शिक्षा कर्मियों की तकनीकि-संवैधानिक समस्या क्या है…..? डॉ.केशकर बोले- दस्तावेज में झूठ प्रकाशित कर रही सरकार

Chief Editor
रायपुर । शिक्षा कर्मियों के संविलयन की मांग को लेकर हलचल मची हुई है। इस सिलसिले में सरकार ने मुख्यसचिव की अध्यक्षता में एक एक हाई पावर कमेटी का गठन किया है। कमेटी ने प्रदेश के सभी शिक्षा कर्मी संगठनों के पदाधिकारियों के साथ बातचीत के लिए 1 मई को बैठक बुलाई है। अब सवाल यह है कि असल में अड़चन कहां पर है। इस पर cgwall.com की ओर से अलग-अलग संगठनों के पदाधिकारियों की राय लेकर यह समझने की कोशिश शुरू की गई है कि आखिर अड़चन किस जगह पर है।इस सिलसिले में   शिक्षक पंचायत/नगरीय निकाय संघ छत्तीसगढ़  के प्रांताध्यक्ष डॉ. गिरिश केशकर ने कहा कि   सभी तकनीकी और संवैधानिक दिक्कतों के स्थाई समाधान होने तक सरकार प्रदेश के सभी शिक्षाकर्मियो को बिना किसी वर्ष बंधन के शासकीय शिक्षकों के समान वेतनमान, भत्ते, और सभी सुविधाएं प्रदान करे ताकि आर्थिक रूप से उनका शोषण बंद हो सके ।
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                  उन्होने आगे कहा कि    सन 1994-95 में अविभाजित मध्यप्रदेश में मानसेवी शिक्षाकर्मियो के रूप में शिक्षाकर्मी परंपरा की शुरुवात हुई। उस समय के कुछ जागरूक शिक्षक दिनेश कुमार और अन्य ने उस भर्ती को हाई कोर्ट के ग्वालियर खंड पीठ में चुनौती दी कि एक ही कार्य के लिये दो अलग अलग कैडर शासकीय शिक्षक और शिक्षाकर्मी क्यो …..?  जबकि दोनो को काम एक ही करना है और एक ही छत के नीचे करना है। शिक्षाकर्मी उस पिटिसन को जीत गए। तब तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार उसे  उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। कई सुनवाई के दौरान वहां भी उस पिटिसन की वही स्थिति होती जा रही थी। इस स्थिति को देखते हुए अपने वकीलों के सलाह पर सरकार ने  उच्चतम न्यायालय में एक हलफनामा प्रस्तुत किया कि उक्त दिनांक से शासकीय व्याख्याता, शिक्षक और सहायक शिक्षक के पद को मृत संवर्ग (डाइंग कैडर) घोषित करती है। भविष्य में इन पदों पर कभी भी सीधी भर्ती, अनुकंपा नियुक्ति और किसी प्रकार को विशेष भर्ती नहीं कि जाएगी और उन पदों के विरुद्ध एक नया कैडर शिक्षाकर्मी सृजित करती है ।  भविष्य में इन्ही पदों पर भर्तियां की जाएगी। तब  उच्चतम न्यायालय से इस शिक्षाकर्मी रूप में नए कैडर को मंजूरी मिल गयी। तब से आज तक शिक्षाकर्मी भर्ती बदस्तूर जारी है।
                        डॉ. केशकर कहते हैं कि    अब यहां सवाल यह उठता है कि जब शासकीय शिक्षक के पद  उच्चतम न्यायालय से डाइंग कैडर घोषित है तो 2008 में शासकीय सहायक शिक्षक का शिक्षक में और शिक्षक का व्याख्याता के पद पर भारी संख्या में पदोन्नति आखिर कैसे दी गई ?? जब वो पद मृत संवर्ग हैं तो उनके पदोन्नति के लिए इतने सारे पद आये कहाँ से ?? या मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार के अधिकारी  उच्चतम न्यायालय में दिए हलफनामा को धता बताते हुए शासकीय शिक्षकों की पदोन्नति करते जा रही है। अगर ऐसा है तो यह तो  उच्चतम न्यायालय की अवमानना की बात हुई। और यह भी सोंचने वाली बात है कि वित्त विभाग ने आखिर डाइंग कैडर होते हुए उन पदों को भारी संख्या में कब सृजित किया ??
