बिलासपुर के साथ “जुड़ाव” ही था..जो टल नहीं सका अटल का दौरा..जनभावनाओँ का सम्मान और रेल्वे जोन की सौगात

Chief Editor
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(गिरिजेय) “रेलवे जोन बिलासपुर में बनाने की मांग मेरी मांग  है……. आप लोग परेशान क्यों होते हैं…. ?  नीतीश बिलासपुर रेलवे जोन जरूर बनाना है …… ” इस तरह के शब्द रहे हैं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के……।  जो उन्होंने रेल्वे  की मांग उनके सामने रखने वाले लोगों से  कहे थे ।  उन्होंने विपक्ष के नेता की हैसियत से जोन की मांग के साथ अपना जो ” जुड़ाव ”  बनाया उसे प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उसी शिद्दत से अपने साथ जोड़े रखा और सरकार के मुखिया की हैसियत से उसे निभाते हुए यह मांग पूरी भी कराई….।  यह अटल जी का अपनापन ही है था रेलवे जोन की नींव का पत्थर उनके ही हाथों से 20 सितंबर 1998 को बिलासपुर में रखा गया ।

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कई बार दौरा रद्द हो कर भी अटल का बिलासपुर आना टल  नहीं पाया और बरसों- बरस की उपेक्षा के खिलाफ हुए एक जन आंदोलन के 2 साल 8 माह 5 दिन बाद बिलासपुर शहर में जन भावनाओं की जीत का जश्न ऐसे नायक की मौजूदगी में मनाया गया जिसने इन भावनाओं को न  सिर्फ अपने साथ जोड़ा अलबत्ता उन भावनाओं के सम्मान का भी ख्याल रखा ….।

भारतीय रेलवे के नक्शे में सबसे अधिक मुनाफा देने वाले तब के बिलासपुर रेल डिवीजन को जोन का दर्जा मिला ।  इसे पाकर यहां का आम जनमानस गौरवान्वित हुआ  । इसलिए नहीं की उसे कुछ मिल रहा मिल गया  । बल्कि इसलिए कि बरसों की उपेक्षा के बाद हक की एक लंबी लड़ाई में बिलासपुर को जीत हासिल हुई थी ।  एक ऐसी जीत……  जिसमें कोई हारा नहीं सबके सब जीत गए …….। बिलासपुर शहर ने  20 सितंबर 1998 को महसूस किया था  कि  ऐसी जीत के बराबर और कोई परब  नहीं हो सकता   ।   क्योंकि लोग यह महसूस कर रहे थे कि यह पर्व यहीं खत्म नहीं होगा  । बल्कि यह सोच के साथ उपेक्षा के खिलाफ लड़ाई को लगातार जारी रखने का हौसला देता रहेगा कि जन  भावनाओं की हमेशा जीत होती है  । यहां यह बात भी काबिल- ए- गौर है कि रेल्वे जोन हासिल करने का श्रेय सिर्फ जन भावनाओं को है और अटल जी ने इस मांग  से अपनी भी भावनाएं जोड़ दी थी  …। इसलिए श्रेय उनकी भावनाओं को भी है ।  जन भावनाओं का सम्मान करने की वजह से वह भी सम्मानित हुए  और लोगों के दिलों में बस गए।

बिलासपुर में रेलवे जोन की मांग कई प्रधानमंत्रियों के सामने से गुजरी और उनकी तरफ से इतने आश्वासन मिले कि लोग  उसे भूलते भी गए …। लेकिन उस समय के प्रधानमंत्री  अटल जी को इस इलाके के लोग सिर्फ इसलिए याद नहीं करेंगे कि उनके कार्यकाल में बिलासपुर को रेलवे जोन मिला बल्कि यादगार को चिरस्थाई बनाने का प्रमुख कारण यही है कि अटल जी ने विपक्ष के नेता के रूप में जो मुद्दा उठाया था उसे प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचकर भी न केवल याद रखा बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचाया भी….।  राजनीतिक क्षेत्र में विश्वसनीयता के संकट के दौर में उन्होंने यह बात साबित कर दी की जन भावनाओं से जुड़े मुद्दे का रिश्ता सिर्फ चुनाव तक नहीं होता ….। इस रिश्ते को आखरी  मंजिल तक भी निभाया जा सकता है  । आमजन की इस मांग को अपनी मांग बनाकर उन्होंने एक नई मिसाल पेश की अटल जी इसलिए याद किए जाएंगे…..। अटलजी ने नेता प्रतिपक्ष के रूप में बिलासपुर रेल जोन की मांग लोकसभा में उठाई थी। जब प्रधानमंत्री बने तो अपने रेलमंत्री नीतीश कुमार से कहा था कि बिलासपुर रेल जोने की मांग मेरी मांग है… इसे पूरा करना है। उन्होने इसे मंजूरी दिलाई और रेल जोन का शिलान्यास करने 20 सितंबर को बिलासपुर आए थे। उस समय कुछ कारणों से अटलजी का बिलासपुर दौरा एक-दो बार टलता रहा । लेकिन बिलासपुर के साथ उनका जुड़ाव ही था कि उनका दौरा टल नहीं सका और शिलान्यास करने खुद बिलासपुर पहुंचे।  करीब दो दशक गुजर चुके हैं। लेकिन लोगों के जेहन में आज भी उसकी याद ताजा है।

