बिलासपुर।समाज में साहित्य को यदि परखना है और आज के परिवेश में पुराने साहित्यकारों से तुलना करनी है तो आपको आज के समय में घुसना पड़ेगा, उसे समझना पड़ेगा और उसका विश्लेषण करना पड़ेगा। सही मायनों में तभी आप कवि, साहित्यकार, व्यंग्यकार या किसी भी विधा में परिपूर्णता हासिल कर सकते हैं।यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर चौबे का। गुरुवार को उद्योग भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्हें वर्ष 2017 का पाठ साहित्य सम्मान प्रदान किया गया। प्यारेलाल गुप्त की 127वीं जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में उन पर आधारित पाठ के विशेष अंक का विमोचन भी किया गया। इस मौके पर मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार नथमल शर्मा ने कहा कि प्यारेलाल गुप्त स्मृति सम्मान समारोह में श्री चौबे को सम्मानित करना खुद को गौरवान्वित महसूस करना है।
उन्होंने कहा कि श्री चौबे उस परंपरा के व्यक्ति हैं, जिनका अनुसरण कर आज की पीढ़ी मूल्यों के आसपास पहुंच सकती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे नंद कश्यप ने कहा कि देश को एक सुनियोजित तरीके से पीछे धकेला जा रहा है। हम आज उनकी बात नहीं करते जो अनाज पैदा करता है, बल्कि उनकी जमीनों की बात ज्यादा करते हैं। ऐसे में साहित्य और समाज को इसकी चिंता करने की जरूरत है।
विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार रामकुमार तिवारी ने कहा कि पाठ जैसी पत्रिका का लगातार 13वर्षों तक निकलना एक उम्मीद जगाता है और इसकी टीम बधाई की पात्र है। क्योंकि इस दौर में ऐसी पत्रिकाओं का प्रकाशन बेहद कठिन परिस्थितियों में होता है। विशिष्ट अतिथि व्यंग्यकार महेश श्रीवास व सुप्रिया भारतीयन ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। इस अवसर पर भिलाई से आईं युवा कवियित्री प्रीति बंसोड़ का काव्यपाठ हुआ।
इस मौके पर पाठ संघर्ष सम्मान भी प्रदान किया गया। पाठ संघर्ष सम्मान ट्रेड यूनियन के लीडर पवन शर्मा को प्रदान किया गया। कार्यक्रम का संचालन रमेशचंद्र सोनी व निशा भोसले ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में पाठ के संपादक देवांशु पाल व विजय कुमार गुप्त की अहम भूमिका रही।
मीडिया में अब बहुत संभावनाएं-अवस्थी
इस मौके पर द्वितीय सत्र में मीिडया के बदलाव, चुनौतियां व संभावनाएं विषय पर संगोष्ठि हुई। वरिष्ठ पत्रकार रूद्र अवस्थी ने कहा कि अखबार से लेकर टेलीविजन और अब वेब मीडिया ने दौर को बहुत बदला है। वेब ने व्यक्तिगत मूल्यों की पत्रकारिता की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। आने वाले समय में इसका भविष्य उज्जवल दिखता है।
वरिष्ठ पत्रकार विश्वेेश ठाकरे ने कहा कि यह तय करना खबर क्या है सिर्फ संस्थानों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि पाठकों और दर्शकों को भी तय करना होगा िक उनकी जिम्मेदारी क्या है?
कर्मचारी नेता व मासिक पत्रिका के संपादक पीआर यादव ने कहा कि इस वक्त पत्रकारिता में विश्वसनीयता का संकट सबसे ज्यादा है। पत्रकार यशवंत गोहिल ने भी यहां अपने विचार व्यक्त किए। इस मौके पर सतीश जायसवाल, कपूर वासनिक, आनंद मिश्रा, कालीचरण यादव समेत बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे।