वनसुरक्षा समिति का आरोप…जंगल के दुश्मन हैं वन अधिकारी

BHASKAR MISHRA
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forest_bilaspurबिलासपुर— वन सुरक्षा समितियों ने जंगल सुरक्षा करने से इंकार कर दिया है। वन सुरक्षा समितियां वन प्रबंधन समिति के सहयोग में काम करती है। समिति के सदस्य जंगलों की रक्षा के साथ शिकारियों पर नजर रखते है। जंगलों की हिफाजत करने वन प्रबंधन समितियों का गठन साल 1995 के आस पास तात्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार ने किया था। मानदेय पर समिति के सदस्यों को रखा गया। बावजूद इसके डीएफओ की तानाशाही और उदासीनता ने समिति को खत्म होने के कगार पर खड़ा कर दिया है।

             
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                          आठ महीने से वेतन नहीं मिलने से नाराज वन समिति के सदस्यों ने वन सुरक्षा करने से इंकार कर दिया है। वन समिति सदस्यों ने बताया कि सुविधाओं के नाम पर लाली पाप और जिम्मेदारियां अधिक हैं। लेकिन अब तो तानाशाह डीएफओं ने लाली पाप भी देने से इंकार कर दिया है। पिछले आठ महीने से उन्हें मानदेय नहीं दिया गया। वनमण्डलाधिकारी पैकरा से कई बार निवेदन किया बावजूद इसके समिति के सदस्यों आश्वासन देकर लौटा दिया जाता है। यह जानते हुए भी खाली पेट काम संंभव नहीं है। बावजूद इसके हम लोग कर रहे हैं। लेकिन अब यह संभव नहीं है। इसलिए हम लोगों ने डीएफओ और सीसीएफ से मांग की है कि समितियों को खत्म कर दिया जाए।

                     समिति के सदस्यों ने बताया कि जंगल के दुश्मन जंगल विभाग के अधिकारी हैं। पेड़ काटने से लेकर शिकार करने तक परोक्ष या अपरोक्ष रूप से वनविभाग के आलाधिकारियों का हाथ होता है। हमें चुप रहने को कहा जाता है। समिति सदस्यों के अनुसार तीन हजार रूपए वनसमिति सदस्यों को मिलता है। बिलासपुर वनमण्डल में कुल 33 समितियां हैं। एक समिति में करीब पांच से आठ सदस्य होते हैं। अभी तक किसी भी सदस्य को आठ महीने से एक रूपए नहीं मिला है।

                       सदस्यों ने बताया कि वनप्रबंधन के अधिकारी जंगल को एशगाह बना लिया है। हमेशा कुछ ऐसा होता है कि जंगल की अवैध कटाई या शिकार होने की स्थिति में वनसमिति के सदस्यों पर गाज गिरा दिया जाता है। सच्चाई तो यह है कि वन विभाग के आलाधिकारी पेंड़ कटाई और शिकार के लिए जिम्मेदार हैं।

क्या है वन समिति

               साल 1995 के आस पास तात्कालीन दिग्विजय सिह सरकार के समय वनसमिति का गठन किया गया। समिति का मुख्य उद्देश्य वनों की अवैध कचाई और शिकार पर अंकुश लगाना था। समितियों में पांच से आठ सदस्यों को जंगल क्षेत्र या बीट के अनुसार रखने का आदेश दिया गया। सरकार की मंशा थी कि युवा बेरोजगार और जंगल क्षेत्र के आस पास रहने वालों को इससे मानदेय के रूप में वेतन और रोजगार मिलेगा। साथ ही जंंगल और वन्यप्राणियों की सुरक्षा भी होगी। लेकिन हुआ ठीक इससे उल्टा। अवैध कटाई पर लगाम तो नहीं लगा, शिकारियों की संख्या बढ़ गयी। वन समिति के सदस्यों की माने तो शिकार करना संभव नहीं है जब तक वनप्रबंधन के आलाधिकारी ना चाहें।

                                                 बिलासपुर में करीब 33 वनप्रबंधन समिति में सौ से अधिक सदस्य हैं। जिन पर वन सुरक्षा की जिम्मेदारी है। समिति के सदस्यों को आठ महीने से वेतन नहीं दिया गया है। प्रत्येक सदस्यों को मानदेय के रूप में वनविभाग से तीन हजार मिलता है। तीन हजार रूपए से समिति के सदस्यों को घर चलता है। अब समिति सदस्यों ने समिति को खत्म किए जाने की मांग की है।

नहीं उठाया फोन

        सीजी वाल ने जब मामले में डीएफओ से संपर्क का प्रयास किया तो पूरे तीन घंटे तक सरकारी मोबइल व्यस्त मोड़ में पाया गया। मालूम हो कि डीएफओ पैकरा ने जाने अंंजाने और गाहे बगाहे जाहिर कर दिया है कि हम केवल पांच महीन काटने के लिए बिलासपुर डीएफओ बने हैं। पांच महीने बाद रिटायर्ड हो जाएंगे। इसलिए वह किसी विवाद में फंसना नहीं चाहते हैं। पैकरा ने कई बार पत्रकारो को बताया भी है कि आने वाला नया डीएफओ ही विकास का काम करेगा।

फंड की कमी नहीं

              जानकारी के अनुसार वनप्रबंधन के खजाने में समिति सदस्यों के लिए पर्याप्त मात्रा मानदेय राशि है। बावजूद इसके दिया नहीं जा रहा है। इसकी वजह क्या हो सकती है इस मामले में ना तो डीएफओ ही कुछ बोलते हैं और ना ही सीसीएफ।

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