एक साल बाद फिर अर्थ की चिंता…चिंता करने वालों ने जताई चिंता…दृढ़ता के साथ लिया अर्थ बचाने का संकल्प

BHASKAR MISHRA
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मध्यप्रदेश–(साहित्यकार शाद अहमद शाद) 22 अप्रैल को जागरूक देशवासियों ने बड़े ही अर्थपूर्ण ढंग से अर्थ यानि पृथ्वी दिवस मनाया। अर्थ दिवस पर देश के सभी जाने–माने धुरंधर लेखकों और पर्यावरणविदों ने पिछले वर्ष के लेखों में आंकड़ों का कुछ फेर-बदल कर लेख का प्रकाशन किया। पढ़कर हम सभी को जानने का एक बार फिर मौका मिला कि हम कितना खतरे में हैं। फिर हम सभी ने चाय ठेलो, खोमचों से लेकर शहर के प्रमुख चौक चौराहों पर सामुहिक रूप से पृथ्वी के अस्तित्व को लेकर पिछली बार से अधिक चिंता जाहिर की । सभी ने एक दूसरे को जागरूक करने की महत्वपूर्ण निर्णय लिया।

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                         22 अप्रैल 2018 को वृक्ष बचाने से अधिक हम सभी ने बृक्षारोपण का दृढता के साथ संकल्प लिया। जगह जगह बृक्षारोपण अभियान  निर्धारित समय के साथ किया गया। इस दौरान कुछ अपेक्षित दिक्कतें भी आयी। क्योंकि बृक्षारोपण कार्यक्रम में मुश्किलें आती ही हैं। किसी बृक्ष को एक स्थान से उखाड़कर किसी अन्य स्थान पर रोपना। निश्चित रूप से बड़ा काम होता है। समझ सकते हैं कि “पूरा देश किस कठिनाई से गुजरा होगा। हांलाकि एक दिन पहले कुछ कम समझदार “पौधारोपण” करते हुए देखे गए। ये वो लोग हैं जो अभी तक इस गम्भीर मामले को न तो पूरी तरह समझ सकें न ही इस विषय पर प्रॉपर सम्वेदिकृत ही हुए हैं। अल्पबुद्धि के अनुसार कभी किसी साथी के जन्मदिवस पर पौधा गिफ्ट करते हैं तो कभी किसी विद्यालय परिसर में पौधारोपण के छोटे-मोटे प्रयास करते रहते हैं।

                     अब इन कम अक्लों को कौन समझाये कि “पौधा छोटा नाज़ुक होता है –रोपने के बाद देखभाल की जरूरत होती है। इधर नज़र हटी – उधर बकरी चट कर गयी। उन्हें अब कैसे समझाएं कि बकरी के भोजन बनने जैसी चुनौतियों से जूझना बड़ा काम है। यद्यपि हमने सभी नालायकों के मुंह पर भी ताला जड़ दिया । जो गाहे बगाहे ज्ञान देते हैं की “अगर हम अपने आचरण ठीक कर लें तो ऐसे किसी दिवस को मनाने की नौबत ही नहीं आएगी। इन बेवकूफ़ों को मालूम नहीं “हम उत्सवप्रिय देश के जागरूक निवासी हैं । पर्व और दिवस मनाना हमारी गौरवशाली परम्परा का हिस्सा है।

                        इन कद्दुओं को कौन समझाये कि “हमारे मुकाबले का कोई दूसरा जीव इस ब्रह्माण्ड में है ही नहीं। पहले हम सेहत से समझौता कर सारा समय धन कमाने में लगाते हैं। फिर अथक मेहनत के कमाये और संचित धन का उपयोग अपनी ख़राब हो चुकी सेहत को ठीक करने में लगाते हैं। हांलाकि इस तथ्य का अर्थ (पृथ्वी) दिवस सेलिब्रेशन से कुछ लेना-देना नहीं है।

                     पृथ्वी दिवस पर सुबह मेरी दिन की शुरुआत गम्भीर झटके से हुई। सुबह की ताज़ी हवा फेफड़ों में ढकेलने के लिए जैसे ही घर से बाहर कदम रखा – बेटे ने चेतावनी दी कि “पापा..रुक जाइये..आगे कदम मत बढाइये । सुनकर  मैं हक्का-बक्का रह गया । समझ में नहीं आया  कि“ऐसी कौन सी विपत्ति आ गयी। अंगद की तरह एक पैर मज़बूती से धरती में जमाये और दूसरा कदम हवा उठाये इसके पहले बेटे को प्रश्नवाचक नज़रों से देखा। बेटे ने सरकारी नक़्शे में देखकर बताया कि “आप जहाँ गलती से पैर रखने जा रहे थे – वहां सरकार ने कुछ वर्षों पूर्व आल रेडी एक बृक्षरोपण किया है। मैंने चश्मे को ऊपर नीचे कर बहुत ध्यान से धरती के उस टुकड़े को देखा लेकिन पौधे का कोई अंश नहीं दिखा दिया।

                         मगर बेटा है कि मानने को राज़ी नहीं। कहता है कि “सरकारी रिकार्ड में यहाँ पौधा लगा है – आपको भी मानना होगा । वैसे उसकी बात तो ठीक मालूम पड़ती है। पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने धरती की चिंता में अरबों खर्च कर्च किए हैं। करोड़ों पौधे लगाये हैं तो सरकारी आंकड़ों को मानने के सिवा मेरे जैसे इंसान के पास रास्ता भी नहीं है। ये अलग बात है कि उन पौधों की हरियाली धरती की गोद में न दिखकर अफ़सरों के बैंक अकाउंट और जीवन में दिख रही है। जिनकी ज़िम्मेदारी धरती को हरा करने की थी।

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