भागवत कथा से हृदय निर्मल हो जाता है..प्रभु निवास करने लगते हैं…नारायणाचार्य

BHASKAR MISHRA
3 Min Read

IMG-20170831-WA0028बिलासपुर— भाIMG-20170831-WA0028गवत कथा स्रवण तभी सार्थक..जब खुद में लोग सकारात्मक परिवर्तन महसूस करें…कथा हृदयगम्य होते ही मनुष्य संत समान हो जाता है। नैतिकता में शुद्धता ही कथा का परिणाम है। यह बातें खाटू श्याम जी मंदिर में वेदव्यास पीठ से कथा वाचन के दौरान बृंदावनधाम से पधारे स्वामी नारायणााचार्य जी ने कही। व्यासपीठ से स्वामी जी ने कृष्णा सुदामा चरित्र पर कथा वाचन करते हुए कहा…भगवान दरिद्रों के सेवक होते हैं…भगवान ने कहा भी है मै अपने कमजोर बच्चों के साथ रहता हूं। मुझे पाने का सबसे सुगम रास्ता कमजोरों की सेवा में है।

             
Join Whatsapp Groupयहाँ क्लिक करे

                         खाटू श्याम जी मंदिर में आज कृष्णा सुदामा चरित्र को स्वामी नारायणाचार्य के श्रीमुख से सुनने लोगों की भीड़ देखने को मिली। उन्होने कहा भागवत कथा कलुषित मन को संत बना देता है।कथा तभी सार्थक है जब लोग उसके मर्म को समझे। जिसने भागवत कथा के मर्म को समझा और आत्मसात किया…उसे ईश्वर से साक्षात्कार करने से कोई रोक नहीं सकता है। स्वामी जी ने कहा…गरीबों,कमजोरों की सेवा में ही ईश्वर की सेवा और पूजा है। लोग ईश्वर को पाने इधर उधर भटकते हैं…लेकिन ईश्वर तो हमारे चारो तरफ है।

                                      स्वामी जी ने कहा जो अवगुणों में गुण तलाश ले वही संत है। क्योंकि संत को अच्छी तरह से मालूम है कि जो कुछ भी हो रहा है उसमें हरि की कृपा है। संत नवनीत के समान होता है। इस दौरान उन्होने संत तुकाराम और उनकी पत्नी के बीच होने वाले संवाद को सबके सामने रखा।

                      स्वामी जी ने कहा दरिद्रता का अर्थ केवल मलीन कपड़े और गंदगी से ही नहीं है। मलीनता का अर्थ आचरण और नैतिकता से भी है। जिसने अपना आचरण और उच्च नैतिकता को बनाकर रखा वहीं संत होता है। उन्होने उदाहरण के रूप में भारत के कई महान संतो का जिक्र किया।

                               नारायणाचार्य ने कहा कृष्ण और सुदामा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सुदामा में कृष्ण का वास था। सुदामा और कृष्ण एक दूसरे के पूरक थे। उन्होने कहा सुदामा जब कृष्ण से मिलने द्वारिका गए तो उनकी पोटली में पत्नी ने चार मुठी चावल द्वारिकाधीश के लिए भेजा। दरअसल पोटली में चार मुठी चावल नहीं बल्कि सुशीला ने चार पुरूषार्थ को भेजा था। सुदामा गरीब थे लेकिन चरित्रवान थे। उन्हे लोकपरम्पराओं की जानकारी थी। द्वारिकाधीश ने उनका स्वागत दिल खोलकर किया। संत सुदामा को बिना मांगे सब कुछ मिल गया…जैसी उनकी पत्नी चाहती थी। स्वामी जी ने कहा भगवान सबका ध्यान रखते हैं। उन्हें निर्मल मन से तो यदा किया जाए।

                इस दौरान भागवत कथा को सुनने भारी संख्या में लोग मौजूद थे। लोग ने कृष्ण लीला के साथ उनके विवाह की कथा का रसपान किया। 24 गुरूओं की कथा का भी आनंद लिया। भागवत कथा के अंतिम दिन पूर्णाहुति भी दी गयी।

close