साहब…जी, पहले बिलासपुर की रोड तो ठीक कर लेते…. फिर ट्रेफिक ठीक करिएगा….

Chief Editor
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traffic maharana 1(गिरिजेय़)    “ साहब …. जी पहले बिलासपुर शहर की रोड तो ठीक कर लेते…. फिर यहां की  ट्रेफिक को ठीक करिएगा….”। यह बात शहर का कोई भी आम आदमी कहता….. अगर वह शहर मे ट्रेफिक सिस्टम के मौजूदा हालात पर कुछ कहता…. कह सकता ….। या ऐसा बोल सकते हैं कि कोई खुलकर भले ही ना बोले … लेकिन शहर की सड़कों से गुजरने वाला अपने मन में तो जरूर ही ऐसा कहता होगा। शहर में सड़कों की बदहाली और ट्रेफिक सिस्टम की बेतरतीबी पिछले काफी समय से समानांतर चलते हुए लोगों को तकलीफ दे रही है। प्रयोग पर प्रयोग हो रहे हैं। लेकिन सड़क पर चलने वालों की तकलीफ बनी हुई है। जिसे देखकर लगता है कि व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों में से किसी के पास  भी समस्या की जड़ तक पहुंचने का समय नहीं है और व्यवस्था में सुधार के नाम पर आम आदमी के सामने ही बेरीकेट की ( मुसीबत की ) दीवार खड़ी कर दी जाती है । जिस पर किसी तरह से खुद को निकाल लेने भर से शहर के लोग शुकून महसूस कर लेते हैं….. और बिना उफ किए शहर के भीतर का सफर लगातार जारी है।

मिसाल के तौर पर बिलासपुर की एक-दो सड़कों पर हो रहे प्रयोग पर नजर डाल सकते हैं। पिछले काफी समय से महाराणा प्रताप चौक का ट्रेफिक सिस्टम एक बड़ी समस्या है। जिसे व्वस्थित करने के लिए अब ऐसा प्रयोग किया जा रहा है कि गौरव पथ से व्यापार विहार की ओर जाने वालों को अपनी नाक की सीध में दिखाई देने वाले सीधे रास्ते की बजाय बाईं ओर मुड़कर पहले राजीव गाँधी चौक तक जाना पड़ता है। फिर लौटकर उसी माहाराणा प्रताप चौक पर आकर ट्रेफिक में फँसना पड़ता है और फिर बाएँ मुड़कर व्यापार विहार का रास्ता पकड़ना पड़ता है।यही स्थिति व्यापार विहार से गौरव पथ की ओर जाने वाले लोगों की भी है। चौक पर आने के बाद वे भी इसे पारकर  सीधे अपने सामने की सड़क पर नहीं आ सकते…. उन्हे भी अपनी बाईँ ओर मुड़कर ओव्हर ब्रिज के किनारे की खस्ताहाल सड़क  पर चलकर आगे ब्रिज के नीचे से गुजरना पड़ता है। जहां पर हवा में बिखरे गर्द – गुबार और धूल के बीच सड़क खोजे से भी नहीं मिलती। किसी तरह चौराहे पर पहुंचो तो फिर गौरव पथ पर कदम पड़ते हैं। अगर वहां पर मुंगेली – कोटा रोड की एक – दो बसें खड़ी मिल गईं तब तो फिर रुकना पड़ सकता है।

वैसे भी शहर में नाम के लिए बनाए गए गौरव पथ की वजह से आस-पास रहने वालों और वहां से गुजरने वालों ने काफी दिक्कतों का सामना किया है। एक तो यह सड़क रिकार्ड समय में बनती रही। फिर कभी कहीं से भी धसक जाती। ले- दे- कर सड़क बनी भी तो बीच में लम्बी दीवार खींच दी गई। किलोमीटर के हिसाब से लम्बी इस सड़क पर महाराणा प्रताप चौक से मंगला चौक के बीच महज तीन जगह रोड पार करने के लिए रास्ता छोड़ा गया है। नतीजतन रिहाइशी इलाके के लोगों को मजबूरन “ राँग साइड “ चलना पड़ता है। जिसे अक्सर देखा जा सकता है। अब तो नियम का पालन करने वालों की मुसीबत और लम्बी हो गई है। स्वर्ण जयंती नगर वाले चौराहे पर खड़े होकर अगर पारिजात कैसल के निवासी को अपने घर जाना हो तो उसे नियम से पहले महाराणा प्रताप चौक की तरफ सीधे जाना पड़ेगा…। वहां से बाएं मुड़कर राजीव गाँधी चौक और फिर वापस महाराणा प्रताप पहुंचकर ब्रिज के नीचे से घूमकर वापस महाराणा प्रताप चौक और फिर  गौरव पथ से होते हुए अपने घर जाना पड़ेगा…। जो रास्ता सिर्फ दो-तीन मिनट में तय हो सकता है। उसके लिए पन्द्रह से बीस मिनट का समय देना पड़ेगा। और पेट्रोल भी जलाना पड़ेगा।यदि इस बीच सड़क –चौराहे पर भीड़ रही तब तो समय और पेट्रोल का पैमाना बढ़ सकता है। गौरव पथ में रहने वाले एक शख्स ने बताया कि इस सिस्टम के चलते सड़क उस पार के पड़ोसी अब पड़ोसी नहीं रह गए ।पड़ोसी से मिलने जाओ तो लगता है , जैसे दूसरे गाँव जा रहे हैं।traffic maharana 2

बेशक माहाराणा प्रताप पर ट्रेफिक काफी अधिक है और दिन में हर समय वहां पर जाम की स्थिति रहती है। इसे ठीक करने के लिए चौक पर ट्रेफिक का दबाव कम करना जरूरी है। लेकिन सिस्टम कुछ इस तरह बनाने की जरूरत है , जिससे लोगों को परेशानी न हो। भले ही अधिक दूरी तय करनी पड़े । लेकिन सड़क तो ठीक हो। जिससे जाम से बचने के लिए लोग उस पर चलने को उत्साहित हो। अभी की व्यवस्था में तो लोग इसके लिए जिम्मेदार लोगों को कोसते हुए मजबूरी में खामोशी के साथ गुजर रहे हैं। लेकिन मन में कई सवाल तो उभरते हैं –क्या पहले सड़क ठीक करने के बाद इस तरह का सिस्टम लागू नहीं किया जा सकता…? क्या पूरी जिम्मेदारी सड़क पर चलने वालों की ही है…..? वैसे भी शहर के लोगों को “ सिविक सेंस – ट्रेफिक सेंस “ को मामले में कम नंबर ही मिलते हैं। लेकिन कोई व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों से तो यह पूछ ही सकता है कि जब सड़क ही नहीं है तो फिर शहर के लोगों को चलने का सलीका कहां से आएगा….? एक तरफ किसी चौराहे के बीचो-बीच रात भर में गहरा गड्ढा खोद देते हैं और इधर लाल-पीली-हरी बत्ती भी अपने – अपने टाइम पर जलती रहती है….. सड़क पर चलने वाला आखिर किधर को देखे….. अपने पांव के नीचे की जमीन पर नजर डाले या खंबे पर जल रही बत्ती को देखे…? उसके सामने तो बस यही विकल्प बचता है कि किसी तरह जहां से भी जगह दिखाई दे रही है, उस पर चुपचाप-खामोशी से अपनी मँजिल की ओर चल निकले……। यह बुदबुदाते हुए—   “ साहब …. जी पहले बिलासपुर शहर की रोड तो ठीक कर लेते…. फिर यहां की  ट्रेफिक को ठीक करिएगा….”।

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