किसी भी थाने में दर्ज नहीं पद्मश्री के खिलाफ आरोप…फिर भी बना दिया आरोपी..फोरम ने माना आवेदक ने की कूटरचना

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—92 साल की उम्र में पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी को ऐसा दिन देखना पड़ेगा शायद उन्हें भी इसकी संभावना नहीं रही होगी। फिर भी होनी को कौन टाल सकता है। पद्मश्री मिलने के बाद उनके खिलाफ धोखाधड़ी और घोटाला को लेकर जमकर लिखा पढ़ा गया। लिखने के पहले यदि अरूण कुमार कश्यप के आरोप दस्तावेजों को सही तरीके खंगाला जाता तो …तो पढ़ने को जरूर मिलता कि अरूण कुमार कश्यप ने कबूल किया है कि प्रशासकीय समिति के किसी भी सदस्य के खिलाफ कोतवाली थाना में आरोप दर्ज नहीं है। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है…कर्मवीर पद्मश्री श्यामलाल चतुर्र्वेदी के खिलाफ आरोप लगना था…लगा। हो सकता है कि यह सोची समझी साजिश हो….।

                     पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता की शुरूआत वटबृक्ष के छांव से हुई। राष्ट्रीय कवि और स्वतंत्रता सेनानी कर्मवीर के संपादक माखनलाल जी के साए में उन्होने पत्रकारिता का हुनर सीखा।  जाहिर सी बात है कि श्यामलाल चतुर्वेदी को त्याग तपस्या,समर्पण की ताकत कर्मवीर के दौरान ही मिली। आज भी राष्ट्रीय कवि दद्दा की नसीहत बिलासपुर और छत्तीसगढ़ के दद्दा पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी में कायम है। इसी ताकत के दम पर बिलासपुर के दद्दा ने आरोपों का डटकर सामना भी किया।

अारोप लगाने वाले ने  लिखा मामला दर्ज नहीं

                   कोर्ट को दिए आरोप पत्र में अरूण कश्यप ने क्लाज 12 में लिखा है कि प्रशासकीय समिति के अध्यक्ष और सचिव के खिलाफ  बिलासपुर के किसी थाना में मामला दर्ज नहीं है। बावजूद इसके जमकर प्रचार प्रसार हुआ कि पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी पर घोटाले का आरोप है..मामला थाने में भी दर्ज है। समझने वाली बात है कि जब अरूण कुमार कश्यप स्वीकार करता है कि थाने में मामला दर्ज नहीं है।  फिर भी घोटाले की झूठी कहानी जमकर चली ।

                   मजेदार बात है कि अरूण कश्यप खुद कहता है कि उसने प्रशासकीय समिति के  अध्यक्ष और सचिव के खाते में रूपए जमा किये थे। फिर पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी का नाम घोटाले में उछाला जाना कितना तर्क संगत है। अरूण कुमार के आरोप पत्र में गवाही डी.एस.शास्त्री समेत  दो अन्य लोगों के भी नाम है। जबकि इन सभी को महाविद्यालय प्रबंधन ने वित्तीय अनियमितिता के आरोप में पहले ही बर्खास्त कर चुका है।

फोरम में हार…नाम नहीं होने के बाद भी श्यामलाल चतुर्वेदी पर निशाना…?

                       माखनलाल चतुर्र्वेदी के कर्मवीर को जमीन विवाद को लेकर उपभोक्ता फोरम में भी घसीटा गया। बर्खास्त हेड क्लर्क डी.एस.शास्त्री ने फोरम को बताया कि प्रशासकीय समिति के अध्यक्ष और सचिव के संयुक्त खाते में 2400 वर्गफिट जमीन के लिए 48000 रूपए जमा किये। शास्त्री ने फोरम के सामने बयान दिया कि रूपए जमा करने वालों में 60 अन्य कर्मचारी भी शामिल हैं। शास्त्री ने फोरंम को यह भी बताया कि समिति के अध्यक्ष और सचिव ने महाविद्यालय स्टाफ के कुल 60 सदस्यों में से  अरूण कश्यप के अलावा उसे भी जमीन नहीं देना मुनासिब नहीं समझा।