उनका कहना है कि सन 1993/94 में भारत के पवित्र संविधान में 73वां/74वां संसोधन किया गया जिसके तहत शासन की कतिपय संपत्तियों को पंचायतों के अधीन किया गया था और अधिकारों का प्रत्यायोजन किया गया था। जिसके आदेश तत्कालीन मध्यप्रदेश शासन द्वारा सभी जिला कलेक्टरों को दिया गया था। जिसके तहत स्कूलें शाला भवन स्टाफ चल अचल संपत्ति सहित पंचायतों को हस्तांतरित किया गया। इस संबंध में अनेको आदेश जारी किये गए। उस हिसाब से शासकीय शिक्षक और स्कूल भी पंचायतों के अधीन हो गए। पर आज किस हिसाब से स्कूल शिक्षा विभाग संचालित है ?? क्या यह नियम विरुद्ध और संविधान के खिलाफ नहीं है ?? जिम्मेदार अधिकारी इतने सालों से क्या अनजाने में ये सब संचालित कर रहे हैं या ये सब जानबूझ के हो रहा है। आज सरकार बताये की पंचायत विभाग के कितने स्कूल है प्रदेश में ?? और  राज्यपाल  के नाम से उनके आदेशानुसार राजपत्र में प्रकाशित तमाम भर्ती अधिनियम में शिक्षाकर्मियो कई परिभाषा ये क्यो बदस्तूर लिखते आ रहे हैं कि – “शिक्षाकर्मी से अभिप्रेत यथा स्थित जनपद और जिला पंचायतों के नियंत्रणाधीन स्कूल में पढ़ाने के लिए नियुक्त व्यक्ति।” आखिर राजपत्र जैसे शासकीय दस्तावेज में ये झूठ प्रकाशित करने की क्या मजबूरी हो गयी ?? ऐसा क्यो नहीं लिख पा रहे कि शिक्षा विभाग के नियंत्रणाधीन स्कूल में पढ़ाने के लिए नियुक्त व्यक्ति।
                   डॉ. गिरीश केशकर ने कहा कि  22 साल से जब जब शिक्षाकर्मियो ने संविलयन की मांग किया तब तब अधिकारी सभी बैठकों में इसमें तकनीकी और संवैधानिक दिक्कतों का हवाला देते हुए इसमें असमर्थता जाहिर किये। आखिर सरकार के अधिकारी खुल के क्यो नहीं बताते की उनके हिसाब से क्या क्या अड़चने हैं इसमें ?? प्रदेश की जनता और प्रदेश के शिक्षाकर्मियो को खुलकर बताया जाना चाहिए ये बात।
                      खैर 22 साल से शिक्षाकर्मी शासन द्वारा की इन्ही सब गड़बड़झाला को आज भुगत रही है। यदि सरकार और सरकार के अधिकारी वास्तव  में शिक्षाकर्मियो के लिये और उनके परिवारों के लिए अच्छा सोंचती है तो तत्काल सारी तकनीकी और संवैधानिक अड़चनों के दूर होते तक प्रदेश के हर शिक्षाकर्मी के लिए बिना वर्ष बंधन के शासकीय शिक्षकों के समान वेतनमान, सभी भत्ते, सभी सुविधाएं और सेवाशर्ते लागू करे ताकि शिक्षाकर्मियो का आर्थिक मानसिक शोषण पर विराम लग सके। और शिक्षा व्यवस्था की धुरी रूपी शिक्षाकर्मी प्रदेश को शिक्षा ले क्षेत्र में देश विदेश के सर्वोत्तम स्थान तक पहुँचा सकें पूरे मनोबल के साथ।
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