बिलासपुर रेलवे जोन को हक की लड़ाई मानकर इसमें हर कोई शामिल था ।  यहां तक कि हर जगह अपने  “अपने झंडे ”   को ऊंचा करने की कोशिश में कोई कमी न रखने वाले सियासतदां ही इस मुद्दे पर एक रहे ।  कोई जनप्रतिनिधि इसमें पीछे नहीं रहा कभी न मतभेद सामने आया और ना कभी आगे निकलने की कोई कोशिश दिखी ।  इस पूरे इलाके में जहां रेलवे लाइन भी नहीं है और जो इससे बहुत अधिक रिश्ता नहीं रखते वहां के लोगों में भी हक की लड़ाई में हिस्सेदारी निभाई और इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर अपने से जो हो सका वह किया ।  बार –  बार मांग को सामने रखने के बाद भी जिम्मेदार लोगों ने आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं दिया और जब जोन  देने की बजाय उल्टे रेल डिवीजन के दो टुकड़े कर दिए गए तो उपेक्षा के दंश से मर्माहत आम लोगों ने आत्मदाह की तर्ज पर 15 जनवरी 1996 का ऐतिहासिक आंदोलन किया  । जो उपेक्षा के खिलाफ बेबस जनभावनाओं का प्रदर्शन था ।  लोग कई दिन कर्फ्यू के  साए में रहे…..।  पुलिस के डंडे खाएं….. जेलों में बंद रहे और पेशियों में हाजिरी देते रहे….।  शहर कई  – कई बार बंद रहा और कोयला खदान में भी लदान  रोका गया  । इतना सब कुछ होकर भी लोगों ने इस मशाल को जिंदा रखा और जब जोन मिल गया तो शाबाशी का हक भी सबसे पहले उन्हीं जन भावनाओं  को मिला जिसकी वजह से राजनीति से जुड़े लोगों ने भी इसमें संजीदगी दिखाई  । लोगों को इस बात की तकलीफ जरूर थी कि बिलासपुर में रेलवे का जोन  क्यों बनना चाहिए यह तथ्यों व आंकड़ों के साथ रेलवे व सरकार के जिम्मेदार लोगों को पहले से मालूम था और वह आम लोगों से भी ज्यादा अच्छी तरह से जानते थे कि खुद रेलवे की तरक्की के लिए भी बिलासपुर में रेलवे का जोन बनाया जाना कितना जरूरी है ।  मगर इतनी सी बात समझाने के लिए बिलासपुर के लोगों को क्या-क्या नहीं करना पड़ा इसमें इतना समय लग गया और कितना कुछ नुकसान भी हुआ ।  बहरहाल  एक जन जिहाद ने उपेक्षा पर तमाचा चुपचाप सहते रहने वाले इस इलाके को अहसास करा दिया कि भावनाएं सही हो और कोशिश ईमानदार हो तो उसकी जीत हमेशा होती है  । ऐसी भावना का सम्मान करने वाले जननायक अटल बिहारी बाजपेई की मौजूदगी में रेलवे जोन का शिलान्यास इस एहसास को हमेशा जिंदा रखने के संकल्प का दिन भी था…।

रेल जोन गाथा का किया था विमोचन

रेल्वे जोन के लिए बिलासपुर में लड़ी गई लम्बी लड़ाई के पूरे ब्यौरे के साथ छात्र युवा जोन संघर्ष समिति की ओर से प्रकाशित की गई स्मारिका ” रेलजेन गाथा ” का विमोचन अटलबिहारी बाजपेई के ही हाथों से हुआ था। इस मौके पर छात्र युवा जोन संघर्ष समिति के सुदीप श्रीवास्तव, महेश दुबे टाटा आदि मौजूद थे।

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