बिलासपुर—भगवान दया के सागर हैं। जिसने भी उन्हें याद किया वह पहुंच जाते हैं। भगवान लीलाधर भी हैं…। महाभारत भी उन्हीं की लीला है। यदि द्रोपदी ने दुर्योधन को अंधे का पुत्र नहीं कहा होता तो महाभारत की बुनियाद भी नहीं पड़ती। लेकिन सब कुछ भगवान की माया थी..इसलिए महाभारत का बीज युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के साथ ही बो दिया गया। यह बातें आज यदुनंदननगर स्थित कांग्रेस जिला अध्यक्ष राजेन्द्र शुक्ला के निवास पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा यज्ञ ज्ञान के सातवें दिन चित्रकुट पीठाधीश्वर स्वामी प्रपन्नाचार्य महाराज ने कही। स्वामी ने कहा कि अजब दस्तूर है कि जो सबसे अधिक सगा होता है वही जीवन में दगा यानि दाग देता है। उन्होने इस दौरान सुदामा और कृ्ष्ण की दोस्ती पर भी व्याख्यान दिया।
राजेन्द्र शुक्ला के निवास पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन स्वामी प्रपन्नाचार्य महाराज ने बताया कि महाराज शुकदेव ने राजा परीक्षित को भगवान श्रीकृष्ण की एक एक लीलाओं बताया। राजा परीक्षित के जिज्ञासाओं को शांत करते हुए शुकदेव ने कहा कि तुम्हारे पूर्वज ना केवल पराक्रमी बल्कि सत्य और निष्ठा के प्रतीक थे। इस दौरान महाराज ने राजसूय यज्ञ की कथा का सजीव चित्रण किया।
स्वामी प्रपन्नाचार्य ने पंडाल में उपस्थित लोगों को बताया कि जरासन्ध तात्कालीन समय सबसे बलशाली राजा हुआ करता था। युधिष्ठिर के चक्रवर्ती राजा बनने में सबसे बड़ा बाधा भी था। लेकिन भीम ने जरासन्ध के इशारा पर उसका बध किया। युधिष्ठिर के राज्याभिषेक समय प्रथम पूज्य को लेकर वाद विवाद हुआ। जरासन्ध के पुत्र ने सुझाव दिया कि विश्व में सबसे योग्य प्रथम पूज्य श्रीकृष्ण माधव हैं। लेकिन शिशुपाल ने इसका विरोध किया। महाराज ने बताया कि शिशुपाल भगवान श्रीकृष्ण के बुआ का पुत्र था। भगवान ने अपने बुआ को वचन दिया था कि प्रतिदिन उसकी सौ गलतियों को माफ करेंगे। जिस दिन अपनी गलतियों की सीमा को पार करेगा उसी दिन इसका वध करूंगा।
बहुत सरल अन्दाज में कथा पेश करते हुए महाराजन जी ने बताया कि युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के समय शिशुपाल ने गलतियों की सीमा को पार किया। भघवान ने तत्काल उसका वध कर दिया। महाराज ने लोगों को पुण्डरिक और श्रीकृष्ण की कथा का भी शानदार वर्णन किया। प्रपन्नाचार्य जी ने बताया कि युधिष्ठिर का महल मायावी था। कुरू राजकुमार दुर्योधन महल में प्रवेश करते समय पानी में गिर गया। लोगों ने उसका जमकर उपहास उड़ाया। द्रोपदी ने कहा कि अंधे का लड़का अंधा ही होता है। यह बात दुर्योधन को लग गयी। यहीं से महाभारत के बीज का रोपण हुआ। महाराज ने बताया कि यह सब भगवान के लीला थी। क्योंकि उन्हें सत्य और आंतकहीन मानव समाज और राज्य की स्थापना करना था।
प्रपन्नाचार्य महाराज के मुखारबिन्द से कृष्ण और सुदामा के परस्पर प्रेम निष्ठा, विश्वास की कथा सुनकर उपस्थित भक्तों के आंख में आंसू भर आए। महाराज जी ने बताया कि सखा का अर्थ जिसकी समान ख्याति हो। यदि हम राम का नाम लेते हैं तो लक्ष्मण का ध्यान अपने आप हो जता है।जिस प्रकार कृष्ण का नाम लेते हैं तो अर्जुन हमारे चित्त में आ जाते हैं। उसी प्रकार जब हम सुदामा या कृष्ण में से किसी एक का नाम लेते हैं तो दूसरे का नाम खुद ब खुद दिल और दिमाग में आ जाता है। महाराज जी ने बताया कि सुदामा स्वाभिमानी थे..कृष्ण अपने मित्र की इन आदतों से अच्छी तरह से वाकिफ थे।
महाराज ने बताया कि यही कारण है कि भगवान ने जब सुदामा का सहयोग किया तो खुद सुदामा को भी इसबात की जानकारी नहीं थी। लेकिन कृष्ण ने मित्र के स्वाभिमान की रक्षा करते हुए सब कुछ दिया।
इस दौरान सभी लोगों ने भक्तिमय गीत संगीत के साथ श्रीमदभागत कथा का रसपान किया। महाराज ने कहा सब कुछ नश्वर है यदि अमर है तो भगवान और भगवान की लीला। सबको उनके ही शरण में जाना है। यदि किसी के पास गीता पढ़ने का समय नहीं है तो कोई बात नहीं यदि वह मौका श्री वासुदेवाय नमः का जाप करे उसे गीता पढ़ने के बराबर पुण्य मिलेगा।
गणमान्य लोगों ने किया श्रीमद्भागवत कथा का रसपान
राजेन्द्र शुक्ला के निवास पर आयोजित कथा ज्ञान यज्ञ का गणमान्य लोगों ने रसपान किया। क्षेत्र के आधाधिकारियों के अलावा मस्तूरी विधायक दिलीप लहरिया,पत्रकार सुरेश केडिया,नगर पालिका अध्यक्ष रामू साहू,महापौर किशोर राय,कांग्रेस नेता भुवनेश्वर यादव,जसबीर गुम्बर शिवामिश्रा समेत कई भाजपा और कांग्रेस नेता कथा ज्ञान धारा में गोता लगाया। इस दौरान भक्तों के बीच प्रसाद का भी वितरण किया गया।