                              आरोप लगने के बाद फोरम के सामने प्रशासकीय समिति के अध्यक्ष और सचिव ने भी अपनी बातों को रखा। प्रशासकीय  समिति के पदाधिकारी ने बताया कि शास्त्री ने ना तो रूपए जमा  किए और ना ही आवेदन किया। ऐसी सूरत में जमीन  मिलने का सवाल ही नहीं है। शास्त्री डीपी विप्र महाविद्यालय में हेड़ क्लर्क थे…उनके पास संस्था का सील और लेटर हेड था। उन्होने इसका दुरूपयोग किया। कूट रचना कर रसीद बनाया और संस्था का सील लगाकर जमीन का दावा किया है। जबकि जमीन बांटने का काम गृनिर्माण समिति को है। उनके खिलाफ लगाए गए  सभी आरोप बेबुनियाद है। सुनवाई के बाद फोरम ने भी माना कि डी.एस.शास्त्री कूट रचित दस्तावेज के सहारे जमीन चाहते हैं। इसलिए प्रशासकीय समिति  पर लगाए गए आरोपों को निरस्त किया जाता है।

बैठक में लिया भाग…लाटरी से नाराज

                           पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी पर आरोप लगाने वाला अरूण कुमार कश्यप एक तरफ कहता है कि गृहनिर्माण समिति ने जमीन नहीं दिया। दूसरी तरफ प्राशासकीय समिति पर आरोप लगाया हैं कि चेयरमैन और सचिव के खाते में 2400 वर्गफिट के लिए 30 हजार रूपए जमा किए।  सीजी वाल को हासिल दस्तावेज के अनुसार जमीन आवंटन के समय  अरूण कश्यप गृनिर्माण समिति की बैठक में तो शामिल होता है.. लेकिन लाटरी सिस्टम की गतिविधियों से दूर रहता है।  इससे जाहिर होता है कि अरूण कश्यप के मंसूबे ठीक नहीं थे। यदि उसने  प्रशासकीय समिति अध्यक्ष  को रूपए दिए थे तो जमीन आवंटन की लाटरी सिस्टम में भाग लेना था।

                               सबको मालूम है कि लाटरी निकालने के बाद  रजिस्ट्री से पहले जमीन की कीमत देना जरूरी होता है। इससे जाहिर है कि अरूण कुमार कश्यप को जमीन मिल ही नहीं रही थी…या फिर वह रूपए देना ही नहीं चाहता था। मतलब साफ है कि अरूण कश्यप के मंसूबे ठीक नहीं थे। बाद में इन्ही मंसूबों के कंधे का इस्तेमाल किया  गया। अधूरा ही सही….लेकिन कंधा इस्तेमाल करने वाले की कुंठा…थोड़ी बहुत शांत हो ही गयी।

                       बताना जरूरी है कि जमीन का आवंटन गृहनिर्माण समिति को करना था। प्रशासकीय समिति को नहीं। बावजूद इसके अरूण ने कहीं नही कहा है कि पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी आरोपी हैं। लेकिन बिना सोचे समझे पद्मश्री पर निशाना साधा गया। इससे जाहिर होता है कि कुछ लोग पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी को हर हालत में फंसाना चाहते थे। चाहे वह फिर किसी भी समिति में ही क्यों ना होते। बहरहाल आरोप लगने के बाद पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी के 75 साल की पत्रकारिता जीवन को चुनौती मिली है। लेकिन यह भी सच है कि राष्ट्रीय कवि दद्दा माखनलाल चतुर्वेदी  का कर्मवीर शिष्य अंधेरे को काटकर बाहर निकलना जानता है।

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