से बाहर निकलकर वे चुपचाप चलने लगे। राह में तमाम कपड़ों, गहनों, खिलौनों की दुकानें दिखीं। एक थियेटर भी दिखा, जिसके बाहर लोमड़े-लोमड़ी की फिल्म देखने के लिए अनेक युवा वन्यप्राणी कतार लगाए खड़े थे।

अचानक सिंह की नजर एक खूबसूरत शेरनी की तस्वीर पर पड़ी। तस्वीर में वह अत्यंत आरामदेह कुर्सी पर आराम करती दिखाई दे रही थी। तस्वीर देखकर सिंह पुनः चकरा गया, वह जामवंत के साथ सामने दिख रही फर्नीचर की दुकान में चला गया। यहां भी एक भेड़िया व्यापारी बैठा था।

सिंह ने तस्वीर की ओर संकेत करते हुए आरामदेह चेयर दिखाने कहा। भेड़िया व्यापारी समझ गया कि यह तस्वीर देखकर आया है, तो कुर्सी लेकर ही जाएगा। वह व्यापारी सर्वप्रथम दोनों ग्राहकों को भगवान मानते हुए नतमस्तक हुआ, फिर उसने शेरनी की तस्वीर वाली चेयर की सैकड़ों प्रशंसा की, चेयर निकालवाकर उसकी धूल झड़वाई और सिंह को उस पर अनेक प्रकार से बैठाया।

उसने चेयर की कई विशेषताएं भी बताईं, कहा- अरे साहब, यह चेयर नहीं डाक्टर है। इस चेयर पर बैठने से कभी बैक पेन नहीं होता, नी पैन से पीड़ित मरीजों को भी बेहद आराम मिलता है।

तारीफों के पुल बांधने के बाद उसने बताया यह चेयर आफर में बेची जा रही है, इसे खरीदने पर 25 फीसदी छूट मिलेगी, एक शानदार गिफ्ट भी मिलेगा।

जामवंत को दाल में कुछ काला नजर आया, उन्होंने हस्तक्षेप करते हुए कहा- इतनी बड़ी चेयर लेकर हम कहां कहां घूमते फिरेंगे। मंत्री का रुख देख भेड़िए को लगा ग्राहक फिसल जाएगा, इसलिए उसने तपाक से कहा- अरे इस चेयर को फोल्ड कर कहीं भी ले जाया जा सकता है। भेड़िए ने आनन फानन में चेयर को फोल्ड कर छोटा सा गट्ठर बना दिया।

पसंद आने पर सिंह ने अंततः चेयर खरीद ही ली। वह मन ही मन उस चेयर पर आराम से आधा लेटने की कल्पना कर प्रसन्न होने लगा। बाजार से बाहर निकलकर राजा और मंत्री एक उद्यान में पहुंचे। यहां आराम करने के लिए सिंह ने बड़े चाव से चेयर खोला और उस पर आधा लेट गया।

एक घंटे तक वह चेयर पर लेटकर आराम करता रहा, फिर वह चेयर पर आधा लेटे लेटे हिलते डुलते हुए जामवंत से वार्तालाप करने लगा, एकाएक उसे ऐसा लगा कि चेयर नीचे की ओर झुक रही है, परन्तु उसने ध्यान नहीं दिया। अचानक चेयर चरमराकर टूट गई और भारी भरकम सिंह धड़ाम से नीचे गिर गया।

धराशायी राजा टूटी चेयर के बीच से निकलने का प्रयास करने लगा, परन्तु सफल नहीं हुआ। परेशान जामवंत उसे टूटी चेयर से बाहर निकालने की कोशिश करने लगे। बड़ी मुश्किल से राजा उठकर खड़ा हुआ।

उठकर उसने हंसते हुए कहा- जामवंत आपका कहना सही था, हम बार बार आंखों के रास्ते मन में उत्पन्न की गई लालसा से ठगे गए, फिर भी समझ नहीं सके, वास्तव में इस प्रचार तंत्र के जाल से बचना कठिन है….चलिए अब आगे चलते हैं…..

( आगे है नौकरशाही…)

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