वो…सोलह मिनट…एक अकेले कलाकार के साथ,झूम उठा देवकीनंदन हॉल…

Chief Editor
7 Min Read

(रुद्र अवस्थी)तुम्हे दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी,मोहब्बत की राहों में आकर तो देखो।
तड़पपने पे मेरे ना ,फिर तुम हंसोगे,कभी दिल किसी पे लगाकर तो देखो।।

Join Our WhatsApp Group Join Now

IMG-20170216-WA0015मरहूम नुसरत फतेह अली खाँ  साहब का यह सूफियाना कलाम पूरे सोलह मिनट –तिरालिस सेकेंड का है…….।जिसकी धुन पर थिरकते हुए वो पूरे समय लट्टू की मानिंद घूम-घूम कर नाचते रहे। और हॉल में मौजूद दर्शक तालियां बजाते हुए मंत्रमुग्ध…अपनी सीट पर बैठे हुए नाचते रहे।बुधवार की शाम बिलासपुर शहर के पं. देवकीनंदन हॉल में मुंबई के रंगमंच-सिने कलाकार मनोज मिश्र ने जब यह अद्भुत,अविस्मरणीय,अकल्पनीय करिस्मा दिखाया तो लगा कि यह कोई सोलो  नहीं बल्कि सोल (आत्मा) का प्रदर्शन है।मनोज मिश्रा ओशो सन्यासी, सिने जगत, रंगमंच के विख्यात कलाकार हैं और एनएसडी से जुड़े हैं।उन्होने “अभिनय से सत्य”  नृत्य नाटिका का सजीव प्रस्तुतिकरण दिया। अपनी करीब ढाई घंटे की पेशकस के दौरान उन्होने कई रूप धारण किए और सभी किरदार को एक ही मंच पर उन्होने जी लिया। उनकी थीम यही थी अभिनेता को ऐसा अभिनय करना चाहिए जैसे साक्षात जीवन जी रहा हो और व्यक्ति का जीवन ऐसा हो जैसे वह अभिनय कर रहा हो….। वे अपनी पेशकस के जरिए इसे साबित करने में कामयाब रहे। उन्होने यह दावा भी किया था नाटक करना मकसद नहीं है, बल्कि देखने वालों को गहररे ध्यान में डुबाना उनका मकसद है। यकीनन कार्यक्रम के दौरान उस हॉल में मौजूद हर एक शख्स यह कह सकता है कि सभी को गहरे ध्यान में डुबोकर मनोज अपने मकसद में कामयाब रहे।

                                    IMG-20170216-WA0016मनोज मिश्र पर ओशो का खासा प्रभाव रहा है और अगर इस नजरिए से देखें तो ओशो की देशनाओँ को अपने तरीके से पहुंचाने में भी मनोज कामयाब नजर आते हैं।ओशो काम ऊर्जा को लेकर अपने विचारों के नाम पर सुर्खियों में आए थे, फिर उन्होने पुरातनपंथी-रिवाजों पर चोट की, व्यवस्था की आलोचना की , कभी अमेरिका में जाकर चर्चित हुए । अपने समय में विवादों में अक्सर घिरे रहे। लेकिन उनका निचोड़ यही रहा कि ध्यान ही सब कुछ है।इससे ही शांति मिल सकती है।मनोज मिश्र की पेशकश भी कुछ इसी तरह से आगे बढ़ती है। और जिंदगी के अलग-अलग रंगों से रू-ब-रू कराते हुए गहरे ध्यान में डुबाकर पूरी होती है। एक बड़ी खासियत यह भी है कि अढ़ाई घँटे के लम्बे समय तक एक ही कलाकार मंच पर अभिनय कर रहा हो फिर भी दर्शक एक पल के लिए भी मंच से अलग नहीं होते । और पूरे समय बंधे रहते हैं।वह भी मोबाइल और इंटरनेट के इस युग में…अद्भुत लगता है।

