बिना बजट चलता है निगम का कांजी हाउस,दानदाताओं से पलता है मवेशियों का पेट

BHASKAR MISHRA
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mveshiबिलासपुर— निगम कांजी हाउस भगवान भरोसे चलता है। मतलब दानदाताओं के रहमों करम पर है। कांजी हाउस प्रभारी प्रमील शर्मा का यही कहना है। निगम लेखापाल कहते हैं कि कांजी हाउस के लिए अलग से बजट नहीं होता है। थोड़ा बहुत है भी तो..उससे आवार मवेशियों का पेट पालना नामुमकिन है। प्रमील शर्मा यदि कहते हैं कि कांजी हाउस दान भरोसे है तो …इसमें किसी को तकलीफ नहीं होनी चाहिए।कांजी हाउस के लिए निगम प्रशासन के पास बजट नहीं है।

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                 मतलब कांजी हाउस की व्यवस्था राम भरोसे है। प्रमील शर्मा ने बताया कि लगातार नोटिस दिए जाने के बाद भी मवेशियों के पालक गंभीर नहीं है। गायों को अवारा छो़ड़ देते हैं। यदि गायों को पकड़ भी ले तो उन्हें खिलाने के लिए निगम के पास बजट भी नहीं है। क्योंकि निगम का कांजी हाउस पिछले कई साल दानदाताओं के रहमों करम पर चल रहा है। मवेशियों को पकड़ने के बाद खिलाएंगे क्या। अपनी तनख्वाह से परिवार चलाऊं या कांजी हाउस का खर्च। कांजी हाउस में मवेशी भूख से मर जाए तो जिम्मेदारी किसकी होगी।

                   प्रमील शर्मा ने बताया कि हमें भी मालूम है कि बिलासपुर की सड़कें आवारा मवेशियों के लिए स्वर्ग है। हमारी मजबूरी है कि मवेशियों को पकड़ नहीं सकते। समय समय पर आवारा मवेशियों को पकड़ने का अभियान भी चलाया जाता है। दो एक दिन बाद दूधारू पशुओं को मालिक छुड़ा लेता हैं। गैर दूधारू पशुओं को लेने से इंकार कर देता है। किसी दानदाता को दया आती है तो कुछ घास और पैरा कटिया दे जाता है। अन्यथा पशुओं को कांजी हाउस से छोड़ दिया जाता है। कांजी हाउस से छूटते ही सभी जानवर सड़कों को आशियाना बना लेते हैं।

कांजी हाउस का बजट दो लाख

                  निगम लेखापाल अविनाश बापते ने बताया कि पिछले कुछ सालों से कांजी हाउस के लिए कोई बजट नहीं है। साल में दो लाख रूपए कांजी हाउस पर किया जा सकता है। लेकिन प्रभारी ने कभी मांगा ही नहीं। सालाना दो लाख रुपए जाता कहां है इसकी जानकारी भी उन्हें नहीं है।

                 निगम के एक अन्य अधिकारी ने बताया कि कांजी हाउस में पहुंचने के बाद पशुओं की जिम्मेदारी निगम प्रशासन की होती है। निगम ने कभी भी कांजी हाउस को गंभीरता से नहीं लिया। ऐसी सूरत में दानदाताओं की कांजी हाउस में जानवरों का का गुजारा होता है। कर्मचारी घर से पैसे तो लगाएगा नहीं। इसलिए कांजी हाउस में मरने की वजाय आवारा पशुओं को छोड़ दिया जाता है।

आवारा मवेशी करते हैं ट्रैफिक का काम

                            लालखदान से उस्लापुर फाटक…तिफरा से कोनी सरकंडा तक….दिन रात सड़कों पर आवारा मवेशी नजर आ जाते हैं। सड़क दुर्घटनाओं के मुख्य कारणों में से एक आवारा मवेशी भी हैं। किनारे और बीच सड़क में झुण्ड बनाकर आवारा मवेशियों का डेरा होता है। जो काम चौराहों की लाल पीली बत्तियां नहीं कर पाती…उसे आवारा मवेशी करते हैं।

                मोपका में चार महीने पहले देर रात एक ट्रक से कुचलकर 12 गायों की मौत हो गयी थी। लोगों ने हाय तौबा मचाया…। बाद में हमेशा की तरह लोग शांत भी हो गए। इस बात की चिंता ना तो निगम प्रशासन को है और ना ही मवेशी पालकों को….।

सफाई अभियान को लगाते हैं पलीता

              बिलासपुर की सफाई व्यवस्था किसी से छिपी नहीं है। शहर की कमोबेश सभी सडकों के बीच यहां वहां ताजे गोबर देखने को मिल जाएंगे। शहर को क्लीन सिटी बनाने वालों को गोबर दिखाई नहीं नहीं देता है।

ब्रिज के बीच मवेशियों का डेरा

                          कुछ दिन पहले उस्लापुर ब्रिज में दो मोटर सायकल की भिडंत हो गयी। हादसे की वजह बीच सड़क में बैठे मवेशियों को बताया गया। तिफरा ब्रिज का भी यही हाल है। दोनों तरफ और बीच सड़क में आवारा मवेशियों की झुण्ड को आसानी से देखा जा सकता है। पांच महीना पहले गाय को बचाते एक कार सवार की मौत हो गयी थी। इंदिरा सेतु का भी कमोबेश यही हाल है। चुचुहियापारा ब्रिज को निगम प्रशासन ने अघोषित रूप से ओपन कांजी हाउस घोषित कर दिया है।

सड़क हादसा में आवार मवेशियों की भूमिका

                     एक सर्वे के अनुसार गंभीर सड़क दुर्घटना में अवारा मवेशियों की भुमिका सबसे अधिक है। सड़क पर बैठी गाय को बचाए तो इंसान का बचना मुश्किल है। यदि इंसान को बताएं तो गाय मालिक से बचना नामुमकिन है। पुलिस कार्रवाई तेज हो जाती है।

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