टिकट के बाजार में कांग्रेस का क्रेज…दावेदारों की लगी भीड़…कार्यालय में रोज लग रहा विश्वास का मेला

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर(सीजीवाल)।पिछले तीन दिन से शहर-शहर और गांव गांव में एक ही गूंज है कांग्रेस का टिकट बाजार। जिला और ब्लाक कार्यालयों में लोगो की भीड़ देखने को मिल रही है। हर आदमी चुनाव लड़ने की ख्वाहिश लेकर कार्यालय पहुंच रहा है। चुनाव लड़ने की दावेदारी कर रहा है। मजेदार बात है कि इसके पहले किसी ने कभी ऐसा नहीं देखा। क्योंकि इसके पहले टिकट का बाजार दिल्ली में लगा करता था। चांदनी चौक और रेड कोर्स में हर पांच साल में रसूखदार टिकट दावेदारों की भीड़ आसानी से दिखाई दे जाती थी।इस समय प्रदेश में खासकर कांग्रेस कार्यालय में टिकट का बाजार लगा है। आम और खास सभी लोग चुनाव लड़ने की दावेदारी करने पार्टी कार्यालय मेंं आसानी देखे जा सकते हैं। ऐसे भी चेहरे नजर आने लगे हैं। जो पिछले पांच साल से या तो गायब थे। या फिर कभी बैठकों में ही नजर आते थे। खासकर टिकट चाहने वाले नए दावेदारों को कांग्रेस का टिकट बाजार जमकर लुभा रहा है। लेकिन पुराने मठाधीशों को कुछ समझ नहीं आ रहा है। या फिर समझने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। लेकिन मुंह खोले बिना कभी चोरी से तो कभी सरेआम दावेदारी का आवेदन फार्म ले रहे हैं। हां यह कहते जरूर हैं कि प्रक्रिया ठीक नहीं है। लेकिन नए दावेदारों का मानना है कि पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र पसंद आया। साथ में कहने से चूक नहीं रहे हैं कि जोड़ तोड़ करने वालों को निश्चित रूप से यह प्रक्रिया रास नहीं आएगी। क्योंकि टिकट पाने के बाद उनका जनाधार हो या नहीं..लेकिन कार्यकर्ताओं के दम पर चुनाव की वैतरणी पार कर जाते हैं। लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा…। क्योंकि प्रक्रिया और मामला दोनो ही कांच की तरह साफ है।

             
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               बहरहाल कांग्रेस का टिकट बाजार चर्चा में है। विपक्ष भी बाजार पर नजर रखे हुए है। कार्यकर्ताओं में उत्साह देखने लायक है। दावेदारों की लाइन कुछ हनुमान के लंका दहन के समय बढ़ती पूंंछ की तरह लम्बी होती जा रही है। यह सच है कि कुछ लोग केवल उपस्थिति दिखाने के लिए आवेदन ले रहे हैं। लेकिन बंद कमरे में कार्यकर्ताओं के दम पर राजनीति करने वालों की धड़कने बढ़ गयी हैं। ऐसे लोग जो धनबल से कार्यकर्ताओं को पुचकार कर चुनावी वैतरणी पार करते थे। उनका चिंतित होना वाजिब भी है। क्योंकि अब कार्यकर्ता दावेदार हो गया है। यह जानकर कि दावेदारी करने वाले कार्यकर्ताओं या छोटे नेताओं का जनाधार बंद कमरे में बैठकर टिकट हासिल करने की मंसूबा पाल रखे स्वनामधन्य नेताओं से बहुत ज्यादा है। पीसीसी खासतौर पर भूपेश बघेल की चिंता जमीनी कार्यकर्ताओं को लेकर कुछ ज्यादा है। यही कारण है कि प्रक्रिया आने के बाद कांग्रेस कार्यालय में टिकट दावेदारों की संख्या दिनो दिन बढ़ती जा रही है। जिसके कारण बंद कमरे में तैयार नेताओं की चिंता बढ़ना वाजिब है।फिलहाल नए नियमों और ब्लाक कांग्रेस में….पीसीसी के फरमान को लेकर जबरदस्त उत्साह है। टिकट का बाजार दिल्ली से प्रदेश के जिलों और ब्लाकों में शिफ्ट होने से जनाधार वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं की बांछे खिल गयी है। कांग्रेस कार्यालयों में विश्वास का मेला लग गया है। लोग कसमें वादे ले रहे हैं कि टिकट मिले या नहीं लेकिन पार्टी के लिए दिल और जान लगाकर काम करेंगे। क्योंकि पार्टी ने उन्हें पहली बार टिकट दावेदारी के लायक तो समझा।

                 फिर भी बताना जरूरी है कि टिकट बाजार में कार्यकर्ताओं की होड़ से यह साबित हो गया है कि कांग्रेस के पास नेताओं की कमी नहीं है। आज भी टिकट बाजार में ना केवल कांग्रेस पार्टी की बल्कि टिकट का भी क्रेज है। क्योंकि मात्र तीन दिनों में 151 से अधिक लोगों ने अलग अलग सात विधानसभा के लिए दावा किया है। यदि संख्या हजार से अधिक पहुंंच जाए तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। प्रक्रिया के सामने आने के बाद तू-तू मै मैं का पर्याय बन चुकी पार्टी और कांग्रेसियों के प्रति जनता में धीरे-धीरे ही सही लेकिन क्रेज बढता जा रहा है।

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