                                  IMG-20170216-WA0017मनोज मिश्र अपने शो के दौरान देश-दुनिया की तमाम बातें करते हैं।लावोत्सकी-ब्रेख्त और भरत मुनि का जिक्र करते हैं। भारत की आध्यात्मिकता की बातें करते हैं। राम-रहीम की एकता की बात करते हैं……।योग का जिक्र करते हैं। अहंकार को मिटाने की बात करते हैं।पंच तत्वों से बनी काया की खासियत बताते हैं। काम-ऊर्जा के उर्ध्वगमन की बात कर लेते हैं। वह भी इस अंदाज में कि किसी दूसरे कलाकार को इस तरह खुले मँच पर अपनीबात रखने में संकोच भी हो सकता है। बुद्ध- हिटलर सब की बात करते हैं। देश प्रेम , पाकिस्तान और सर्जिकल स्ट्राइक का जिक्र भी उनके अभिनय में आता है। नोटबंदी की बात करना भी वे नहीं भूलते…नशे से मुक्ति बात भी उनके अभिनय में कई बार आई..।स्टेज पर कभी अस्वत्थामा, कभी कृष्ण, कभी कालीदास, कभी माइकल जेक्सन , कभी मुन्नी बाई….तो कभी जूलियट जैसे कई किरदारों के शक्ल में मनोज बता जाते हैं कि जिंदगी का सिलसिला किस तरह चलता है…। बीच-बीच में उनकी भारी-भरकम आवाज गूंजती है—जिसने स्वयं को पा लिया उसने पूरे विश्व के अक्षर पढ़ लिए…।

                           manoj-2पूरे विश्व की दौलत भले  मिल जाए , लेकिन जब जब तक स्वयं से नहीं मिलोगो- भिखमंगे ही रहोगे…। बाहरी परिवर्तन से कुछ नहीं होगा- भीतर से परिवर्तन होना चाहिए…।स्टेज पर जीवंत कर दिखाया कि H2Oका फार्मूला रटने से प्यास नहीं बुछती  , प्यास तो पानी पीने से ही बुझती है…।शून्यता ही हमारा असली चेहरा है- बताते- बताते, मनोज ओशो के सूत्र “हसिबा खेलिबा-करिबा ध्यानम् “ में  आते हैं और शो के आखिरी सोलह मिनट सभी देखने वालों को दीवाना बनाकर गहरे ध्यान में ले जाते हैं…।बिल्कुल ओशो की तरह …।दुनिया-जहान की बात से लोगों को अपने साथ जोड़ना औऱ फिर अपने साथ जुड़ने वालों को ध्यान से जोड़ देना…। शो के आखिरी हिस्से में नुसरत फतेह अली के गाए सूफियाना कलाम–“तुम्हे दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी…”की धुन पर मनोज जब अपनी धुरी पर लट्टू की तरह गोल चक्कर लगाते हैं तो उनकी भाव-भंगिमाओँ के साथ ही उनका सूफियाना लिबास भी एक लय में नाचता हुआ दिखाई देता है…।दर्शक लय को साथ तालियां मिलाते हुए अपनी जगह पर ही झूमते नजर आते हैं…और लगता है जैसे पूरा देवकीनंदन दीक्षित हॉल ही गोल चक्कर लगाकर झूमने लग गया हो…। औऱ लगा  जैसे मंच अपने दर्शकों से कह रहा हो कि-“ध्यान, प्रेम के पँख लगाकर मुक्त गगन पर  उड़ रहा है…..और उसे समाधि मिल गई है…।“फिर अहम् ब्रह्माश्मि-अनलहक के उद्घोष के साथ यह शो अपने आखिरी मुकाम पर पहुंचता है…।

                                    यह ओशो लवर्स बिलासपुर की प्रस्तुति थी। इस आयोजन में रोहित बाजपेयी और नरेन्द्र गुप्ता सहित ओशो प्रेमियों की अहम् भूमिका रही। कार्यक्रम में आईजी विवेकानंद सिन्हा, काव्यभारती के निदेशक मनीष दत्त, सीनियर एडवोकेट निर्मल शुक्ला अतिथि के रूप में मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन एल. के. पाण्डेय कर रहे थे।

( तस्वीरें -सुब्रतो मोइत्रा के सौजन्य से)

close