शिक्षा विभाग में दो साल से नहीं हो रही ई-सर्विस बुक अपडेट..अध्यापक परेशान

Chief Editor
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भोपाल(सीजीवाल)।मध्य प्रदेश के  अंतर्गत शिक्षा विभाग के भिन्न-भिन्न संकुलों में ई-सर्विस बुक अपडेट की  स्थिति बहुत ही दयनीय  है।शासन-प्रशासन द्वारा बार-बार ई-सर्विस बुक  अपडेट करने हेतु निर्देश जारी किए जाते है ।  लेकिन दिशा निर्देशों के बावजूद और अध्यापकों के ई-सर्विस बुक में सुधार हेतु व्यक्तिगत रूचि लेकर सुधार हेतु रिक्वेस्ट (प्रार्थना) डालने के बावजूद ई-सर्विस बुक में सुधार नहीं हो पा रहा है। जिसके कारण प्रदेश का अध्यापक  लगभग 2 सालों से  परेशान हो रहा है।संकुल प्राचार्य से संपर्क करने पर कहा जाता है कि आपकी रिक्वेस्ट मान्य कर आगे प्रेषित कर दी गई है।तो फिर यह रहस्य समझ में नहीं आता कि ई-सर्विस बुक अभी तक अपडेट क्यों नहीं हुई?जब भी ई-सर्विस बुक अध्यापक खोलता है उसमे त्रुटियों का अंबार  दिखाई देता है।
अध्यापक संघर्ष समिति मध्यप्रदेश  के  प्रान्तीय कार्यकारी संयोजक रमेश पाटिल  ने यह जानकारी दे ते हुए बताया कि    ई सर्विस बुक  अपडेट करने की प्रक्रिया दरअसल तीन चरणों में संपन्न होती हैं ।  पहले चरण में अध्यापक अपने व्यक्तिगत पासवर्ड  का उपयोग कर वांछित सुधार हेतु ऑनलाइन संकुल प्राचार्य को ई-सर्विस बुक में सुधार हेतु प्रार्थना करता है।दूसरे चरण में संकुल प्राचार्य अध्यापकों की प्रार्थना को सप्रमाण स्वीकार कर अपने पासवर्ड से लॉग इन कर इसे रिजेक्ट  या अप्रूव कर   NIC भोपाल के लिए आगे प्रेषित कर देता है।तीसरे चरण में ई सर्विस बुक में संकुल प्राचार्य द्वारा प्रेषित अनुशंसा के आधार पर ई सर्विस बुक में सुधार करने का कार्य होना चाहिए और यह जिम्मेदारी NIC  भोपाल की है।लेकिन देखने में आया है कि विगत 2 वर्षों से ई-सर्विस बुक अपडेट का कार्य ठंडे बस्ते में हैं। जिसके कारण अध्यापक बार बार परेशान होता है।
उन्होने आगे कहा कि  ई-सर्विस बुक में विभिन्न आदेशों और प्रपत्रों को अपलोड किया जाना भी आवश्यक होता है।जैसे प्रथम नियुक्ति आदेश, संविलियन आदेश, पदोन्नति आदेश, सर्विस बुक का प्रथम पेज, जन्म तिथी प्रमाणित करने के लिए अंकसूची, नॉमिनेशन फॉर्म आदि लेकिन यह कार्य भी अपूर्ण है।यह कार्य  सर्वप्रथम संकुल प्राचार्य स्तर से होता है जब ई-सर्विस बुक बनाई जाती है।
लेकिन इसमें भी घोर लापरवाही नजर आती है।कुछ अध्यापको की ई-सर्विस बुक में आदेश और प्रपत्र अपलोड भी हुए हैं तो वह भी उल्टे-सीधे।किसी के आदेश किसी और के ई-सेवा पुस्तिका में अपलोड हो गए हैं।सवाल यह उठता है कि संकुल प्राचार्य के अधिकार क्षेत्र वाले इस कार्य में अध्यापको को बार-बार परेशान क्यों किया जाता है?यदि यह कार्यवाही संकुल प्राचार्य द्वारा अपूर्ण है तो  स्वयं अध्यापक भी  अपने पासवर्ड से विभिन्न आदेशों और प्रपत्रों को  अपलोड कर सकता है लेकिन कियोस्क सेन्टर इसका मनमर्जी से शुल्क वसुल करते है।
            ई-सर्विस बुक अपडेशन की सारी कार्यवाही होने पर ई-सर्विस बुक वेरिफ़ाई (प्रमाणित) होना अति आवश्यक है।इसे किसी संकुल प्राचार्य ने गंभीरता से लिया हो ऐसा लगता नहीं है।ई-सर्विस बुक अभी तक इतने वर्षो बाद भी वेरिफाई (प्रमाणित) नही हो पाई है।
रमेश पाटिल ने कहा कि संकुल प्राचार्यो द्वारा अपने विद्यालय मे कम्प्यूटर आपरेटर रखकर ई-सर्विस बुक को अपडेट करने की कार्यवाही सम्पन्न किया जाना चाहिए ताकि गोपनीयता भी बनी रहे  । लेकिन जिन संकुलो मे कम्प्युटर आपरेटर की व्यवस्था नही है वे इस कार्य को डीडीओ पासवर्ड देकर कियोस्क सेंटर को इस काम के लिए अधिकृत कर देते है।जो बहुत ही खतरनाक काम है गोपनीयता भंग होने और जानबूझकर कर प्रताडि़त करने का खतरा बना रहता है।इसका फायदा उठाकर कियोस्क सेन्टर वाले अध्यापको को छोटे-छोटे काम के लिए परेशान कर पैसा ऐठने का काम करते है।ऊपर से त्रृटि सुधार का काम भी नहीं हो पाता है।सुनने में तो यहां तक आता है की कियोस्क सेंटर को इसके बदले संकुल के अधिकृत व्यक्तियों को कमीशन भी देनी पड़ती है। स्वाभाविक है इसकी वसूली कियोस्क सेंटर वाले अध्यापकों से ही करेंगे।लेकिन सच क्या है पता नहीं?
शासन के आदेशों की बार-बार अवहेलना करने के लिए अधिकृत लापरवाह व्यक्तियों पर कार्यवाही होनी चाहिए अन्यथा ना जाने कब तक अध्यापकों को मानसिक रूप से और आर्थिक रुप से ई-सर्विस बुक अपडेट करने के नाम पर प्रताड़ित करने का यह सिलसिला चलता रहेगा।
उन्होने कहा कि   इस पूरे विवाद की जड़  NIC भोपाल है जिन्हे अंततः संकुल प्राचार्य की सिफारिश के आधार पर सुधार करना होता है।प्राचार्यो द्वारा अपने लॉगिन से अध्यापकों की रिक्वेस्ट अप्रूव कर NIC  भोपाल भेजने के बावजूद इस पर लगभग 2 वर्षों से कोई काम नहीं हो रहा है।ई-सर्विस बुक में सुधार नहीं होने से अध्यापको और संकुल प्राचार्य के मध्य अनावश्यक तनाव और वाद विवाद की स्थिति बनती हैं।जबकि पूरी गलती भोपाल सेन्टर की होती है।उच्च अधिकारियो द्वारा इस पर ध्यान न दिया जाना बताता है कि पूरा  शिक्षा  विभाग ही बेहोशी मे चल रहा है।
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