(गिरिजेय)यह बात पहले भी कई बार कही जा चुकी है कि 2018 में होने वाला विधानसभा चुनाव सोशल मीडिया के जरिए लड़ा जाएगा । इसकी झलक अभी से मिलने लगी है.जिस तरह छत्तीसगढ़ मैं प्रदेश स्तर की राजनीति और लोकल लेबल पर विधानसभा स्तर की राजनीति में दोनों तीनों – पार्टियों के बीच जिस तरह का सोशल मीडिया वार चल रहा है उससे तो लगता है कि सचमुच 2018 के चुनाव का सीन 2013 के मुकाबले बिल्कुल अलग होगा ..। इस बार अभी से जो चीज दिखने में आ रही है। वह इस बात की ओर इशारा है कि चुनाव में मुकाबला दिलचस्प भी होगा और खुला भी होगा ….। खुला मुकाबला कहने का मतलब है कि इस बार सरकार के खिलाफ कांग्रेस और जोगी कांग्रेस दो ताकतें हैं । दोनों अपने – अपने तरीके से सरकार को घेरने में लगी हैं।अब तक छत्तीसगढ़ में हुए चुनाव में मुकाबले की स्थिति भले ही दिलचस्प नजर आती रही हो । लेकिन विरोध को लेकर मजबूती कम ही दिखाई देती रही है ।लेकिन इस बार अभी से कुछ ऐसा नजर आ रहा है कि पिछले करीब डेढ़ दशक से सूबे में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विरोध के स्वर कुछ अधिक बुलंद होते नजर आ रहे हैं ।
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इसके लिए विरोधी पार्टियों को सोशल मीडिया के रूप में एक अच्छा जरिया मिल गया है । जो तेजी से इंफॉर्मेशन भी पहुंचाता है और लोगों का उससे अब करीब 24 घंटे का जुड़ाव सा बनता जा रहा है । प्रदेश के स्तर पर एक तरफ कांग्रेस के नेता बयानों और मुर्दों के जरिए सरकार को घेरने की कोशिश में है । वहीं दूसरी तरफ जोगी कांग्रेस ने भी मोर्चा संभाल रखा है । जो आरटीआई या दूसरे माध्यमों से हाथ आ रहे दस्तावेजों के जरिए सरकार के खिलाफ घोटालों का खुलासा कर रहे हैं । चुनाव से पहले जिस तरह का माहौल बनता जा रहा है , उससे उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले समय में यह सरगर्मी न सिर्फ बढ़ेगी बल्कि एक-दूसरे के खिलाफ सोशल मीडिया पर हमले और भी तेज होंगे ।
2013 के चुनावी जंग को इस बार बदला हुआ मानने के पीछे की बड़ी वजह अभी से दिखाई देने लगी है….। जो बातें….. जो मुद्दे और बयान बाजी का जो अंदाज पहले ठीक चुनाव के समय नजर आता था , इस बार कई महीने पहले ही शुरू हो चुका है । जैसे बसंत पंचमी से ही होली की शुरुआत हो गई हो। दिलचस्प बात यह है की चुनाव मैदान में उतरने वाले और उतरने की तैयारी कर रही तमाम ताकतें पूरी तैयारी के साथ लड़ाई के इस पूर्वाभ्यास में भी अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं । पहले के दौर में जहां परंपरागत मीडिया के जरिए एक दायरे के भीतर की ही बातें लोगों के बीच पहुंचती थी । उसमें इस बार सोशल मीडिया की हिस्सेदारी से बड़ा फर्क अभी से दिखाई देने लगा है । जब प्रदेश स्तर से लेकर शहर स्तर तक अभी से खुलकर आरोप बाजी चल रही है । कहीं बातें संकेतो में है…. कहीं इशारों में है.. तो कहीं नामजद और खुल्लम-खुल्ला तरीके से कमेंट किए जा रहे हैं। शॉर्ट मेमोरी की खासियत वाली अपनी परंपरा में अभी से चल रहे मीडिया वार का चुनाव आते तक कितना असर रह पाएगा …यह कह पाना तो कठिन है। लेकिन यह आसानी से समझा जा सकता है कि चुनाव आते आते इसकी धार और भी तेज होगी…।